दर्पण – आईना के बारेमें आज तक बहोत कुछ लिखा जा चुका है. कवि ओने कविता मे उतारा. शायर ने अपनी शायरी मे दिखाया, विश्व की विविध भाषाओ मे आईना पर अनेकों फ़िल्म बनी है.
आईना हमें अपना प्रतिबिंब बताती है. मगर मन के भीतर की सोच बताने मे असमर्थ होती है. आईना एक ऐसी चीज है जिसकी सतह कोई भी छबि को प्रतिबिंबीत करती है.
आईना के प्रकारो मे समतल आईना ( plain mirror ) , उत्तल आईना ( convex mirror ) और अवतल आईना ( concave mirror ) तथा परवलिय आईना ( parabolic mirror ) आदि मुख्य होते है. कभी आप एस्सेल वर्ड की सैर करने गये हो तो आपको पता होगा की वहां विविध प्रकार के आईना रखें हुए है , जिसमे अपनी जाडी, पतली, टेढ़ी मेढी तस्वीर दिखाई देती है.
दर्पण में कांच के एक ओर धातु की पतली परत का लेप किया जाता है तथा दूसरी ओर कांच के पीछे चांदी या पारे की परत का लेपन किया जाता है, जो परावर्तक सतह का कार्य करती है.
चाँदी की कलई अर्थात चाँदी को जलाने के बाद उसका उसका बचा हुआ राख, यह रोशनी को लगभग पुरे 100 % प्रतिशत परावर्तित कर देता है.इसलिए इसका प्रयोग दर्पण बनाने में किया जाता है.
जब आईना का अविष्कार नहीं हुआ था तब लोग अपना चहेरा देखनेके लिये स्थिर रुका हुआ पानी का इस्तेमाल करते थे. या फिर कोई चमकती चीजों का उपयोग करते थे.
दुनिया के आधुनिक शीशा का अविष्कार सन 1835 मे जर्मन केमिस्ट जस्टस वोन लायबीग justus von liebig ने किया था. शुरु मे कांच पर चांदी की पतली परत चढ़ाई जाती थी, फिर सिल्वर नाइट्रेट रसायन का उपयोग करके आज का आधुनिक आयना मे परिवर्तित किया गया. उस समय आईना लक्ज़री आइटम मानी जाती थी.
सन 1650 से 1720 तक समुद्री डाकू ओके हजारों समूह सक्रिय थे. वे प्राचीन यूनान के व्यापार मार्गो की और रोमन जहाजो से अनाज और जैतून का तेल लदे माल वाहको को जब्त करके फिरोती वसूलते थे. वो समुद्री डाकू ओका गिरोह आईना का उपयोग करके सूर्य किरण को परावर्तित करके जहाजो को शरण लेने के लिये मजबूर कर देते थे. और लूट लेते थे. या आईना से सूर्य प्रकाश को एक बिंदु पर केंद्रित करके सामने वाले जहाज को जला भी दीया जाता था.
आईना का उपयोग चेहरे की सुंदरता निखारने , हेयर कटिंग सलून और ब्यूटी पार्लर मे इसका उपयोग खास किया जाता है. आईना महिला ओका पसंदीदा साथी है. उनका घंटो भर आईना के सामने बैठना आम बात है.
प्रकाशिय यंत्रो मे प्रकाश को एक बिंदु पर केंद्रित करने के लिये , गाड़ियों मे पीछे से आ रही दूसरी गाड़ी ओको देखने के लिये लगाये जाते है.
आपको शायद पता नहीं हो मगर सत्तर के दशक मे गोरेगांव मुंबई मे टोपीवाला टॉकीज मे आईना का पर्दा ( मिरर स्क्रीन ) लगाया गया था. जिसे दूर दूर से लोग देखने आते थे.जिसे मिरर स्क्रीन कहते थे.
आईना के उपर कई फ़िल्म बनी है. जिसमे 1993 मे बनी यस चोपड़ा की आईना फ़िल्म मे अभिनेता जैकी श्रॉफ, अभिनेत्री जूही चावला ,अमृता सिंघ ने मुख्य किरदार निभाया था. जिसने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिज़नेस किया था.
फ़िल्मी चाहको मे (1)
दपर्अण को देखा, तूने जब जब किया श्रृंगार,
फूलों को देखा, तूने जब जब आई बहार,
एक बदनसीब हूँ मैं, एक बदनसीब हूँ मैं,
मुझे नहीं देखा एक बार… (2)…
देखा ना करो तुम आईना , कही खुद की नजर ना लगे. आदि कई गाने काफ़ी प्रचलित हुए थे.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.