ब्रह्माण्ड अनंत हैं. उसका ना तो कोई अंत है, न कोई किनारा हैं और न ही कोई शूरुआत, ठीक उसी ही प्रकार शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब यह सृस्टि नहीं थी, तब भी शिव थे जब कुछ भी न होगा तब भी शिव ही होंगे.
भगवान शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय. शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं. इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णताकी शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है. परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है.
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जैसे…..आदिदेव, अभय, अभिराम, अनिरुद्ध ,अचिंत्य, अक्षत, अकुल, अमोघ, अनघ, अत्रेय. महाकाल, किरात, शंकर, महेश, चंद्रशेखर, जटाधारी,नागनाथ, सदाशिव, मृत्युंजय, त्रयम्बक, विश्वेश, शशिशेखर,शम्भू, पिनाकी, वामदेव, विरूपाक्ष, कपर्दी, नीललोहित, विष्णुवल्लभ, रूद्र,शूलपाणी, खटवांगी, शिव को महादेव या हर के नाम से भी जाना जाता है. शिव, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं.
भगवान शिव जी को पशुपतिनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह पशु पक्षियों व जीवआत्माओं के स्वामी हैं. शिव – शक्ति के मिलन से अर्धनारीश्वर नाम प्रचलित हुआ. महादेव का अर्थ है महान ईश्वरीय शक्ति. भोलेनाथ का अर्थ है कोमल हृदय, दयालु व आसानी से माफ करने वालों में अग्रणी. यह विश्वास किया जाता है कि भगवान शंकर आसानी से किसी को भी प्रसन्न हो जाते हैं. लिंगम – पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है.
नटराज – नटराज को नृत्य का देवता मानते है क्योंकि भगवान शिव तांडव नृत्य के प्रेमी है.
शिवरात्रि की महिमा :
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी महाशिवरात्रि कहा जाता है. इस दिन शिव उपासना भुक्ति एवं मुक्ति दोनों देने वाली मानी गई है, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा विष्णु ने शिवलिंग की पूजा सृष्टि में पहली बार की थी और महाशिवरात्रि के ही दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था. इसलिए शिव जी ने इस दिन को वरदान दिया था और
महाशिवरात्रि भगवान शिव का बहुत ही प्रिय दिन है.
माता पार्वती की पति रूप के महादेव शिव को पाने के लिये की गई तपस्या का फल महाशिवरात्रि है. यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है. आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है.
महादेव शिव का जन्म उलेखन कुछ ही ग्रंथोंमें मिलता है. परंतु शिव अजन्मा है उनका जन्म या अवतार नहीं हुआ. महाशिवरात्रि पर्व भारत वर्ष में बड़ा धूम-धाम से मनाया जाता है.
शिव महापुराण क्या हैं ? :
शिव महापुराण में देवो के देव महादेव अर्थात् महाकाल के बारे में विस्तार से बताया गया है शिव पुराण में शिव लीलाओ और उनके जीवन की सभी घटनाओ के बारे में उल्लेख किया गया है. शिव पुराण में प्रमुख रूप से 12 सहिंताये है. महादेव को एक बार इस दुनिया को बचाने के लिए विष का पान करना पड़ा था, और उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण करना पड़ा था. इसी वजह से उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है.
कैलाश मानसरोवर :
कथाओं के अनुसार कैलाश सरोवर को शिव का निवास स्थान माना जाता है.भगवान शिव के अनेक अवतार है प्रलयकाल के समय इनका अवतार निराकार ब्रह्मम जिसे कि उत्तराखण्ड में निरंकार देवता के नामसे भी पूजा जाता है एक ऐसा अन्य अवतार है भैरवनाथ अवतार जिसे भैरव या कालभैरव के नाम से पूजा जाता है.
अर्थ के साथ शिव के नाम :
आशुतोष : जो हमेशा खुश और संतोष में रहता है.
सदाशिव : सदा लल्याणकारी.
अनिकेत : जिसका घर न हो.
जगदीश : सृष्टि के मालिक.
अभय : जिसको किसी का डर न हो.
जतिन : उलझे बालों वाले, अनुशासित.
रुद्र : शिव का गुस्से वाला रूप.
सुप्रित/सुप्रिता : जिसे सब प्यार करते हो.
अमृत्यु : अमर.
भवेश : पूरी दुनिया के देवता.
अभिदेव : सबसे बड़े भगवान.
*** भगवान शिव की विशेषताएं :
*** भगवान शिव को “आशुतोष” कहा
जाता है क्योंकि वे अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं.
