महिला नागा साधु कैसी बनती हैं ?

mahila naga sadhvi

महिला नागा साधु बनने के लिए कई कठिन परीक्षाओं से गुज़रना पडता है. इन परीक्षाओं में……

महिला को जीते-जी अपना पिंडदान कराना होता है. इससे वह अपनी पुरानी पहचान और जीवन से पूरी तरह मुक्त हो जाती है. महिला को सिर मुंडवाना पडता है. महिला को 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है.

महिला को गुरुओं को विश्वास दिलाना होता है कि वह इसके योग्य है. महिला को कठिन तप और साधना करनी पड़ती है. महिला को दुनिया से दूर रहकर तप करना पड़ता है.

भारत में नागा बाबा की परंपरा आदिगुरु श्री शंकराचार्य ने स्थापित की थी. दिगंबर देह, मस्तक पर तिलक, पूरे शरीर पर भभूत, हाथ में भाला और उग्र रूप होने के बावजूद नागा बाबा संसार के हितैषी और कठोर तपस्वी होते हैं. कहा जाता है कि पुरे भारत में नागा साधुओं की संख्या 5 लाख से अधिक है.

महिला नागा साधुओं को एक पिला वस्त्र लपेटकर रहना पड़ता है और यही वस्त्र पहनकर स्नान करना पड़ता है.

कुछ नागा साधु तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में भी रहते हैं.

पुरुष नागा साधू की तरह महिला नागा साधू भी इश्वर की भक्ती और साधना को समर्पित होते हैं. उनके जीवन में कठीण अनुशासन, तप और पूजा पाठका समावेश होता हैं. महिला नागा साधु सामान्य महिलां की तुलनामें अतिशय अलग आयुष्य जीते हैं.

भारत का महाकुंभ मेला देश तथा।विदेश में बेहद लोकप्रिय है. इस मेले का आयोजन 12 साल में एक बार होता है. इस महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा से होती है. वहीं, समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है. महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज के संगम किनारे किया जा रहा है. इस दौरान अधिक संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि स्नान करने से जातक को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है महाकुंभ में नागा साधु भी शामिल होते हैं और वे वस्त्र धारण नहीं करते हैं. वे अपने शरीर भस्म लगाकर रहते हैं.

नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं. नागा साधु ऐसा मानते हैं कि व्यक्ति निर्वस्त्र जन्म लेता है और यह उनकी अवस्था प्राकृतिक है. इसलिए जीवन में सदैव नागा साधु वस्त्र धारण नहीं करते हैं और निर्वस्त्र रहते हैं.

किसी इंसान को नागा साधु बनने के लिए 12 साल का समय लगता है. नागा पंथ में शामिल होने के लिए इंसान को नागा साधु के बारे में महत्वपूर्ण बातों की जानकारी होना आवश्यक होता है. कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट का त्याग कर दिया जाता है, जिसके बाद वे जीवन में सदैव निर्वस्त्र रहते हैं.

नागा साधु कुंभ मेले में भाग लेते हैं और फिर हिमालय चले जाते हैं. नागा साधु अखाड़ों या हिमालय में रहते हैं और आमतौर पर भारत में महाकुंभ उत्सव के दौरा में भाग लेने के लिए सभ्यता का दौरा करते हैं.

नागा साधु वस्त्र नहीं पहन सकते. वे एक भगवा वस्त्र पहन सकते हैं, वह भी पूरे शरीर को ढकने के लिए नहीं. एक नागा साधु अपने शरीर को सजाने के लिए सांसारिक चीजों का उपयोग नहीं कर सकता, वह केवल अपने शरीर पर राख मल सकता है, जो उसका एकमात्र श्रृंगार है.

महाकुंभ (2025) का आयोजन 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है. इस मेले का हर श्रद्धालुओं और सन्‍यासियों को बेसब्री से इंतजार रहता है. समागम का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है और देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते हैं.

महाकुंभ मेला देश-विदेश में बेहद लोकप्रिय है। इस समागम का आयोजन 12 साल में एक बार होता है. इस महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा से होती है. वहीं, इसका समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है. महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज के संगम किनारे किया जा रहा है. इस दौरान अधिक संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि स्नान करने से जातक को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है. महाकुंभ में नागा साधु भी शामिल होते हैं और वे वस्त्र धारण नहीं करते हैं. वे अपने शरीर भस्म लगाकर रहते हैं.

निर्वस्त्र नागा साधु ऐसा मानते हैं कि व्यक्ति निर्वस्त्र जन्म लेता है और यह अवस्था प्राकृतिक है. इसलिए जीवन में सदैव नागा साधु वस्त्र धारण नहीं करते हैं और निर्वस्त्र रहते हैं.

किसी इंसान को नागा साधु बनने के लिए 12 साल का समय लगता है। नागा पंथ में शामिल होने के लिए इंसान को नागा साधु के बारे में महत्वपूर्ण बातों की जानकारी होना बेहद आवश्यक होता है. कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट का त्याग कर दिया जाता है, जिसके बाद वे जीवन में सदैव निर्वस्त्र रहते हैं.

कुंभ मेले में अक्सर नागा साधुओका जमावडा देखने को मिलता हैं. ” कुंभ मेला ” भारत के चार पवित्र शहरों में लगता है. (1) प्रयागराज, (2) हरिद्वार, (3) नासिक, और (4) उज्जैन.

कुंभ मेले से जुड़ी कुछ और खास बातें :

कुंभ मेले का आयोजन हर तीन साल में होता है. अर्ध कुंभ मेला हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है. महाकुंभ मेला हर 144 साल में प्रयागराज में लगता है. साल 2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में लगेगा.

कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है. माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी.

कुंभ मेले को दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक सभा माना जाता है. कुंभ मेले में एक करोड़ से ज़्यादा लोग शामिल होते हैं. यूनेस्को ने कुंभ मेले को विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल किया है.

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