हर बला को हरने वाला अतिबला पौधा.

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” महाशक्तिशाली जड़ीबूटी अतिबली.”

यह एक ऐसी औषधिय सभर युक्त वनस्पति हैं, जिसका एक्सपर्ट डॉक्टर के मार्गदर्शन से सेवन करने से शरीर में आती है घोड़े जैसी फुर्ती, कई रोगों को भी करती है दूर.

अतिबला का पौधा आपको भारत के कई हिस्सों में आसानी से मिलता है. कई बार यह सड़क किनारे, खेत में या फिर पानी के आसपास वाली जगहों पर आपको मिल सकता है. अंग्रेजी में इस पौधे को एब्यूटिलॉन इंडिकम पेंनल (Abutilon Indicum Pennel) के नाम से जाना जाता है. अतिबला एक पीले रंग के सुंदर फूलों वाला, औषधीय गुण युक्त पौधा हैं.

यह स्वाद में मीठा होता है. अतिबला का उपयोग कई दवाइयां बनाने के साथ साथ तेल के उत्पादन के लिए भी किया जाता है. इसका इस्तेमाल चूर्ण बनाने के तौ पर भी किया जाता है. इसमें मौजूद गुण आपके शरीर में जुड़े रक्त विकारों को भी दूर करने में मदद करता है. वहीं इसकी पत्तियों को भी दांतों के तमाम रोगों जैसे मसूड़ों में दर्द, सूजन आदि को ठीक करने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

इस पौधे में मौजूद गुण आपके शरीर में वात और पित्त को भी संतुलित करने में मदद करते हैं. अतिबला में एंटी मलेरियल, इम्यूनोडुलेटरी गुण के साथ ही एंटी माइक्रोबिल और एंटी डायरियल गुण अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. आइये जानते हैं इतिबला के पौधे से स्वास्थ्य को होने वाले फायदों के बारे में.

अतिबला के पत्तों का स्वाद हल्का तीखा व कड़वा होता है. इसे कंघी के नाम से भी जाना जाता है. अतिबला में अनगिनत स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं और हजारों सालों से आयुर्वेद में कई प्रकार की दवाएं बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.

अतिबला पौधे के पत्तों, फूल और बीज में कई अलग-अलग प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं और इसलिए इसका इस्तेमाल एक घरेलू उपचार के रूप में भी किया जाता है. आजकल मार्केट में अतिबला के पत्तों का चूर्ण, रस और बीज आदि आसानी से मिल जाते हैं.

अतिबला के फायदे :

(1) बवासीर :

आज के समय में अधिकांश लोगों की समस्या है. मलाशय के आस पास की नसों में सूजन आ जाने के कारण बवासीर जैसी बीमारी शरीर में उत्पन्न होने लगती है. अतिबला लैक्सेटिव प्रॉपर्टीज से भरपूर होता है, जो आपके मल को मलाशय तक बिना किसी दर्द के आसानी से निकलने में मदद करता है. इसके सेवन से बवासीर के भयंकर दर्द से भी निजात पाई जा सकती है.

बवासीर से राहत पाने के लिए आप अतिबला से बने चूर्ण का भी सेवन कर सकते हैं. बवासीर को खत्म करने के लिए लोग इसकी पत्तियों से बने काढ़े का भी सेवन करते हैं. इसके नियमित सेवन से निश्चित तौर पर बवासीर से राहत मिलती है.

(2) अतिबला से शुगर कण्ट्रोल :

अतिबला शरीर में जाकर एक एंटीडायबिटिक कंपाउंड का काम करता है. इसके पत्तों का सेवन करने से शरीर इंसुलिन बनाने के लिए उत्तेजित हो जाता है जिससे रक्त में शर्करा का स्तर कम हो जाता है.

(3) पथरी को कम करने में अतिबला :

आयुर्वेद के अनुसार अतिबला के पत्तों व जड़ों में खास प्रकार के तत्व होते हैं, जिनसे पथरी बनने की समस्या कम हो जाती है. इन तत्वों के प्रभाव से पथरी पेशाब में घुलने लग जाती है और धीरे-धीरे शरीर से बाहर आने लगती है.

(4) पथरी में फायदेमंद :

पथरी की समस्या में अतिबला की पत्तियां मददगार मानी जाती हैं. इसकी पत्तियोंका काढ़ा बनाकर पीनेसे किडनी में जमा पथरी धीरे धीरे टूटने लगती है और मूत्र के रास्ते बाहर आने लगती है. कुछ समय तक इसका नियमित प्रयोग करने से पथरी की शिकायत कम हो जाती है. इसके लिए आप अतिबला की पत्तियों का काढ़ा दिनभर में 20 से 30 ग्राम तक पीएं. कुछ समय तक ऐसा करने से पथरी निकल जाएगी.

(5) अतिबला से खांसी का इलाज :

अतिबला में बलगम को पतला करने वाले गुण भी पाए जाते हैं. इसका सेवन करने से खांसी के साथ अंदर जमी बलगम बाहर निकल जाता है और रोग का जड़ से इलाज हो जाता है.

हालांकि, अतिबला से प्राप्त होने वाले उपरोक्त लाभ प्रमुख रूप से पारंपरिक चिकित्सा विधियों और कुछ अध्ययनों पर आधारित हैं. इसका प्रभाव हर व्यक्ति के शरीर पर अलग-अलग हो सकता है.

(6) आयुर्वेद में अतिबला को बल्य माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह शक्ति, स्फूर्ति और जीवन शक्ति को बढ़ाता है. इसका उपयोग चेहरे के पक्षाघात और जोड़ों के विकारों में किया जाता है. इसे गर्भाशय टॉनिक के साथ कामोद्दीपक के रूप में भी जाना जाता है.

