राजेंद्र कुमार जेबमें सिर्फ 50 रुपए लेकर मुंबई आ गया था. उनको फिल्मों में काम करने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था. वे हीरो बनने का ख्वाब लिए जिस वक्त मुंबई आए थे, उस समय में उनकी जेब में मात्र 50 रुपए थे, जो उन्हें पिता से मिली घड़ी को बेचकर मिले थे.
राजेंद्र की भी पुलिस में सरकारी नौकरी लग गई थी, लेकिन ट्रेनिंग में जाने से दो दिन पहले वह एक्टर बनने का सपना लिए हुए मुंबई पहुंच गए थे. मुंबई आने के बाद राजेंद्र को पता लगा कि फिल्मों की राह इतनी आसान नहीं है. शर्म के मारे उन्होंने घर न जाने का फैसला किया और मुंबई में ही संघर्ष करते रहे थे.
गीतकार राजेंद्र कृष्ण की मदद से उनको 150 रु. सैलरी पर डायरेक्टर एचएस रवैल के सहायक के तौर पर काम मिला था.
राजेंद्र कुमार का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के सियालकोट में एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार में हुआ था. उनके दादा एक सफल सैन्य ठेकेदार थे और उनके पिता का कराची, सिंध, ब्रिटिश भारतमें कपड़े का व्यवसाय था.
राजेन्द्र कुमारने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत 1950 की फ़िल्म जोगन से की जिसमें उनको दिलीप कुमार और नर्गिस के साथ अभिनय करने का अवसर मिला था. उनको 1957 में बनी मदर इंडिया से ख्याति प्राप्त हुई थी, जिसमें उन्होंने नर्गिस के एक बेटे की भूमिका अदा की थी. सन 1959 की फ़िल्म गूँज उठी शहनाई की सफलता के बाद उन्होंने बतौर मुख्य अभिनेता के रुपमें नाम कमाया.
साठ के दशक में उन्होंने काफ़ी नाम कमाया और कई दफ़ा ऐसा भी हुआ कि उनकी कई फ़िल्में एक साथ सिल्वर जुबली होती थीं. 25 हप्ते तक लगातार एक ही फ़िल्म सिनेमा घर में चला करती थी, इसी कारण से उनका नाम “जुबली कुमार” पड़ गया.
अपने फ़िल्मी करियर में श्री राजेन्द्र कुमार ने कई सफल फ़िल्में दीं जैसे….
*** धूल का फूल (1959),
*** दिल एक मंदिर (1963),
*** मेरे महबूब (1963),
*** संगम (1964),
*** आरज़ू (1965),
*** प्यार का सागर,(1966)
*** गहरा दाग़,(1966)
*** सूरज ( 1966)
*** तलाश. (1966)
उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए फ़िल्म दिल एक मंदिर, आई मिलन की बेला और आरज़ू तथा सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता की श्रेणी में संगम के लिए नामांकित किया गया था.
सन 1972 से उनको राजेश खन्ना से स्पर्धा का सामना करना पड़ा. इसी दौरान नूतन के साथ उन्होंने फ़िल्म साजन बिना सुहागन (1978) में काम किया, 70 के दशक के आख़िर से 80 के दशक तक उन्होंने चरित्र भूमिका की ओर रुख़ किया. उन्होंने कई पंजाबी फ़िल्मों में भी काम किया जैसे तेरी मेरी एक जिन्दड़ी.
भारत सरकार ने सन 2013 को राजेंद्र कुमार के फोटो वाली एक डाक टिकट जारी की. उनको सन 1970 में पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें शांति न्यायाधीश सम्मान से भी सम्मानित किया गया तथा उन्होंने मानद मजिस्ट्रेट के रूप में भी कार्य किया. उन्हें कानून (हिंदी) और मेहंदी रंग लाग्यो ( गुजराती फिल्म ) के लिए एक साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया था. उन्हें विशेष श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और वे कई चैरिटी योजनाओं से जुड़े रहे.
