पतिव्रता पत्नी अनुसुइया की कहानी.

आज मुजे बात करनी है , हमारे भारत देश की महान महिलाओं में से एक माता अनुसुइया की. जिसको पांच पतिव्रता पत्नियों में स्थान मिला हुआ है. माता द्रौपदी, सुलक्षणा, सावित्री और मंदोदरी को भी पतिव्रता पत्नि माना जाता है.

सती माता अनसूया का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. हमारे रामायण, महाभारत और कई पुराणों में उनका उल्लेख मिलता है. श्री लक्ष्मी जी, माता सती और देवी सरस्वती जी को अपने पतिव्रत का बड़ा अभिमान था. तीनों देवियों के अभिमान को नष्ट करने तथा अपनी भक्तिनी पतिव्रता अनसूया का मान बढ़ाने के लिये भगवान ने नारद जी के मन में प्रेरणा दी.

एक दिन मुनि नारदजी जब लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती के पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की धर्म पत्नी अनसूया के असाधारण पति व्रता के बारे में बताया, और कहा कि मैं महर्षि अत्रि के आश्रम पर गया. वहां मैं तो महर्षि की पत्नी अनुसूया जी के दर्शन करके कृतार्थ हो गया. तीनों लोकों में उनके समान दूसरी कोई भी पतिव्रता स्त्री नहीं है.

लक्ष्मी जी को नारद जी की बात पर आश्चर्य हुआ. उन्होंने पूछा कि नारद! क्या वह मुझसे भी बढ़कर पतिव्रता है?

नारद जी ने कहा, माता ! आप ही नहीं, तीनों लोकों में हयात कोई भी स्त्री सती अनुसूया की तुलना में किसी भी गिनती में नहीं आती है.

सुनकर तीनों देवियों के मन में अनसूया के प्रति ईर्ष्या का भाव उभरा. तीनों देवियों ने सती अनसूया के पति व्रत को तोड़ने के लिए अपने पतियों को उसके पास भेजने की बात की. ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव ने तीनो को बहुत समजाया मगर वें नहीं मानी.

अनसुईया के सतित्व की परख लेने

ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव जब , अत्रि ऋषि आश्रम से कहीं बाहर गए थे तब तीनों ने यतियों का भेष धारण किया और अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे तथा भिक्षा मांगने लगे. अतिथि-सत्कार की परंपरा के अनुसार सती अनुसूया ने त्रिमूर्तियों का उचित रूप से स्वागत कर उन्हें खाने के लिए निमंत्रित किया.

लेकिन यतियों के भेष में त्रिमूर्तियों ने एक साथ में कहा, ” हे साध्वी, हमारा एक नियम है कि जब तुम निर्वस्त्र होकर भोजन परोसोगी, तभी हम आपके यहां भोजन करेंगे. “

अनसूया असमंजस में पड़ गई कि इससे तो उनके पतिव्रत्य के खंडित होने का संकट है. उन्होंने मन ही मन ऋषि अत्रि का स्मरण किया. दिव्य शक्ति से उन्होंने जाना कि यह तो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव हैं.

मुस्कुराते हुए माता अनुसूया बोली “जैसी आपकी इच्छा”… तीनों यतियों पर जल छिड़क कर उन्हें छह – छह माह के तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया. सामने सुंदर शिशु देख कर माता अनुसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा. शिशुओं को स्तनपान कराया, दूध-भात खिलाया, गोद में सुलाया तो तीनों गहरी नींद में सो गए.

अनसूया माता ने तीनों को झूले में सुलाकर कहा, “तीनों लोकों पर शासन करने वाले त्रिमूर्ति मेरे शिशु बन गए, मेरे भाग्य को क्या कहा जाए. फिर वह मधुर कंठ से लोरी गाने लगी.

उसी समय कहीं से एक सफेद बैल आश्रम में पहुंचा, एक विशाल गरुड़ पंख फड़फड़ाते हुए आश्रम पर उड़ने लगा और एक राजहंस कमल को चोंच में लिए हुए आया और आकर द्वार पर उतर गया. यह नजारा देखकर नारद, लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे.

नारद ने विनयपूर्वक “अनसूया” से कहा, ” माते, अपने पतियों से संबंधित प्राणियों को आपके द्वार पर देखकर यह तीनों देवियां यहां पर आ गई हैं. यह अपने पतियों को ढूंढ रही थी. इनके पतियों को कृपया इन्हें सौंप दीजिए.”

अनसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ” माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इन्हें आप ले जा सकती हैं. ” लेकिन जब तीनों देवियों ने तीनों शिशुओं को देखा तो एक समान लगने वाले तीनों शिशु गहरी निद्रा में सो रहे थे. इस पर लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भ्रमित होने लगीं.

नारद ने उनकी स्थिति जानकर उनसे पूछा, ” आप क्या अपने पति को पहचान नहीं सकतीं? जल्दी से आप माताए अपने-अपने पति को गोद में उठा लीजिए. “

देवियों ने जल्दी में एक-एक शिशु को उठा लिया. वे शिशु एक साथ त्रिमूर्तियों के रूप में खड़े हो गए. तब उन्हें मालूम हुआ कि सरस्वती ने शिवजी को, लक्ष्मी ने ब्रह्मा को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है. तीनों देवियां शर्मिंदा होकर दूर जा खड़ी हो गईं. देवियों ने माता अनुसूया से क्षमा याचना की और यह सच भी बताया कि उन्होंने ही परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को बाध्य किया था. फिर प्रार्थना की के वें अपने पतियों को पुन: अपने स्वरूप में ले आए.

माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया. तीनों देव ने सती अनसूया से प्रसन्न होकर कहा देवी ! वरदान मांगो. त्रिदेव की बात सुन अनसूया बोली, “प्रभु ! आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें ये वरदान मुजे चाहिए अन्यथा नहीं…

तब लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती ने अनसुईया को अपने पतियों को फिरसे

असल रूप में लाने को कहा. माता अनुसूया ने कहा कि तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरूप में ही रहना होगा. ये सुनकर तीनों देवों ने अपनी शक्तियों को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया, जिनका नाम दत्तात्रेय रखा गया.

मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का ही स्वरूप माना जाता है. इसलिए ही दत्तात्रेय भगवान के तीन सिर हैं और छ: भुजाएं हैं. पौराणिक कथा के मुताबिक ये ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों की ही शक्ति से प्रकट हुए थे. इसलिए एक हाथ में त्रिशूल, एक में शंख और एक हाथ में चक्र है. दत्तात्रेय जयंती पर इनके बालरूप की पूजा की जाती है.

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →