भगवान को भोग लगाने की परंपरा प्राचीन काल से अस्तित्व में है. ऐसा माना जाता है कि भगवान को भोग लगाने से वह प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. भगवान को भोग लगाने के कुछ नियम भी हैं. जैसे कि भगवान को कभी भी नमक और मिर्च से बना भोग नहीं चढ़ाना चाहिए.
भगवान को भोग लगाने के बाद कुछ देर बाद भोग उठा लेना चाहिए. भोग लगाने के बाद सभी लोगों में प्रसाद बांटना चाहिए. पूजा समाप्त होने के बाद देर तक प्रसाद को मंदिर में नहीं रखना चाहिए.
भगवान को भोग लगाने के लिए सोना, चांदी, तांबा या पीतल का पात्र इस्तेमाल करना चाहिए. भोग लगाने के लिए आम के पत्ते का इस्तेमाल किया जा सकता है.
भोग लगाने से जुडी कुछ बातें :
*** भगवान को भोग लगाने से ईश्वर के प्रति सम्मान व्यक्त होता है.
*** भगवान को भोग लगाने से घर में सुख-शांति आती है.
*** हर मंदिर का अपना विशिष्ट प्रसाद होता है जो उस मंदिर की परंपरा और देवता के साथ जुड़ा होता है.
चाहे घर पर पूजा-पाठ हो मंदिर में, देवी-देवताओं की मूर्ति के समक्ष प्रसाद चढ़ाने की परंपरा रही है. प्रसाद में कई तरह के भोग शामिल होते हैं, जैसे खीर, मालपुए, लड्डू, चना-मिश्री, नारियल, गुड़-चना, हलवा और फल आदि. इसमें गुड़ चने के प्रसाद को महत्वपूर्ण माना गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किन देवी-देवताओं को चढ़ाना चाहिए गुड़-चने का प्रसाद और कैसे शुरू हुई गुड़-चना प्रसाद की परंपरा.
गुड़-चना प्रसाद का प्रचलन :
गुड़-चना भोग के संबंध में कहा जाता है कि, एक बार देवर्षि नारद भगवान विष्णु से आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे. लेकिन जब भी वो विष्णुजी के पास जाते तो विष्णुजी उन्हें पहले इस ज्ञान के योग्य बनने की बात कहते थे. इसके लिए नारदजी ने कठोर तप किए. लेकिन इसके बावजूद भी भगवान विष्णु से उन्हें आत्मा का ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ.
तब नारदजी धरती की ओर चल पड़े. उन्हें धरती लोक पर एक मंदिर दिखाई पड़ा, जहां उन्होंने साक्षात विष्णुजी को बैठे हुए देखा. उन्होंने देखा कि एक बूढ़ी महिला अपने हाथों से भगवान को कुछ खिला रही है. नारदजी उस महिला के पास गए और बड़ी उत्सुकता से उससे पूछा, हे माता ! आप नारायण को कौन सी दिव्य सामग्री खिली रही थीं, जिसे प्रभु आपके हाथों से प्रेमपूर्वक ग्रहण कर रहे थे ? बूढ़ी महिला ने नारादजी से कहा कि, उसने भगवान को गुड़-चने का भोग लगाया था.
इसके बाद नारदजी धरती पर रहकर जप-तप और व्रत करने लगे. उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा की और गुड़-चने का भोग लगाया. साथ ही लोगों में भी गुड़-चने का प्रसाद बांटने लगे.
नारदजी की भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन नारायण प्रकट हुए और उन्हें आत्मा का ज्ञान दिया. वहीं उस बूढ़ी महिला को बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई. भगवान श्री विष्णु नारद से बोले, सच्ची भक्ति वाला व्यक्ति ज्ञान का अधिकारी होता है. कहा जाता है कि इसके बाद से ही गुड़-चने प्रसाद प्रचलन शुरु हो गया. ऋषि, मुनियों से लेकर भक्त भी अपने इष्ट को गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
तिरुपति बालाजी का प्रसाद :
तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद बांटने की परंपरा की शुरुआत करीबन 200 साल पहले हुई थी. एक मान्यता के मुताबिक, जब भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति स्थापित की जा रही थी, तब एक बूढ़ी महिला हाथ में लड्डू का थाल लेकर आईं और प्रसाद चढ़ाने की मांग की. पुजारियों ने जब लड्डू का भोग लगाया, तो उसका स्वाद बहुत अच्छा लगा और उन्होंने बूढ़ी महिला से पूछा, तो वह गायब हो गईं. इस मान्यता के मुताबिक, देवी लक्ष्मी ने प्रसाद चढ़ाने का संकेत दिया था.
