इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की | (जलियाँवाला बाग़ की करुण कहानी.) Jaliyan wala bagh

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 आज मुजे जलियाँवाला बाग मे शहीद हुये हमारे क्रांतिवीर लोगों की बात करनी है. 20 वी सदी के प्रारंभ से देश स्वतंत्रता की लड़ाई मे एकजुट हो चूका था. आज इधर तो कल उधर पुरे देश भर मे आजादी का ब्युगल बज चूका था. अंग्रेजो के खिलाफ धरना , मोर्चा और जनजागृति का अभियान तेजी से आगे बढ़ रहा था. ब्रिटिश साम्राज्य की नींव खोखली होते जा रही थी. 

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इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की | (जलियाँवाला बाग़ की करुण कहानी.) Jaliyan wala bagh 4

           उस वक्त भारत मे राज कर रही ब्रिटिश सरकार ने उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को गहराई से लिया और भारतीय प्रजा पर अंकुश , अत्याचार का दौर शुरू हुआ. क्रूर ब्रिटिश सरकारने राष्ट्रीय आंदोलन को खत्म करनेके उद्देश्य को लेकर रॉलेट ( Rowlatt ) एक्ट की स्थापना की. जिसके लिये एक विशेष समिति बनाई गई थी जिसके अध्यक्ष सर सिडनी आर्थर टेलर रॉलेट थे. 

     ता : 10 दिसंबर 1917 मे इस एक्ट की स्थापना की गई थी. चार महीने के गहरे संशोधन के बाद भारत के जाबाज देशभक्तों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किये गये जन आंदोलन को आंतकपूर्ण कार्य घोषित किया गया था. इस रिपोर्ट को “रॉलेट एक्ट ” कहा गया था. 

       रॉलेट एक्ट अधिनियम के तहत सरकार को आतंकवाद के संदेह मे किसी भी व्यक्ति के परीक्षण के बिना अधिकतम दो साल तक कैद करने का अधिकार दिया गया था. 

        ता : 13 अप्रैल, 1919 में हुए जलियाँवाला बाग कांड का माइकल ओ’डायर खलनायक था. इस पार्क में ता : 9 अप्रैल 1919 को महात्मा गांधी आने वाले थे, लेकिन उसे गिरफ्तार कर लिए गये 10 अप्रैल को सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को भी बंदी बना लिया गया. फिर भी छह सात एकड़ के जलियाँवाला बाग में करीब बीस पचीस हजार लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. 

       जब ता : 13 अप्रैल 1919 के दिन हजारों लोग रौलट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. तब जनरल डायर करीब 100 सिपाहियों के साथ बाग के गेट पर आ पहुंचा . वहां उसके करीब 50 सिपाहियों के पास बंदूकें थीं. वहां पहुंचकर पहेली पंगत मे कुछ सिपाही पोजीशन लेकर बैठ गये. उनकी पीछे पोजीशन लेकर बंदूक ताककर बाकी के कुछ सिपाही खड़े हुये. 

       जैसे ही जनरल दायर ने गोली चलानेका आदेश दीया, सिपाहियों ने बर्बरता पूर्वक निहत्थे लोगों पर गोली बरसाना चालू किया. गोलियां चलते ही सभा में भगदड़ मच गई. इस जलियाँवाला बाग कांड के समय माइकल ‘ ओ’ ड्वायर पंजाब का गर्वनर था, और लोगों पर गोली चलवाने वाला जनरल डायर था. कई इतिहासकारों का मानना है कि यह हत्याकांड ओ’ ड्वायर व अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था, जो पंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने तथा पंजाबियों को डराने के उद्देश्य से किया गया था. यही नहीं, ओ’ ड्वायर बाद में भी जनरल डायर के समर्थन से पीछे नहीं हटा था. 

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         जलियाँवाला बाग में उस दिन 1650 राउंड फायर हुए थे. ब्रिटिश सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 379 लोग मारे गए थे, 1500 घायल हुए थे. हालांकि मरने वालों की तादाद करीब 1000 से भी ज्यादा मानी जाती है. लोगों की करुण चिल्लाहट के बाद भी फायरिंग चालू रही थी. कुछ लोगोने कुए मे गिरकर मौत को गले लगाया था. 

       इस नरसंहार के विरोध मे श्री रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा प्रदान की “नाइट हुड ” की उपाधि लौटा दी थी. मामले की जांच के लिए हंटर कमेटी बनाई गई, लेकिन कमेटी ने इस गोलीबारी के लिए सरकार को दोषी नहीं पाया था और कहा गया था, की भीड़ इतनी ज्यादा थी कि गोली चलाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. डायर ने केवल फैसला लेने में भूल की थी. 

     सरदार श्री उधम सिंह ने पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ ड्वायर की लंदन में गोली मारकर हत्या कर दी. ड्वॉयर ने बाग में जनरल डायर की कार्रवाई का समर्थन किया था. गांधी जी ने भी अपना असहयोग आंदोलन तेज़ कर दिया था. चर्चिल जैसे नेता ने भी ब्रिटिश संसद में इस अमानवीय हत्याकांड को ब्रिटिश इतिहास में एक धब्बा बताया था. डायर को हटा दिया गया था मगर निहत्थों पर गोली चलाने के लिए उसे कोई सजा नहीं दी गई थी. इसके उलट हाउस ऑफ लॉर्ड्स के मेंबरान ने डायर को ब्रिटिश हुकूमत की हिफाजत के सम्मान में एक तलवार और 26 हजार पौंड की रकम भेंट की थी. 

       पंजाब के एक लड़के उधम सिंह ने डायर मौत की सजा देने का फैसला कर लिया था. लंदन में उसका हर दिन ड्वायर के इंतजार में बीत रहा था.जलियांवाला बाग कांड के कोई बीस साल बाद वह मौका आया था. जलियावांला कांड की बरसी के ठीक एक महीने पहले 13 मार्च, 1940 के दिन लंदन के कैक्सटन हॉल में हुई ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की सभा में उधम सिंह ने ड्वायर की गोली मारकर हत्या कर दी थी. आपको बता दें कि जहां ड्वायर की हत्या हुई वहीं डायर की मौत आर्टेरिओस्क्लेरोसिस (धमनियों की बीमारी) और सेरेब्रल हैमरेज के कारण 1927 में हुई थी.इस कांड में लॉर्ड जेटलैंड, लॉर्ड लैमिंग्टन, सर लुइस डेन घायल भी हुए थे.

       भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ’ड्वायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा था. तारीख : 13 मार्च को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक चल रही थी, जहां उधम सिंह हाथ में एक किताब लिए पहुंचे थे उन्होंने उस किताब के पन्नों को काटकर उसमें एक बंदूक छिपा रखी थी. बैठक के खत्म होने पर उधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और माइकल ओ’ड्वायर पर गोली चला दी. ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई. ओ’ड्वायर को गोली मारने के बाद वो वहां से भागे नहीं बल्कि वहीं खड़े रहे. ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी की सजा दी गई. 

        आज भी हमारे देश मे जलियाँवाला हत्या कांड को ” काला दिन ” के रूपमें मनाया जाता है. 

।। वन्देमातरम ।। 

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                       शिव सर्जन प्रस्तुति.

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