राजेंद्र कुमार नूतन को बहुत चाहते थे, लेकिन घर वालों ने उन्हें शादी की इजाजत नहीं दी थी. वह इस रिश्ते के टूटने से महीनों तक रोते रहे. रोने की वजह से अभिनेता की आंखों में बीमारी तक हो गई. नतीजा यह हुआ कि दोनों किसी भी बॉलीवुड फिल्म में साथ में काम नहीं करते थे. हालांकि, बाद में सावन कुमार ने दोनों को अपनी फिल्म में कास्ट किया था. फिल्म “साजन बिना सुहागन” में राजेंद्र ने पिता की भूमिका निभाई थी. वहीं, नूतन ने मां का रोल अदा किया था.
बताया जाता है कि राजेश खन्ना की एंट्री से राजेंद्र कुमार का लोगों पर जादू कम होने लगा. अपने फ़िल्मी करियर में उन्होंने 85 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. आज भले अभिनेता हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी फिल्मों ने आज भी उन्हें अमर कर दिया है.
सन 1959 में आई फिल्म ” गूंज उठी शहनाई ” बतौर लीड एक्टर राजेंद्र कुमार की पहली हिट साबित हुई थी. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
1960 के शुरुआत में राजेंद्र कुमार ने बांद्रा के कार्टर रोड पर समुद्र किनारे बने इस बंगले को 60 हजार रुपए में एक्टर भारत भूषण से खरीद लिया था. उन्होंने इसे नया रूप देकर इसका नाम अपनी बेटी ‘डिंपल’ के नाम पर रखा था. इस बंगले में आते ही राजेंद्र कुमार को सफलता मिलनी शुरू हो गई थी. इस कारण यह बंगला लकी माना जाता था.
कुछ साल बाद राजेंद्र कुमार काफी वीक महसूस कर रहे थे और उनका हीमोग्लोबीन काफी कम होता जा रहा था, जांच करवाने पर पता चला कि उन्हें ब्लड कैंसर हुआ है. दुःखोके दौरान राजेंद्र कुमार को अपना लकी बंगला “डिंपल” बेचना पड़ा था.
राजेश खन्ना को जब यह पता लगा कि राजेंद्र कुमार इसे बेच रहे हैं तो उन्होंने इसे तुरंत खरीदने का फैसला कर लिया था. बंगला खरीदने के बाद राजेश खन्ना ने इसका नाम ‘आशीर्वाद’ रख दिया था.
राजेश खन्ना के लिए यह बंगला काफी लकी साबित हुआ था. उन्होंने इसमें शिफ्ट होने के बाद एक के बाद एक 15 हिट फिल्में दी थीं. यही वजह है कि उन्हें यह बंगला बेहद प्यारा था. जिंदगी का अंतिम वक्त भी उन्होंने इसी बंगले में काटा था. 18 जुलाई 2012 को उनकी मौत के बाद इसे बेच दिया गया था. इसे 90 करोड़ रु. में बिजनेस मैन शशि किरण शेट्टी ने खरीदा लिया था. शशि ने बंगले को तुड़वा दिया है और इसकी जगह वह पांच मंजिला इमारत बनवाई हैं.
राजेंद्र कुमार राज कपूर के सबसे अच्छे दोस्त थे , इतना कि उनके बेटे कुमार गौरव की सगाई राज कपूर की बेटी रीमा से हुई थी. हालाँकि, उनके बच्चों की सगाई टूटने के बाद उनकी दोस्ती टूट गई और कुमार गौरव ने श्री सुनील दत्त और नरगिस की बेटी नम्रता से शादी कर ली थी.
राजेंद्र कुमार का करियर तब समाप्त हो गया जब ता : 12 जुलाई 1999 को अपने 70वें जन्मदिन से कुछ दिन पहले कैंसर के कारण उनकी मृत्यु हो गई.