डरवानी HORROR फ़िल्म में लालटेन.

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हिन्दी डरवानी HORROR फ़िल्म में वातावरण को गंभीर बनाने के लिए, रात के अंधेरे में जलती लालटेन को दिखाना आम बात थी और हैं भी. आज हम लोग लालटेन से जुडी कुछ रोचक बातोंकी जानकारी लेंगे.

लालटेन ( LALTEN ) की शोध का इतिहास जटिल है, और किसी एक व्यक्ति को इसका आविष्कारक कहना सही नहीं होगा. लालटेन का विकास कई चरणों में हुआ और विभिन्न लोगों और संस्कृतियों ने इसमें योगदान दिया.

लालटेन एक केस है, जो आमतौर पर धातु से बना होता है, पारदर्शी या पारभासी किनारों के साथ, जिसका उपयोग लैंप को रखने और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता था.

“लालटेन” हिंदी में “लैंटर्न” शब्द का एक संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ है दीपक या लैंप. हिंदी सिनेमा इंडस्ट्रीज में “लालटेन” का इस्तेमाल कई तरह से किया गया है, जैसे कि फिल्मों के शीर्षक या पात्रों के नामों में. “जग्गू की लालटेन” नामक एक फिल्म है, जो सन 2022 में रिलीज़ हुई थी, और यह एयरटेल एक्सस्ट्रीम प्ले पर उपलब्ध है.

“लालटेन” शब्द का उपयोग हिंदी सिनेमा में कई अन्य संदर्भों में भी किया गया है. उदाहरण के लिए, “ग्रीन लैंटर्न” नामक एक सुपरहीरो फिल्म है, जो डीसी कॉमिक्स पर आधारित है. इस फिल्म में, ग्रीन लैंटर्न एक सुपरहीरो है जो अपने लैंटर्न से ग्रीन लाइट का उपयोग करता है.

अतः “लालटेन” और हिंदी सिनेमा के बीच एक गहरा संबंध है, और इसका उपयोग फिल्मोंके शीर्षक, पात्रोंके नामों और विभिन्न संदर्भों में किया जाता है.

अभिनेता यश कुमार के साथ पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का किरदार निभानेवाली अभिनेत्री स्मृति सिन्हा ने भी पूरी कोशिश की है कि दर्शक एक झलक में राबड़ी देवी के रूप में उन्हें देखे और उनके अंदाज को बखूबी पसंद करें. इसमें स्मृति सिन्हा ने राबड़ी के वैवाहिक जीवन से लेकर संघर्ष तक की कहानी में अपना शानदार अभिनय कर किरदार को जीवंत करने की कोशिश की है.

मशहूर लालटेन जो राज कपूर ने 1960 की क्लासिक फिल्म ” जिस देश में गंगा बहती है ” में उठाई थी ? अब आप उस लालटेन को ता :1 मार्च से “प्रधानमंत्री म्यूजियम” की एक प्रदर्शनी में देख सकते हैं. कपूर परिवार ने दशकों तक इस लालटेन को संभालकर रखा था और हाल में जब वे राज कपूर की 100वीं जयंतीके अवसर पर आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे, तो उन्होंने यह कीमती निशानी उन्हें भेंट की थी. सिनेमा के इस महानायक को श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब इस लालटेन को प्रधानमंत्री म्यूजियम को दान कर दिया है.

लालटेन का आविष्कार किसने किया ?

लालटेन एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग आस-पास की जगह को रोशन करने के लिए किया जाता है. इसे पोर्टेबल या किसी स्थान पर स्थिर किया जा सकता है. इसका उपयोग किसी भी तरह के प्रकाश स्रोत के रूप में किया जा सकता है.

सिग्नलिंग, सजावट, धार्मिक अनुष्ठानों या समारोहों में. वे मूल रूप से एक प्रकाश स्रोत होते हैं जो एक कंटेनर में बंद होते हैं जो लौ की रक्षा करते हैं ताकि हवा इसे बुझा न सके लेकिन प्रकाश इसके माध्यम से गुजर सके. इसे गैर-ज्वलनशील से लेकर ज्वलनशील तक कई तरह की सामग्रियों से बनाया जा सकता है.

लालटेन का उल्लेख सबसे पहले एग्रीजेंटम के एम्पेडोकल्स और प्राचीन ग्रीस के कवि थियोपोम्पस द्वारा लिखित दस्तावेजों में किया गया है. इस बात के भी प्रमाण हैं कि मिस्र और चीन जैसी अन्य सभ्यताओं ने भी उनका इस्तेमाल किया था.

प्राचीन चीन में, उन्हें कागज़, रेशम या जानवरों की खाल से बनाया जाता था जबकि निर्माण लकड़ी और बांस से किया जाता था. सरलतम लालटेन में प्रकाश स्रोत के रूप में मोमबत्तियों का उपयोग किया जाता है. मोमबत्ती को कांच के पैनल वाले टिन के डिब्बे या सिलेंडर में रखा जाता है और ऊपर एक छेद या छेद होता है ताकि मोमबत्ती को ऑक्सीजन मिल सके.

जापान में लालटेन त्यौहार :

जापान अपने लालटेन त्यौहारों के लिए प्रसिद्ध है जो आमतौर पर हर साल वसंत या शरद ऋतु में मनाया जाता है. इस त्यौहार के दौरान, लोग सड़कों, पार्कों या नदी के किनारों पर पत्र या चित्रों के साथ हजारों लालटेन लटकाते हैं. इस त्यौहार का उद्देश्य मृतकों को याद करना और उनके लिए प्रार्थना करना है, साथ ही जीवित लोगों के लिए शांति और सौभाग्य लाना है.