प्रसाद का मतलब यांनी प्रभु का साक्षात् दर्शन यांनी “प्रसाद”. अपने इष्टदेव को लगाए गए भोग को खाना या इस्तेमाल करना हिन्दू लोग अपना परम सौभाग्य समझते हैं, अतः भगवान या देवी-देवताओं को अर्पित भोग प्रसाद कहा जाता है.
पूजा-पाठ या आरती के बाद तुलसीकृत जलामृत व पंचामृत के बाद बांटे जाने वाले पदार्थ को ‘प्रसाद’ कहते हैं. पूजा के समय जब कोई खाद्य सामग्री देवी-देवताओं के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो वह सामग्री प्रसाद के रूप में वितरण होती है. इसे ‘नैवेद्य’ भी कहते हैं.
प्रचलित प्रसाद में गुड़-चना, फल, चना-मिश्री, नारियल-मिठाई, लड्डू , दूध और सूखे मेवे.
विष्णु को कोनसा भोग लगता हैं ? :
विष्णुजी को खीर या सूजी के हलवे का नैवेद्य बहुत पसंद है. खीर कई प्रकार से बनाई जाती है. खीर के अंदर किशमिश, बारीक कतरे हुए बादाम, बहुत थोड़ी-सी नारियल की कतरन, काजू, पिस्ता, चारौली, थोड़े से पिसे हुए मखाने, सुगंध के लिए एक इलायची, कुछ केसर और अंत में तुलसी डालकर बनाई जाती हैं.
भगवान शिव का प्रसाद (नैवेद्य) :
शिव को भांग और पंचामृत का नैवेद्य पसंद है. भोले को दूध, दही, शहद, शकर, घी, जलधारा से स्नान कराकर भांग-धतूरा, गंध, चंदन, फूल, रोली, वस्त्र अर्पित किए जाते हैं. इसके अलावा शिवजी को रेवड़ी, चिरौंजी और मिश्री भी अर्पित की जाती है.
हनुमानजी का प्रसाद (नैवेद्य) :
हनुमानजी को हलुआ, पंच मेवा, गुड़ से बने लड्डू या रोठ, डंठल वाला पान और केसर- भात बहुत पसंद हैं. इसके अलावा हनुमानजी को कुछ लोग इमरती भी अर्पित करते हैं.
लक्ष्मीजी का प्रसाद (नैवेद्य) :
लक्ष्मीजी को धन की देवी माना गया है. कहते हैं कि अर्थ बिना सब व्यर्थ है. लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए उनके प्रिय भोग को लक्ष्मी मंदिर में जाकर अर्पित करना चाहिए.
लक्ष्मीजी को सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न, केसर-भात बहुत पसंद हैं.
दुर्गाजी का प्रसाद (नैवेद्य) :
माता दुर्गा को शक्ति की देवी माना गया है. दुर्गाजी को खीर, मालपुए, मीठा हलुआ, पूरणपोळी, केले, नारियल और मिष्ठान्न बहुत पसंद हैं. नवरात्रि के मौके पर उन्हें प्रतिदिन इसका भोग लगाने से हर तरह की मनोकामना पूर्ण होती है, खासकर माताजी को सभी तरह का हलुआ बहुत पसंद हैं.
सरस्वतीजी का प्रसाद (नैवेद्य) :
माता सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है. ज्ञान कई तरह का होता है. स्मृतिदोष है तो ज्ञान किसी काम का नहीं. ज्ञान को व्यक्त करने की क्षमता नहीं है, तब भी ज्ञान किसी काम का नहीं. ज्ञान और योग्यता के बगैर जीवन में उन्नति संभव नहीं. अत: माता सरस्वती के प्रति श्रद्धा होना जरूरी है.
