प्राकृतिक पवित्र समुद्र जीव ” शंख.”

krishna shank

शंख एक ऐसा प्राकृतिक समुद्र जीव है जिसे हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है. शंख को देवताओं को बुलाने और शुभ अवसरों पर बजाने के लिए प्रयोग किया जाता है. भगवान श्री श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था. महाभारत के युद्ध में, श्रीकृष्ण द्वारा इस शंख का प्रयोग किया गया था.

पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि अत्यंत शक्तिशाली और दूर दूर तक सुनाई देने वाली थी. पाञ्चजन्य शंख को हिंदू धर्म में एक पवित्र और शुभ प्रतीक के रूप में देखा जाता है.

महाभारत मे करीब सभी यौद्धाओं के पास शंख होते थे. उनमें से कुछ यौद्धाओं के पास तो चमत्कारिक शंख होते थे. जैसे भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी.

अर्जुन के पास देवदत्त नामका शंख था. युधिष्ठिर के पास अनंतविजय था. भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक था. सभी के शंखों का महत्व और शक्ति अलग-अलग थी. कई देवी देवतागण शंख को अस्त्र रूप में धारण किए हुए हैं. महाभारत में युद्धारंभ की घोषणा और उत्साहवर्धन हेतु शंख नाद किया गया था.

असली शंख की पहचान :

असली शंख की पहचान करने का तरीका है उसे बजाकर देखना. यदि उस शंख में से निकलने वाली ध्वनि में किसी तरह की कंपन नहीं है और आवाज़ खोखली लग रही है तो वह शंख असली नहीं है. शंख में पाउडर या केमिकल से बनावट है, तो वह काफी स्पष्ट दिखती है.

शंख के प्रमुख 3 प्रकार होते हैं :

(1) दक्षिणावृत्ति शंख,

(2) मध्यावृत्ति शंख तथा

(3) वामावृत्ति शंख.

इन शंखों के कई उप प्रकार होते हैं. शंखों की शक्ति का वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है.

इसे वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख भी कहते हैं. शंख के अन्य प्रकार में लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, देव शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरूड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख, गोमुखी शंख, पांचजन्य शंख, अन्नपूर्णा शंख, मोती शंख, हीरा शंख, शेर शंख आदि प्रकार के होते हैं.

दक्षिणावर्ती शंख :

पुण्य के ही योग से प्राप्त होता है. यह शंख जिस घर में रहता है, वहां पर लक्ष्मी की वृद्धि होती है. इसका प्रयोग अर्घ्य आदि देने के लिए विशेषत: होता है.

वामवर्ती शंख :

यह शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है. इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है. इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं.

दक्षिणावर्ती शंख के प्रकार :

दक्षिणावर्ती शंख दो प्रकार के होते हैं नर और मादा. जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता हैं.

शंख के विविध नाम :

शंख, समुद्रज, कंबु, सुनाद, पावनध्वनि, कंबु, कंबोज, अब्ज, त्रिरेख,जलज,अर्णोभव,महानाद, मुखर, दीर्घनाद, बहुनाद, हरिप्रिय, जलोद्भव,

सुरचर, धवल, विष्णुप्रिय, स्त्रीविभूषण, पांचजन्य, अर्णवभव आदि.

अथर्ववेद के अनुसार शंखसे राक्षसों का नाश होता है. भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हमें मिलता है. यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंका जाता है.

अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था. शंखनाद से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है.

शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों मेंसे एक है. लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है. यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है.

शंख सूर्य, चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है. तीर्थाटन से जो हमें लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है.

पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं. नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है. यह कालसर्प योग में रामबाण का काम करता है.

विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर में सुशोभित है, जिसकी लंबाई करीब आधा मीटर है तथा वजन दो कि.ग्रा. है.

शंख एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र वस्तु है, जिसका उपयोग विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों में किया जाता है.

( समाप्त )

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