बिजली आने से पहले रोशनी की प्राप्ति के लिए दुनियाभर में कई प्रकार की लालटेन बनीं. जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन आदि देशों में उस दौर में जो लालटेन/लैंप बने उनमें से ज्यादातर का नायाब कलेक्शन आफताब लईक के पास हैं. संग्रह के इस पूरे सफर पर वे एक किताब भी लिख रहे हैं. ये संग्रह अंग्रेजों के उस दौर को याद कराता है जब रोशनी लाने के अलग-अलग तरीकों पर काम हो रहा था.

खुशनूर ” हिस्टोरिकल केरोसिन लैंप ऑफ इन इंडिया 1863 से 1947 ” विषय पर शोध कर रही हैं. अपने शोध में इन्होंने देशभर में अलग-अलग पुराने लैंप का इतिहास खंगाला. खुशनूर के बयान के अनुसार रोशनी के लिए इन लैंप का इतिहास रोचक है. शुरुआत में जो लैम्प/लालटेन का इस्तेमाल होता था उनमें व्हेल के तेल या वनस्पति तेल को इस्तेमाल किया जाता था.

वनस्पति तेल के इस्तेमाल से रोशनी तो होती थी लेकिन धुंआ भी खूब होता था. सन 1863 में केरोसिन आने के बाद नया ईंधन मिला जो लैंप के लिए उपयुक्त था. तभी से इसमें कई वैरायटी का निर्माण शुरू हो गया. बताया गया लालटेन यानि लैंप उस समय स्टेटस सिंबल भी था. इसका नया वर्जन सबसे पहले धनी लोगों के पास आता था.

इतिहासकारों का मानना ​​है कि पूर्वी हान राजवंश ने प्रकाश के स्रोत के रूप में पारंपरिक लालटेनों का निर्माण किया था. स्काई लालटेन को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि चीनी लालटेन, उड़ने वाली लालटेन, फ्लोटिंग लालटेन और पेपर हैंगिंग लालटेन. इनका नाम उनके उपयोग के उपयुक्त स्थान के आधार पर रखा गया है.

” स्काई लालटेन ” 100 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल हैं. ईंधन सेल जलता है और लालटेन को ऊपर ले जाता है , जिससे कोई बर्बादी नहीं होती. तत्वों के संपर्क में आने के बाद रेत को विघटित कर देगा और इसका कोई निशान नहीं छोड़ेगा.

पर्यावरण के अनुकूल स्काई लालटेन उपलब्ध है. इको लालटेन अन्य लालटेन की तरह ही काम करता है, सिवाय इसके कि ईंधन सेल पहले से ही जुड़ा हुआ है और इसमें कोई तार नहीं है. इस तरह के लालटेन जानवरों को किसी भी आकस्मिक चोट से बचाते हैं और यह पारंपरिक लालटेन की तुलना में कुछ हफ़्ते में बहुत तेज़ी से खराब होता है.

हिंदुस्तान में दीपावली के अवसर पर घरौं में ऊंचे स्थान पर लालटेन एक प्रकार का कंडिल प्रकाश के स्रोत के रूप से उपयोग किया जाता है. यह एक धातु या मिट्टी के बर्तन में तेल या घी भरकर उसमें बत्ती लगाकर जलाते है.

तेल की लालटेन में तेल का उपयोग किया जाता है, जो बत्ती को जलाने के लिए आवश्यक होता है. घी की लालटेन में घी का उपयोग किया जाता है, जो बत्ती को जलाने के लिए आवश्यक होता है.

लालटेन का महत्व विभिन्न विशेष सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में बहुत अधिक है. यह प्रकाश का एक स्रोत है जो अंधकार को दूर करने में मदद करता है. लालटेन का उपयोग प्रकाश के स्रोत के रूप में किया जाता है, जो अंधकार को दूर करने में मदद करता है. इसके अलावा लालटेन का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है, जहां इसे पूजा-पाठ और हवन में उपयोग किया जाता है. लालटेन का सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है, जहां इसे विभिन्न त्योहारों और समारोहों में उपयोग किया जाता है.

दीपावली के दिन अपने घरों में कंडिल लगाते हैं, और छठ के समापन के दिन इसे उतार लेते हैं. कंडिल को इस 7 दिन की अवधि में रोजाना जलाने की परंपरा है, लेकिन इसे 24 घंटे तक नहीं जलाना है, बल्कि इसे केवल शाम को ही जलाना है.

दीवाली को दीपोत्सव के नाम से भी जाना जाता हैं इस दिन भगवान श्रीराम अपने 14 वर्ष के वनवास को पूरा करके माता सीता समेत भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या नगरी पहुंचे थे. यहां अयोध्या वासियों ने घी के जगमग दीपों से उनका स्वागत किया था इस दिन से ही देशभर में दीवाली का त्योहार मनाया जा रहा है. इसके साथ ही दीपावली में मिट्टी के दीये के साथ-साथ अन्य दीया जलाने की भी परंपरा रही है.

आधुनिक 21वींसदी के युग में बिजली से प्रकाशमय होने वाले रंग बिरंगी कंडिल बाजार में उपलब्ध होते हैं. ये भी लालटेन कंडिल का ही नया प्रकार हैं. जिसमे तेल की जगह बिजली और कांच की जगह प्लास्टिक या कागज का यूज़ होता हैं.

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