आज बालकनी में बैठकर बारिस का नजारा देख रहा था. अचानक मेरे मन मस्तिक में विचार आया कि हम बचपन में सुना करते थे कि राम भरोसे हिंदू होटल. मेरे मनके खोजी स्वाभाव के घोड़े दौड़ने लगे. कुछ मनन चिंतन के बाद एक तर्क पर पंहुचा कि, राम भरोसे हिन्दू होटल” एक मुहावरा है जिसका इस्तेमाल उन स्थितियों के लिए किया जाता है जब कोई काम बिना किसी योजना या तैयारी के, केवल भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाता है.
इसका मतलब ये भी होता हैं कि काम को “राम” (भगवान) के भरोसे छोड़ दिया गया है, और यह उम्मीद की जाती है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, भले ही कोई ठोस प्रयास या प्रबंधन न हो. यह मुहावरा अक्सर उन स्थितियों में इस्तेमाल होता है जहाँ कोई व्यक्ति या समूह किसी काम करने में लापरवाही बरतता है, या बिना सोचे-समझे कोई काम शुरू कर देता है, और फिर यह उम्मीद करता है कि सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा.
मिशाल के तौर पर, हम कह सकते हैं कि, यदि कोई व्यक्ति बिना किसी तैयारी के परीक्षा में बैठता है और फिर कहता है कि “राम भरोसे” है, तो इसका मतलब है कि वह बिना किसी तैयारी के परीक्षा में गया है, और अब भाग्य के भरोसे है कि वह पास हो जाएगा.
संक्षेप में, “राम भरोसे हिन्दू होटल” का मतलब है, बिना किसी योजना, तैयारी, या प्रबंधन के, केवल भाग्य के भरोसे कोई काम करना.
आज-कल तो आम आदमी से लेकर राजनीति तक सब राम भरोसे ही चल रहा हैं. एक दिन में भारत के राम भरोसे जनता के करोड़ों रूपये को राम भरोसे खर्चने वाले संसद का सत्र भी तो राम भरोसे ही चलता है.
शहर में नये रोड तो बन जाते हैं, मगर वो कितने लम्बे तक चलेगा, वो तो राम जाने. जानकारों की खोज को माने तो सरकारी रोड टेंडेंरो का काम, टेंडेंरो की लागत का 50 प्रतिशत ही होता है. अर्थात आधे पैसे आपस में चाउ हो जाते हैं, जिससे काम उच्च क़्वालिटी का नहीं हो पाता. यही करण हैं कि पहली बारिस में ही रोड का खस्ताहाल हो जाता हैं. इसे कहते हैं राम के भरोसे हिंदू होटल जैसा काम होना.
जब भी बारिस का समय आता हैं, स्थानीय प्रशासन पुरानी इमारतो को एक नोटिस देकर अपनी जिम्मेदारी को सलामत कर देते हैं, और रहवासियों को राम भरोसे छोड़ देते हैं.
आज मिरा भाईंदर शहर क्षेत्र की कई ईमारत धोखादायक घोषित कर के पालिका गिरा तो देती हैं, मगर उसका पुनः विकास में आठ- दस साल क्यों लग जाता हैं ? कही अधिकारीयों की मिलीभगत तो नहीं हैं ?
रियल एस्टेट में पारदर्शिता क्यों बर्ती नहीं जाती हैं. पूरा मिरा भाईंदर की ईमारत , दलदल की खारी जमीन पर आजसे तीस से चालीस साल पहले बनाई गई हैं. जो आज राम भरोसे हिंदू होटल की तरह टिकी हुई हैं. शहर का विकास आराखड़ा 20 साल पीछे चल रहा हैं. क्या ये राम भरोसे हिंदू होटल की तरह नहीं हैं
देश- शहर सर्वोपरी होना चाहिए मगर अक्सर देखा जाता हैं की सभी पार्टियां अपने पक्षो को सर्वोपरि बनाने में व्यस्त हैं. अपने पक्ष को सर्व श्रेष्ठ बनाने के लिए नित नये हथकंडे अपना रहे हैं. न्याय व्य वस्था राम भरोसे चल रही हैं. स्नातक बेरोजगार गुम रहे हैं. युवा धन बर्बाद हो रहा हैं. न्यायालयों के बारेमें क्यों दूरदर्शिता की नीति अपनाई नहीं जा रही है.
रिश्वतखोर पकडे तो जाते हैं मगर रिश्वत देकर छूट जाते हैं और रिश्वत देकर फिर से काम पर भी लग जाते है. इसे कहते हैं राम भरोसे हिंदू होटल का खटाखत – खटाखत चलना.
बाजार में मिल रहे ज्यादातर फल केमिकल युक्त होते है, इसीलिए लोगोंमे गंभीर बीमारिया फ़ैल रही हैं. स्वास्थय विभाग राम भरोसे हिंदू होटल के नक्से कदमो पर चल रहा हैं.
तीन साल से मिरा भाईंदर महानगर पालिका का आम चुनाव नहीं हुआ हैं. अंतिम चुनाव 2017 में हुए थे. जिसकी मुदत 2022 को पूरी हो चुकी हैं. शहर अधिकारीयों के भरोसे चल रहा हैं, इसे कहते हैं, राम भरोसे हिंदू होटल का चलना.
आजसे तीस साल पहले बनी मिरा भाईंदर की अधिकांश बिल्डिंगे जर्ज़रित हो चुकी हैं. नगर पालिका बिल्डिंगो को धोखादायक जाहिर तो कर देती हैं, मगर पुनः विकास आठ – दस साल तक
राम भरोसे क्यों रखा जाता हैं ?
आतंकवादी अपनी हरकतो से बाज़ नहीं आते. सड़क से लेकर संसद तक हमला होता हैं. इसे कहते हैं, देश की सुरक्षा भी राम भरोसे ही है
अदानी – अंबानी नोटों के ढेरो पर सो रहे हैं, लेकिन आम जनता तो राम भरोसे ही है.
माना जाता हैं कि इक्कीसवीं सदी का भगवान तो कंप्यूटर है. लेकिन मुझे तो इसके निर्माता पर भी तरस आता है, भाई सब कुछ तो बना बहुत सही. बहुत सटीक. अत्याधुनिक और तकनिकी रूप से अत्यन्त सुदृढ़. लेकिन कंप्यूटर भी राम भरोसे ही है. राम ( RAM : Random Access Memory) गया तो आपका कंप्यूटर भी राम भरोसे ही समझिये. ( समाप्त)