*** भगवान शिव को योग, ध्यान और कलाओं का संरक्षक देवता माना जाता है.
*** भगवान शिव के गले में नाग राजा वासुकी है.
*** भगवान शिव को “भोलेनाथ” भी कहते हैं और एक लोटा जल से भी वे प्रसन्न हो जाते हैं.
*** भगवान शिव को आदियोगी (पहले योगी) के रूप में भी जाना जाता है.
*** भगवान शिव को “रुद्र” भी कहा जाता है.
*** भगवान शिव को ” महाकाल ” भी कहा जाता है, यानी समय.
*** भगवान शिव जी को देवों के देव महादेव कहा जाता है.
*** भगवान शिव को विश्वनाथ और नटराज भी कहा जाता है.
*** भगवान शिव के माथे पर तीसरी आंख है.
*** भगवान शिव के हथियार के रूप में त्रिशूल हैं.
*** भगवान शिव के कई रूप हैं, जैसे शिवलिंग, शंकर, आदि.
सभी देवताओं में सिर्फ भगवान शिव जी का स्वरूप सबसे खास और अनोखा माना जाता है. भगवान शिव स्वर्ण या रत्नजड़ित कीमती आभूषणों की जगह विभिन्न प्रकार के सांप और नागों को शरीर पर धारण करते हैं. तथा उनकी जटाओं में साक्षात चंद्र देव और मां गंगा विराजमान हैं. वस्त्रों के स्थान पर पूरे शरीर पर भस्म और व्याघ्र चर्म धारण करते हैं.
चन्द्रमा :
बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान शिव का एक नाम सोम भी है और सोम चंद्रमा को कहा जाता है. इसी कारण से भगवान शिव और चंद्रमा का दिन सोमवार होता है.
नाग या सर्प :
माना जाता है की, भगवान शिव जी को नागों या सर्प से विशेष लगाव है. भगवान श्री शिव जी का एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नागों के ईश्वर होने के कारण भगवान शिव का नाग या सर्प से अथाह प्रेम है. भगवान के गले में लिपटे हुए नाग कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं.
त्रिशूल :
भगवान शिव त्रिशूल को हमेशा ही अपने साथ रखते हैं. त्रिशूल को तीन तरह के कष्टों दैनिक, दैविक और भौतिक के विनाश का सूचक भी माना जाता है. त्रिशूल में तीन तरह की शक्तियां होती हैं जोकि सत, रज और तम हैं. त्रिशूल के तीन शूल सृष्टि के उदय, संरक्षण और लयीभूत होने का प्रतिनिधित्व करते हैं.
भभूत या भस्म :
भगवान शिव अपने शरीर पर श्रृंगार स्वरूप भस्म धारण करते हैं. भस्म या भभूत जीवन का सत्य है, यहां जो भी जन्मा है उसे एक न एक दिन भस्म के रूप में मिट्टी में मिल ही जाना है. भस्म आकर्षण, मोह आदि से मुक्ति का प्रतीक माना गया है.
जटा :
भगवान शिव को अंतरिक्ष के देवता के रूप में भी जाना जाता है, आकाश उनकी जटा स्वरूप माना गया है. भगवान शिव की जटा वायुमंडल का प्रतीक मानी जाती है.
वृषभ :
भगवान शिव का वाहन वृषभ माना जाता है. वृषभ को धर्म का प्रतीक कहा जाता है. वृषभ को नंदी भी कहा जाता है, जो हमेशा भगवान शिव के साथ रहते हैं. मान्यता के अनुसार, नंदी ने ही धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना की थी.
डमरू :
वाद्य यंत्र के रूप में भगवान शिव जी डमरू को धारण करते हैं. डमरू को नाद का प्रतीक माना जाता है. नाद उस ध्वनि को कहा जाता है जो ब्रह्मांड में निरंतर बनी हुई है, इसे ‘ॐ’ कहा जाता है. भगवान शिव को संगीत का जनक भी कहा जाता है. कहा जाता है कि भगवान शिव ने सबसे पहले संगीत और नृत्य किया था. भगवान शिव दो तरह का नृत्य करते हैं, एक तो तांडव जिसमें सृष्टि का विनाश होता है और दूसरा नृत्य वे डमरू के साथ करते हैं जोकि आनंद प्रदान करता है. माना जाता है कि नाद पर ध्यान की एकाग्रता रखने से धीरे-धीरे समाधि लगने लगती है, डमरू इसी नाद-साधना का प्रतीक है.
गंगा :
भगवान शिवजी ने अपनी जटाओं में मां गंगा के प्रचंड वेग को धारण किया हुआ है, उनकी जटा से होकर ही गंगा सौम्य वेग के साथ धरती पर उतरती है. इसी कारण से ही भगवान शिव को जल चढ़ाने की परंपरा है.
तीसरा नेत्र :
तीन नेत्र होने के कारण भगवान शिव को त्रिलोचन भी कहा जाता है. तीसरी आंख का मतलब होता है निरंतर सचेत रहना या पूर्ण सजकता से देखना.
हाथी और शेर की खाल :
भगवान शिव हस्ति चर्म यानी हाथी और व्याघ्र चर्म यानी शेर की खाल को धारण करते हैं. हाथी अभिमान का और शेर हिंसा का प्रतीक माना जाता है. भगवान शिव का इन दोनो की चर्म धारण करने का अर्थ है कि उन्होंने अहंकार और हिंसा दोनों को दबा रखा है.
त्रिपुंड तिलक :
भगवान शिव अपने ललाट पर त्रिपुंड तिलक धारण करते हैं. त्रिपुंड तिलक त्रिलोक्य और त्रिगुण का प्रतीक है. यह सतोगुण, रजोगुण और तपोगुण का प्रतीक भी माना जाता है