केशवजी नाइक चॉल के लोग आज भी उत्साह से 132 साल पुराने रीतिरिवाज से मनाते हैं, सार्वजनिक गणेशोत्सव.

Lane towards Keshavji Naik Chawl

आज महाराष्ट्र ही नहीं पुरे भारत देश में बड़े उत्साह के साथ गणेशोत्सव के त्यौहार को मनाया जाता हैं. मुंबई शहर कुछ सबसे पुराने गणेश मंडलों के लिए जाना जाता है और इस साल, मुंबई के गिरगांव में खादिलकर रोड पर स्थित केशवजी नाइक चॉल में श्री सार्वजनिक गणेशोत्सव संस्थाने अपने उत्सव के 132 वें वर्ष का जश्न मनाया.

सन 1893 में श्री लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने गणेश चतुर्थी के उत्सव की शुरुआत की, क्योंकि उन्हें लगा कि यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ लोगों को एकजुट करने का अच्छा प्रयास है. उनके शुरुआती समर्थकों में केशवजी नाइक चॉल, गिरगांव में रहने वाले दो व्यक्ति थे.

यह मंडल लाउडस्पीकर के उपयोग के बिना आयोजित अपने पारंपरिक समारोहों के लिए आज भीखूब प्रसिद्ध है. मंडल के अनुसार, उन्होंने 1901 में स्वतंत्रता सेनानी श्री लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मेजबानी की थी.

संस्था की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि पेशवाओं के शासनकाल के समय भी गणपति उत्सव सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता था. पेशवा शासन के अंत के बाद, 1818 से 1892 तक, महाराष्ट्र में गणेशोत्सव एक निजी पारिवारिक मामला रहा, जब तक कि तिलक ने इस परंपरा को पुनर्जीवित नहीं किया. वे बड़ौदा और ग्वालियर की रियासतों में भव्य समारोहों को देखकर प्रेरित हुए और महाराष्ट्र में भी उसी उत्साह को दोहराने की कोशिश की.

यहाँका गणपति पंडाल अपने पारंपरिक और पर्यावरण के प्रति जागरूक उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है. इसे केशवजी नाइक चाल के भीतर दो इमारतों के बीच एक छोटी सी खुली जगह में स्थापित किया गया है. गणेश की मूर्ति हमेशा दो फीट ऊंची रही है और इसे गिरगांव में रहने वाले तीसरी पीढ़ी के मूर्ति निर्माता श्री राजेंद्र मोरे ने तैयार किया है.

केशवजी नाइक चॉल में बीते 132 वर्षों से सतत गणपति पंडाल सजते रहे हैं, लेकिन इस पंडाल की अपनी अलग ही खासियत है. इसमें मुख्य खासियत इस पूजा पंडाल का अपना संविधान है. इस पंडाल में इन 132 वर्षों में बप्पा के स्वरुप में भी कोई बदलाव नहीं आया है. इस साल लगातार 132वीं बार पूजा पंडाल सजा है. बड़ी बात यह कि इन 132 सालों में पूरी दुनिया बदल गई, लेकिन इस पंडाल के अंदर कुछ नहीं बदला.

यहां तक कि बप्पा की प्रतिमा का जो स्वरुप 131 साल पहले था, वही स्वरुप आज भी है. यही नहीं, बप्पा की पूजा- विधि का जो विधान पहले साल अपनाया गया, आज भी उसी तरीके से उसी विधान का पालन किया जाता है. इसके लिए विधिवत संविधान बना हुआ है. गणपति पूजन के लिए बने इस संविधान के प्रति इस चॉल में रहने वाले करीब 150 परिवार प्रतिवद्ध हैं.

यहां श्री सार्वजनिक गणेश उत्सव समिति के अनुसार यह पंडाल चॉल में रहने वाले 150 परिवार मिलकर उत्सव करते हैं और इसके लिए पहली बार सन 1935 में बने संविधान का पालन करते हैं.

समिति के अनुसार इस संविधान में आज तक कोई संशोधन नहीं हुआ है. इस संविधान में पूर्वजों ने विधान किया था कि इस चॉल में रहने वाला हर परिवार अपनी कमाई का 0.3 फीसदी हिस्सा हर साल चंदे के रूप में यहां जमा करेगा और इसी खर्चे से बप्पा का उत्सव मनाया जाएगा. इसके बाद से आज भी हर परिवार अपनी कमाई का यह हिस्सा चंदा जमा करते आ रहे हैं.

गिरगांव में केशवजी नाइक चॉल गणपति मंडल की स्थापना सन 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने की थी. बाल गंगाधर तिलक ने लोगों को एकजुट करने गणपति चतुर्थी के सार्वजनिक उत्सव मनाने का बीड़ा उठाया था,

मंडल के अनुसार जब से बाल गंगाधर तिलक ने यहां पर सार्वजनिक गणपति उत्सव शुरू किया है तब से पूजा तथा दर्शन की परंपराएं और रीति रिवाज नहीं बदले हैं. 11 दिन के दौरान एक दिन महिलाओं के लिए होता है जो आरती सहित सभी कार्य करती हैं, जबकि एक दिन युवाओं के लिए है.

पिछले 132 वर्षों से यहां दो फुट की पर्यावरण अनुकूल गणपति की मूर्ति है. इस साल भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी मुंबई में अमेरिकन महावाणिज्यदूत के साथ मंडल में पहुंचे थे. ( समाप्त )

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