माता सरस्वती को दूध, पंचामृत, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू तथा धान का लावा पसंद है. सरस्वतीजी को यह किसी मंदिर में जाकर अर्पित करना चाहिए, तो ही ज्ञान और योग्यता का विकास होगा.
गणेशजी का प्रसाद (नैवेद्य) :
गणेशजी को मोदक या लड्डू का नैवेद्य अच्छा लगता है. मोदक भी कई तरह के बनते हैं. महाराष्ट्र में खासतौर पर गणेश पूजा के अवसर पर घर-घर में तरह-तरह के मोदक बनाए जाते हैं.
मोदक के अलावा गणेशजी को मोतीचूर के लड्डू भी पसंद हैं. शुद्ध घी से बने बेसन के लड्डू भी पसंद हैं इसके अलावा आप उन्हें बूंदी के लड्डू भी अर्पित कर सकते हैं. नारियल, तिल और सूजी के लड्डू भी उनको अर्पित किए जाते हैं.
श्रीराम – श्रीकृष्ण का प्रसाद (नैवेद्य) :
भगवान श्रीरामजी को केसर भात, खीर, धनिए का भोग आदि पसंद हैं. इसके अलावा उनको कलाकंद, बर्फी, गुलाब जामुन का भोग भी प्रिय है. तथा भगवान श्रीकृष्ण को माखन और मिश्री का नैवेद्य बहुत पसंद है. इसके अलावा खीर, हलुआ, पूरनपोळी, लड्डू और सिवइयां भी उनको पसंद हैं.
माता कालिका और भैरव का प्रसाद :
माता कालिका और भगवान भैरवनाथ को लगभग एक जैसा ही भोग लगता है. हलुआ, पूरी और मदिरा उनके प्रिय भोग हैं. किसी अमावस्या के दिन काली या भैरव मंदिर में जाकर उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित करें. इसके अलावा इमरती, जलेबी और 5 तरह की मिठाइयां भी अर्पित की जाती हैं.
10 महाविद्याओं में माता कालिका का प्रथम स्थान है. गूगल से धूप दीप देकर, नीले फूल चढ़ाकर काली माता को काली चुनरी अर्पित करें और फिर काजल, उड़द, नारियल और पांच फल चढ़ाएं. कुछ लोग उनके समक्ष मदिरा अर्पित करते हैं. इसी तरह कालभैरव के मंदिर में मदिरा अर्पित की जाती है.
प्रसाद नैवेद्य चढ़ाए जाने के नियम :
*** नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है.
*** नैवेद्य में नमक की जगह मिष्ठान्न रखे जाते हैं.
*** प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है.
*** नैवेद्य की थाली तुरंत भगवान के आगे से हटाना नहीं चाहिए.
*** शिवजी के नैवेद्य में तुलसी की जगह बेल और गणेशजी के नैवेद्य में दूर्वा रखते हैं.
*** नैवेद्य देवता के दक्षिण भाग में रखना चाहिए.
*** कुछ ग्रंथों का मत है कि पक्व नैवेद्य देवता के बाईं तरफ तथा कच्चा दाहिनी तरफ रखना चाहिए.
*** भोग लगाने के लिए भोजन एवं जल पहले अग्नि के समक्ष रखें. फिर देवों का आह्वान करने के लिए जल छिड़कें.
*** तैयार सभी व्यंजनों से थोड़ा-थोड़ा हिस्सा अग्निदेव को मंत्रोच्चार के साथ स्मरण कर समर्पित करें. अंत में देव आचमन के लिए मंत्रोच्चार से पुन: जल छिड़कें और हाथ जोड़कर नमन करें.
*** भोजन के अंत में भोग का यह अंश गाय, कुत्ते और कौए को दिया जाना चाहिए.
*** पीतल की थाली या केले के पत्ते पर ही नैवेद्य परोसा जाए.
*** देवता को निवेदित करना ही नैवेद्य है. सभी प्रकार के प्रसाद में निम्न पदार्थ प्रमुख रूप से रखे जाते हैं :
दूध-शकर, मिश्री, शकर-नारियल, गुड़-नारियल, फल, खीर, भोजन इत्यादि पदार्थ.