मिरा भाईन्दर शहर में रहते हुए भी कम लोगों को पता होगा की भाईन्दर स्टेशन से पूर्व में करीब आठ किलोमीटर की दुरी पर घोड़बंदर गांव में घोड़बंदर का किला विद्यमान है.
पुर्तगाल शासन की हकूमत के समय यहा पर अरबी घोड़े का व्यापार होता था. अतः घोड़े का बंदर ( पोर्ट ) से यह स्थल का नाम ” घोड़ेबंदर ” से आगे चलकर ” घोड़बंदर ” के नामसे प्रसिद्ध हुआ.
पहले घोड़बंदर से बोरीवली पश्चिम होते हुए प्रभादेवी तक का मार्ग को घोड़बंदर रोड के नामसे पहचाने जाता था. बादमे इस रोड का नाम ” एस. वी. रोड ” यानी “स्वामी विवेकानंद रोड ” का नामकरण कर दिया गया.
घोड़बंदर का किला पुर्तगाल ने इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम रखनेके लिये बनाया था. यह किला सन 1672 में पुर्तगाल की हकूमत तले था. शिवाजी महाराज ने स्वयं इस किले को जीतनेका प्रयत्न किया था मगर असफल रहे थे.
बादमे सन 1737 में मराठा सेनापति श्री नरवीर चिमाजी अप्पा के नेतृत्व में लड़ाई करके किला जीत लिया था. श्री चिमाजी अप्पा ने घोडबंदर का किला जीतकर नेक्स्ट टारगेट वसई किले के जीत का मार्ग खुला कर दिया था . बताया जाता है की इस लड़ाई में पुर्तगाल के करीब 250 सैनिक मारे गये थे. सन 1818 में यह किला अंग्रेजो ने जीत लिया. और ईस्ट इंडिया कंपनी का जिला प्रशासनिक मुख्य कार्यालय बनाया गया.
प्राचीन काल में कल्याण व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था. अरबी समुद्र से वसई भाईन्दर होते उल्लास नदी से वहा पहुँचना आसान था. अतः पुर्तगाल ने अपनी हकूमत का वर्चस्व ज़माने के लिये वसई का किला, उत्तन चौक का किला, घोड़बंदर किला, गायमुख किला, नागला बंदर किला जैसे अनेक किले बनाये. ताकी आते जाते वाहनों पर नजर रखी जा शके.
धर्म के प्रति पुर्तगाल की भूमिका शंकास्पद थी. जबरन धर्मान्तर करना, दूसरे धर्म के लोगों को प्रताड़ित करना, छल करना जैसी हरकतों की वजहसे श्री शिवाजी महाराज नाराज थे. यही कारण आगे चलकर पोर्तुगलो के पतन का मुख्य कारण बना.
वर्तमान घोड़बंदर किले का सुशोभीतकरण हो रहा है. शिवसेना आमदार श्री प्रताप सरनाईक के आठ साल लम्बे संघर्ष के बाद प्रशासन ने इस किले का पुनः ” शिवसृस्टि ” के रूपमे जीर्णोद्धार करनेका निर्णय लिया है, जिसकी जिम्मेवारी मिरा भाईन्दर महा नगर पालिका को सोपी गई है. किले के मूल स्ट्रक्चर को जैसे थे रखकर दुरुस्त किया जा रहा है. ताकी इस ऎतिहासिक किले का लोग आनंद उठा सके.
सालोसे यह किला पुरातन विभाग की देखभाल में था. स्थानीय लोग इसका क्रिकेट खेल एवं कुछ असामाजिक तत्व दारू पार्टी के लिये उपयोग करते थे. यहा पर अनेक फिल्मों का फिल्मांकन हुआ है. किला परिसर से उल्लास नदी का नजारा प्रेक्षणीय है. मगर अब प्रसाशन की रहेम नजरसे यह किला नये रंग, नये रूप के साथ ” शिव सृस्टि ” बनकर उभरकर सामने आ रहा है.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.