माता सीता का जन्म स्थल सीतामढ़ी.

सीता समाहित स्थल (सीतामढ़ी) मंदिर भदोही जिले में विद्यमान है. यह मंदिर इलाहबाद और वाराणसी के मध्य स्थित जंगीगंज बाज़ार से 11 कि.मी. की दुरी पर गंगा के किनारे है. मान्यता है कि इस स्थान पर माँ सीता से अपने आप को धरती में समाहित कर लिया था. यहाँ पर हनुमानजी की 110 फीट ऊँची मूर्ति है जिसे विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति होने का गौरव प्राप्त है.

माता सीता भगवान श्री राम की अर्धांगिनी थीं और महाराज जनक की पुत्री थीं. उन्हें लक्ष्मी जी का अवतार भी माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि जब विष्णु जी के अवतार के रूप में भगवान श्री राम ने धरती पर अवतार लिया तब माता सीता ने लक्ष्मी जी के अवतार के रूप में जन्म लिया था.

रामायण को हिंदू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है. इसके सभी पात्रों का अलग महत्व है. प्रभु श्री राम को हम भगवान के रूप में पूजते हैं और माता सीता को भी उनके साथ हमेशा पूजा जाता है. माता सीता प्रभु श्री राम की अर्धांगिनी थी और महाराज जनक की पुत्री थी.

माता सीता जी की महिमा ऐसी है कि आज भी प्रभु श्री राम से पहले देवी सीता का नाम लिया जाता है. यदि हम माता सीता के जन्म की बात करें तो आज भी उनके जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. सीता जी का जन्म एक रहस्य ही है. आइए जानते हैं माता सीता के जन्म से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे में.

धरती से प्रकट हुईं थी माता सीता :

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सीता भगवान जनक को जमीन के नीचे मिली थी. महर्षि वाल्मीकि जी लिखित रामायण के अनुसार राजा जनक के समय में एक बार मिथिला राज्य में अकाल पड़ गया. तब ऋषियों ने राजा जनक से यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा जिससे वर्षा हो और उनका कष्ट दूर हो.

यज्ञ की समाप्ति के अवसर पर राजा जनक अपने हाथों से हल लेकर खेत जोत रहे थे तभी उनके हल का नुकीला भाग जिसे सीत कहते हैं किसी कठोर चीज से टकराया और हल वहीं अटक गया. जब उस स्थान खुदाई हुई तब एक कलश मिला जिसमें एक सुंदर कन्या थी. राजा जनक ने उस कन्या को कलश से बाहर निकाला और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया. जनक की पत्नी उस समय निःसंतान थी इसलिए बेटी को पाकर वो अत्यंत प्रसन्न हुईं. हल के जिस हिस्से से टकराकर माता सीता मिलीं थी जिसे सीत कहा जाता है, इसलिए ही उनका नाम सीता रखा गया. वहीं जनक पुत्री के रूप में उन्हें जानकी कहा गया.

लव कुश का जन्म :

रामायण में कथा है कि देवी सीता धरती से ही प्रकट हुई थी और अंत में धरती में समा गईं. जिस स्थान पर देवी सीता भूमि में समाई थी उस स्थान को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. एक मान्यता के अनुसार देवी सीता जहां धरती में समाई थीं वह स्थान आज नैनीताल में है. इस स्थान का रामायण में बड़ा महत्व है क्योंकि यहीं पर देवी सीता ने अपने जुड़वां पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया था.

यह स्थान ऐसा है जहां आकर आप हैरान रह जाएंगे क्योंकि घने जंगलों के बीच में जहां जमीन पर कदम रखना भी खतरनाक माना जाता है क्योंकि कभी भी बाघ का हमला हो सकता है और मतवाले हाथी आक्रमण कर सकते हैं वहां एक खुले मैदान में देवी सीता का मंदिर है.

देवी सीता के जीवन से संबंधित यह स्थान नैनीताल का जिम कार्बेट नेशल पार्क है जो बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित है. यहां कभी महर्षि बाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था. भगवान श्री राम द्वार देवी सीता जी को अयोध्या से निकाले जाने के बाद लक्ष्मणजी देवी सीता को यहीं छोड़ आए थे. यहीं पर देवी सीता ऋषि के आश्रम में रहीं इसलिए इस स्थान को सीताबनी के नाम से जाना गया.

रामायण की कथा के अनुसार जिस समय भगवान राम ने देवी सीता को वनवास का आदेश दिया था उस समय देवी सीता गर्भवती थी. ऋषि बाल्मीकि के आश्रम में ही इन्होंने अपने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया था और इनका पालन-पोषण किया था. इस घटना की याद मेंं सीताबनी में देवी सीता की प्रतिमा के साथ उनके दोनों पुत्रों को भी दिखाया गया है.

सीताबनी का उल्लेख कई धर्म ग्रंथों में मिलता है. रामायाण, स्कंदपुराण और महाभारत में भी इस तीर्थ के महत्व को दर्शाया गया है. महाभारत के 83वें अध्याय में वर्णित श्लोक संख्या 49 से 60 श्लोक तक सीताबनी का उल्लेख किया गया है.

स्कंदपुराण में जिन सीतेश्वर महादेव की महिमा का वर्णन किया गया है, वह यहीं पर हैं. स्कंदपुराण के अनुसार कौशिकी नदी, जिसे वर्तमान में कोसी नदी कहा जाता है के बाईं ओर शेष गिरि पर्वत है. यह सिद्ध आत्माओं और गंधर्वों का विचरण स्थल है.

लक्ष्मणपुरा वह स्थान बताया जाता है, जहां लक्ष्मणजी देवी सीता को अपने रथ से उताकर वन में छोड़ गए थे. तब उदास सीता जी ने बाल्मीकि ऋषि के आश्रम में शरण ली थी.

आश्रम के पास ही रामपुरा नामक स्थान है. बताया जाता है कि यही वह स्थान है, जहां लव-कुश ने भगवान राम द्वारा छोड़ा गया अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ा था.

यहां विद्यमान मंदिर के पुजारीजी के अनुसार, दो पहाड़ियों के बीच की खाई और खाई में स्थित कुंज की वह स्थान है जहां से माता सीता धरती में समा गई थी. पुजारीजी का कहना है कि देवी सीता जी की पुकार पर धरती माता ने पहाड़ी को दो भागों में चीर दिया था और देवी सीता को अपनी गोद में स्थान दिया था.

सीता बनी में जल की तीन धाराएं स्थित हैं. इन्हें सीता-राम और लक्ष्मण धारा कहा जाता है. इन धाराओं की विशेषता यह है कि गर्मियों में इनका जल ठंडा और सर्दियों में गर्म रहता है.

सीता समाहित सीतामढ़ी कैसे पहुंचें :

हवाई जहाज द्वारा :

निकटतम हवाई अड्डा इलाहाबाद हवाई अड्डा (75 किमी) और वाराणसी हवाई अड्डा (86 किमी) है.

ट्रेन द्वारा :

निकटतम रेलवे स्टेशन भदोही (40 किमी) और मिर्जापुर (44 किमी) हैं.

सड़क के द्वारा :

यह जगह इलाहाबाद और वाराणसी के बीच गंगा नदी की तरफ ग्रांड ट्रंक रोड से करीब 12 किलोमीटर दूर है.

( समाप्त )

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