हरी सब्जी की एक काल्पनिक कहानी.

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मैं हरी सब्जी हूं. मैं विविध प्रकार में मार्किट में उपलब्ध हूं. मुझे लोग हरी सब्जी के नामसे पुकारते हैं. मैं पालक, मेथी, ब्रोकली, गाजर, मटर, टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च, भिंडी, बैंगन आदि प्रकार में उपलब्ध हूं. जब मैं खेत में होती हूं तो मुझे किसान लाड, प्रेम से मेरी परवरिश करता हैं. मुझे अनावृष्टी, अति वृष्टी, आंधी, तूफान और किट से बचाकर मुझे मेरे पालक किसान मित्र द्वारा मेरी रक्षा की जाती हैं.

कुछ दिन बाद में परिपक्व हो जाती हूं. मेरे पालक मित्र किसान से मुझे अब जुडा होनेका समय आता हैं. किसान मुझे ठोक मार्किट में बेच के चला जाता हैं, जहां अनेकों प्रकारकी ताजी सब्जी उपलब्ध होती हैं. जाते हुए किसान को मैंने देखा तो वो नाराज था.

उसकी बॉडी लैंग्वेज से स्पस्ट पता चल रहा था कि उसे महेनत के मुताबिक मुआवजा नहीं मिला हैं. जहां तक मेरी बात थी, मैं खुश थी. मुझे पता था कि जिसका जन्म हैं, उसकी मूत्यु निश्चित हैं. मुझे भी एक दिन मरना ही था मगर मैं मेरे अंतिम समय में किसीके उदर पूर्ति के लिए भोजन का निमित्त बनने वाली थी.

मुझे खुदरा व्यापारी द्वारा खरीद के एक छोटे टेम्पो में भरकर लाया गया. सुबह के ठीक 6 बजे थे. मुझे स्वच्छ पानी से ठीक से धोया गया. मैं स्वच्छ और स्वस्थ दिखाई दु, उसके लिए तमाम प्रयत्न किये गए. अब मैं मार्किट में बिकने के लिए बिलकुल तैयार थी. मुझे करीब 10 बजे मार्किट में लाया गया.

मेरे खुदरा व्यापारी की अब तो बिक्री भी नहीं हुई थी, उससे पहले एक बाजार का ठेका लेने वाला ठेकेदार का

आदमी आया. उसने एक पावती दी जिसपर 30 रुपये लिखा था. उसने 60 रुपये की मांग की और बोला कि पावती चाहिए तो 60 रूपया और पावती नहीं चाहिए तो 30 रूपया. मैंने देखा कि रुपये बचानेके चक्करमें अधिकांश लोग बिना पावती के 30 रूपया देना पसंद कर रहे थे.

सुबह के 11 बजे होंगे. अचानक मार्किट में अफरा दफ़री मच गई. फेरी वाले इधर – उधर दौड़ने लगे. कोई पतली गली से निकल गए तो किसीने अपना सामान आजूबाजू की दुकान में छुपा लिया. मेरे मालिक ने पहलेसे ही नव दो ग्यारह होने का प्लान बना लिया था. क्योंकि आधा घंटा पहले उसको फोन आ गया था. और बताया गया था कि पालिका की गाडी आने वाली हैं.

निश्चित इसके लिए मेरे मालिक ने प्रशासन अधिकारी की जेब गरम की होंगी. सुबह का सत्र पूरा हुआ. अब शाम की पारी थी. शाम 5 बजे फिरसे मेरे उपर पानी का छिटकाऊ करके स्फूर्ति दायक ताजी किया गया.

करीब शाम 7 बजे तक मेरे खुदरा व्यापारी की आधी बिक्री हो चुकी थी. हमारे बाजु का खुदरा व्यापारी दो महीने के लिए अपने गांव जा रहा था. इसके लिए उसको अपनी जगह दूसरों को भाड़े से देकर जाना था. प्रति महीना ₹. 2500 के हिसाब से 5000 रुपये में डील नक्की हुई. वाह रे दुनिया रोड भी बिक चूका हैं.

कुछ देर बाद एक दूसरा आदमी आया. उसे परमेनंट जगह चाहिए थी. उसने कहा कि यदि मुझे कायम स्वरूप में जगह मिलती हैं तो वो ढाई लाख ब्लैक में पगड़ी देने तैयार हैं. पगड़ी मतलब दो नंबरी व्यवहार. जिसमे लिखित में व्यवहार नहीं होता फ़िरभी उसके भी नियम होते हैं. आजसे 50 साल पहले मुंबई रियल एस्टेट में पगड़ी चलती थी. आज भी हजारों मुंबई की ईमारत पगड़ी की मौजूद हैं.

शाम के नव बज चुके थे. इत्तफाक से आज एक तारीख थी. दो पालिका अधिकारी प्रोटेक्शन मनी वसूलने आये थे. महीने का 500 रूपया उसे देने पड़े. उस वक़्त वहां उपस्थित एक ग्राहक ने कहा कि यदि हप्ता ना दो तो ? क्या होगा. तो पहला उसीका माल उठायेंगे जिसने हप्ता नहीं दिया. बाकी सब तब तक भाग जायेंगे.

एक जमना था, जब स्थानीय गुंडे टपोरी व्यापारियों से प्रोटेक्शन मनी वसूलते थे, अब ये काम अब पालिका मिली भगत तक पहुंच गया हैं.

शाम के 10 बज चुके थे, अनाथ आश्रम चलाने वाली एक वृद्ध महिला आयी. मेरे व्यापारी ने बची कूची सब्जी मुद्दल में उस वृद्ध महिला को दे दी. मैं खुश थी कि मैं गरीब अनाथ आश्रम के बच्चों का भोजन बनूँगी.

मित्रो, यह थी हरी सब्जियाँ की काल्पनिक कथा, आधी हकीकत आधा फ़साना.

( समाप्त )

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