फिल्मों में छह सात गाना होना आम बात हैं. मगर क्या आपको यह पता हैं ?
कि आजसे 93 साल पुरानी वो फिल्म, जिसके नाम दर्ज है कुल 72 गानों का रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया.
फिल्मों में गाने अगर हिट हो तो, वह फ़िल्म दर्शक भी रूचि से देखते हैं.
बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्रीज मे म्यूजिक और गानों का रिश्ता बहुत पुराना है. जब भी कोई हिंदी फिल्म आती है, तो उसके गानों को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा होती हैं. गानों के बिना दर्शकों को फ़िल्म अधूरी लगती है. गाने न केवल फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाती हैं, बल्कि दर्शकों को रूचि जगाती हैं. शॉले जैसी कई फिल्मों मे फ़िल्म की शुरुआत मे टाइटल म्यूजिक या म्यूजिक बजाया गया हैं, जिसे दर्शकों ने पसंद किया हैं.
आज हम आपको ऐसी एक फिल्म के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके नाम 72 गानों को रिकॉर्ड है. आज तक कोई उसका कोई रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाया.
93 साल पुरानी वो फिल्म हिंदी सिनेमा की शुरुआत से ही गाने फिल्मों की पहचान बनते आए हैं. कई बार तो फिल्म फ्लॉप हो जाती है लेकिन उसके गाने सुपरहिट हो जाते हैं. भारत में संगीत और फिल्मों का मिलन ऐसा है कि दोनों को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता. आज भी जब कोई पुरानी फिल्म याद की जाती है, तो सबसे पहले उसके गाने ही जहन में आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक फिल्म ऐसी भी थी, जिसमें इतने गाने थे कि वो आज तक एक रिकॉर्ड बना हुआ है, जिसको कोई नहीं तोड़ पाया और वो गाने अपने दौर के हिट गाने थे.
93 साल पहले 1932 में रिलीज हुई फिल्म ‘इंद्र सभा’ जिनमें टोटल 72 गाने थे. ये रिकॉर्ड आज तक कोई दूसरी फिल्म नहीं तोड़ पाई है. ‘इंद्र सभा’ करीब 3 घंटे 31 मिनट लंबी फिल्म थी. इससे पहले 1925 में भी इसी नाम की एक साइलेंट फिल्म बन चुकी थी, जिसे मणिलाल जोशी ने बनाया था. लेकिन उसमें न कोई डायलॉग थे और न ही म्यूजिक. 1932 में जब साउंड वाली फिल्मों का दौर शुरू हुआ, तब पहली बार ‘इंद्र सभा’ नाम से एक टॉकी फिल्म सामने आई, जिसमें सबसे ज्यादा 72 गाने थे.
फ़िल्म ‘इंद्र सभा’ को जे.एफ. मदन की कंपनी मदन थिएटर ने बनाया था. जे.एफ. मदन उस समय के जाने-माने थिएटर आर्टिस्ट और फिल्म के नामी डिस्ट्रीब्यूटर थे. ये फिल्म एक मशहूर उर्दू नाटक पर आधारित थी, जो सबसे पहले 1853 में स्टेज पर दिखाया गया था. इस फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में जहानारा कज्जन और मास्टर निसार नजर आए थे. जहानारा कज्जन ना सिर्फ एक शानदार एक्ट्रेस थीं बल्कि बेहतरीन सिंगर भी थीं और उन्हें उस समय ‘बंगाल की नाइटिंगेल’ कहा जाता था. उस समय इस फिल्म ने 72 गानों से इतिहास रचा था.
फ़िल्म की अवधि 3 घंटे 31 मिनट की थी. इस फिल्म में 9 ठुमरियां, 4 होली के गाने, 15 नॉर्मल गाने, 31 गजलें, 2 चौबोला, 5 छंद और 5 और गाने शामिल थे. फिल्म की कहानी एक दयालु राजा की थी, जो अपनी प्रजा से बहुत प्यार करता है और हर दुखी इंसान की मदद करता है. इसी कहानी में एक अप्सरा आती है, जो राजा की परीक्षा लेने आती है, लेकिन खुद ही उसे दिल दे बैठती है और चीजें रोमांचक मोड़ लेती हैं. जहानारा कज्जन ने इस फिल्म में सब्ज परी का रोल निभाया था, जबकि मास्टर निसार गुलफाम के किरदार में दिखे थे. दोनों की जोड़ी को खूब पसंद किया जाता था.
दोनों की जोड़ी ने उस जमाने में गानों और अभिनय के जरिए काफी नाम कमाया था. जहानारा कज्जन ने कई सालों तक फिल्मों में काम किया, लेकिन 1945 में उनका निधन हो गया. तब वे महज 30 साल की थीं. इस फिल्म की लोकप्रियता के बाद साल 1956 में फिर से ‘इंद्र सभा’ नाम की एक फिल्म बनाई गई.
इस बार इसे नानूभाई बी ने डायरेक्ट किया था. हालांकि इस फिल्म में 72 गाने नहीं थे, लेकिन बताया जाता है कि ये फिल्म 1932 वाली ‘इंद्र सभा’ से प्रेरित थी. आज भी जब फिल्मों के गानों की बात होती है, तो ‘इंद्र सभा’ का नाम जरूर सामने आता है.
आपको पता हैं ? बॉलीवुड की कुछ प्रसिद्ध हिंदी फिल्में बिना किसी गाने के ही हिट रही हैं. इनमें….
(1) “इत्तेफाक” (1969),
(2) “द लंचबॉक्स” (2013),
(3) “मसान” (2015),
(4) “भूत” (2003), और
(5) “अग्ली” (2013) शामिल हैं.
कुछ और बिना गाने वाली हिंदी फिल्मों के नाम :
*** इत्तेफाक (1969) :
यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित यह फिल्म राजेश खन्ना और नंदा अभिनीत एक प्रसिद्ध थ्रिलर है, जो बिना किसी गाने के बनी थी.
*** द लंचबॉक्स (2013) :
यह फिल्म दो लोगों की कहानी है, जो एक लंच बॉक्स के माध्यम से मिलते हैं, बिना किसी गाने के.
*** मसान (2015) :
यह फिल्म गंगा किनारे के एक गांव की कहानी कहती है, जिसमें गाने नहीं हैं.
*** भूत (2003) :
राम गोपाल वर्मा द्वारा निर्देशित इस हॉरर फिल्म में भी कोई गाना नहीं था.
*** अग्ली (2013):
यह फिल्म एक लड़के की कहानी कहती है, जो बिना गाने के एक सामाजिक मुद्दे को उजागर करती है.
इन फिल्मों को बिना गाने के भी हिट होने के कुछ कारण हो सकते हैं :
कहानी पर ध्यान :
इन फिल्मों में कहानी और पात्रों पर अधिक ध्यान दिया गया है, बजाय गानों पर.
कलात्मकता :
इन फिल्मों में निर्देशन और लेखन में कलात्मकता दिखाई गई है, जो बिना गानों के भी दर्शकों को बांधे रखती है.
विषय :
इन फिल्मों में सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण विषयों को उठाया गया है, जो बिना गानों के भी दर्शकों को आकर्षित करते हैं.
इन फिल्मों के अलावा, कई अन्य हिंदी फिल्में भी हैं जिनमें गाने नहीं हैं या गानों की संख्या बहुत कम है.
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