कपूर के बारेमें आपने जरूर सुना तो होगा ही. एलोपेथी की अधिकांश औषधियौमे इसका इस्तेमाल किया जाता है. कपूर एक मोम जैसा, सफेद या पारदर्शी पदार्थ है और इसमें एक मजबूत, सुगंधित गंध होती है. यह रासायनिक सूत्र C10H16O के साथ एक टेरापेनॉइड होता है.
इसका उपयोग मुख्य रूप से भारत में एक द्रव के रूप में, धार्मिक समारोहों में और औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है.आयुर्वेद के अनुसार पक्व, अपक्व और भीमसेनी तीन तरह के कपूर का वर्णन किया जाता है. ये मुख्य रूप से पेड़ों से निकलने वाला ज्वलनशील, उड़नशील और तैलीय पदार्थ होता है. प्राकृतिक कपूर को ही भीमसेनी कपूर कहा जाता है जिसे आप दवा के रूप में भी ले सकते हैं और इसके कई तरह के उपयोग किए जा सकते हैं.
कपूर असली है या नकली इसकी पहचान करना बेहद आसान है. कपूर जलाने के बाद राख नजर नहीं आए तो समझें कि वह असली है. दरअसल असली कपूर पेड़ से प्राप्त होता है और जलाने पर यह पूरी तरह उड़ जाता है. मिलावटी कपूर जलाने के बाद काली राख दिखती है तो वह नकली है.
प्राकृतिक कपूर को भीमसेनी कपूर कहा जाता है, और यह कृत्रिम कपूर की तुलनामें भारी होता है. हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार घर में पूजा के साथ कपूर के इस्तेमाल बहुत पवित्र माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यदि पूजा के समय कपूर जलाया जाए तो घर में सदैव खुशहाली बनी रहती है और सभी नकारात्मक ऊर्जाओं नस्ट हो जाती है.
कपूर को पहली बार सन 1903 में गुस्ताफ कोम्पा द्वारा संश्लेषित किया गया था. पहले, कुछ कार्बनिक यौगिकों (जैसे यूरिया) को अवधारणा के प्रमाण के रूप में प्रयोगशाला में संश्लेषित किया गया था, लेकिन दुनिया भर में मांग के साथ कपूर एक दुर्लभ प्राकृतिक उत्पाद था.
कपूर के गुण :
कपूर में विभिन्न गुण होते हैं. यह एंटीसेप्टिक गतिविधि दिखा सकता है. इसमे खुजली से राहत पाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला गुण होता है.
इसमें सूजन निरोधक गुण होता है. यह कफ का नाश करता है. इसमे निसारक संक्रमणरोधी गुण होते हैं. इसमे कैंसर निवारण क्षमता होती है.
इसमें एंटीफंगल गुण होते हैं. सूजन को शांत करने और प्राकृतिक रूप से राहत पाने का प्राचीन इलाज है. यह गठिया से लेकर मोच तक, ब्रोंकाइटिस से लेकर प्लास्टर के दर्द तक आसानीसे मिटा सकता है.
कपूर में कंजेस्टिव गुण होते हैं और यह फेफड़ों और गले में सूजन को कम करता है. यह नाक की रुकावट के प्रबंधन में सहायता कर सकता है और नाक बंद होने का इलाज कर सकता है. यह तंत्रिकाओं पर काम कर सकता है और कफ दमनकारी के रूप में कार्य करके खांसी को कम कर सकता है.
यह कई श्वसन विकारों के खिलाफ प्रभावी हो सकता है. श्वसन समस्याओं के लिए कपूर का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए और उनकी सलाह का पालन करना जरुरी है. कपूर का उपयोग विभिन्न सिद्धांतों में किया जा सकता है : (1) कपूर बाम (2) कपूर का तेल. (3) कपूर क्रीम.
वास्तु शास्त्र के अनुसार, सोने से पहले थोड़ा सा कपूर जला लें और इसका धुआं बेडरूम के साथ-साथ पूरे घर में कर दें. माना जाता है कि ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और मां लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है. रात को सोने से पहले दक्षिण दिशा की ओर सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए.
भीमसेनी कपूर की विशेषता :
जिस पौधे से भीमसेनी कपूर प्राप्त होता है उसे ड्रायोबैलानॉप्स ऐरोमैटिका कहा जाता हैं. यह डिप्टरोकार्पेसिई कुल का सदस्य है जो सुमात्रा तथा बोर्निओ आदि में स्वत: उत्पन्न होता है. इस वृक्ष के काष्ठ में जहाँ पाले होते हैं अथवा चीरे पड़े रहते हैं वहीं कपूर पाया जाता है.
यह श्वेत एवं अर्धपारदर्शक टुकड़ों में विद्यमान रहता है और खुरचकर काष्ठ से निकाला जाता है. इसलिए इसे अपक्व और जापानी कपूर को पक्व कर्पूर कहा गया हे. यह अनेक बातों में जापानी कपूर से सादृश्य रखता है और उसी के समान चिकित्सा तथा गंधी व्यवसाय में इसका उपयोग होता है.
इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह पानी में डालने पर नीचे बैठ जाता है. आयुर्वेदीय चिकित्सा में यह अधिक गुणवान भी माना गया है. आजकल भीमसेनी कपूर के नाम पर बाजार में प्राय: कृत्रिम कपूर ही मिलता है, अत: जापानी कपूर का उपयोग ही करें.
कपूर के पेड़ की लंबाई 50 से 100 फीट तक की होती है. क्यूंकि यह पौधा देखने में बहुत ही सुंदर होता है, कई लोग इसे सजावटी तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं. इसकी पत्तियां बड़ी, सुंदर और लालिमा व हरापन लिए होती हैं. वसंत ऋतु के दौरान इसमें छोटे-छोटे खुशबूदार फूल लगते हैं और इसके फल भी बड़े मनमोहन होते हैं.
चेतावनी : कपूर का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेने की सलाह दी जाती है.