(7) स्किन के लिए फायदेमंद :

अतिबला का सेवन करने से आपकी त्वचा संबंधी समस्याएं दूर होती हैं और त्वचा में नमी बरकरार रहती है. ऐसा माना जाता है कि नारियल के तेल के साथ अतिबला के चूर्ण की थोड़ी सी मात्रा मिलाने पर स्किन को दुगने लाभ होते हैं. इसके सेवन से त्वचा पर कील, मुहासे, दाने, फुनसी की समस्या नहीं होती है. साथ ही इसका प्रयोग मुंह पर करने से मुंह की नमी बरकरार रहती है.

(8) लिवर और कब्ज में मददगार :

अतिबला के पौधे में मौजूद एंटी माइक्रोबियल प्रॉपर्टीज आपके लिवर को स्वस्थ रखने में मदद करदता है. माना जाता है कि इस पौधे की अर्क शरीर में फ्री रेडिकल्स के प्रोडक्शन को रोकने में मददगार है. शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स हमारे लिवर को प्रभावित कर सकते हैं.

इस पौधे में फ्री रेडिकल्स को रोकने वाले गुण पाए जाते हैं, जिससे लिवर के स्वास्थ्य के लिए अतिबला एक बेहतरीन पौधा माना जाता है. वहीं कब्ज की बात करें तो यह कब्ज से भी छुटकारा पाने के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं. इसका सेवन शरीर में पीएच लेवल को बढ़ाता है और गैस्ट्रिक लेवल को कम करनें में सहयोग करता है. जिससे गैस से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है.

(9) अर्थराइटिस में मददगार :

हड्डियों से जुड़े विकारों को दूर करने के लिए अतिबला का सेवन खूब किया जाता है. इसमें पाए जाने वाले एंटी इंफ्लेमेटरी गुण अर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस के लिए फायदेमंद हैं. यह आपकी शरीर में बन रही सूजन को रोकने के साथ ही अर्थराइटिस के दर्द से भी छुटकारा दिलाता है. इसमें मौजूद एनालजेसिक गुण भी आपके जोड़ों के दर्द में राहत दिलाने में काफी मददगार होते हैं. इसका सेवन आपकी शरीर में बनने वाले अर्थराइटिस और ऑस्टोपोरोसिस के लक्षणों को भी कम करने में मदद करता है.

(10) घाव भरने में मददगार :

घाव भरने के लिए इस पौधे को रामबाण माना जाता है. इसमें पाए जाने वाले माइक्रोबियल, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी ऑक्सीडेंट प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं. जो आपके घाव को सुखाने और उसे भरने में काफी फायदेमद माना जाता है. यह चोट या घाव को सिकोड़कर उसे सुखा देता है और नई त्वचा लाने में मददगारार है. घाव सुखाने के लिहाज से अतिबला की पत्तियां बेहद कारगर मानी जाती हैं.

अतिबला के नुकसान :

अतिबला का एक दवा के रूप में सेवन करना आमतौर पर सुरक्षित रहता है. हालांकि, इसका अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने से यह शरीर में विषाक्त प्रभाव पैदा कर सकता है और इससे निम्न स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं :

*** पेट में दर्द होना.

*** सिर में दर्द.

*** सीने में जलन.

*** उल्टी या मतली.

गर्भवती या अन्य रोगियों को अतिबला से कुछ अलग व गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं.

अतिबला का उपयोग :

अतिबला का इस्तेमाल निम्न तरीकों से किया जा सकता है :

काढ़ा बनाकर :

पत्तों के चूर्ण को गर्म पानी के साथ.

पत्तों के रस को गर्म पानी के साथ.

जड़,छाल या पत्तों का लेप त्वचा पर लगाकर.

हालांकि, आपको किस प्रकार और कितनी मात्रा में अतिबला का इस्तेमाल करना चाहिए, इस बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें.

हम लोगोंने देखा की अतिबला का पौधा एक जड़ी-बूटी है. यह काफी वर्षों तक हरा-भरा रहने वाला, झाड़ीदार पौधा होता है. इसके रोएं कोमल, सफेद जैसे और मखमली होते हैं. इसके तने गोल और बैंगनी रंग के होते हैं.अतिबला की मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त दो अन्य प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा के लिए किया जाता है.

अनेक भाषाओं में अतिबला के नाम :

अतिबला का लैटिन नाम ऐबूटिलॉन इन्डिकम है. इसको (मालवेसी) कुल का पौधा कहा जाता है. इस पौधे को विभिन्न भाषाओं में निम्न नामों से पुकारा जाता है :

Hindi : कंघी, झम्पी.

English : इंडियन मैलो, कंट्री मैलो.

Sanskrit : अतिबला, कंकतिका.

Odia : नाकोचोनो, पीलिस

Urdu : कंघी.

Kannada : श्रीमुद्रिगिडा.

Gujarati : खपाट, कांसकी , डावली.

Tamil : पेरूनदुत्ती (Perundutti).

Telugu : तुत्तुरीबेंडा, बोटलाबेंडा.

Bengali : पोटारी (Potari).

Nepali : कंगियो , अतिबलु.

Punjabi : पीली बूटी, कंगी.

Marathi : पेटारी, कासुले.

Malayalam : वेलुराम, कट्टूराम, उरम.

Arabi : मस्त-उल-गुल. दीशार.

Persian : दरख्त-ए-शाहनाह (Darakht-e-shahnah).

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