बलि प्रथा की विरोधी श्रमणा ( शबरी ) | Sabari Aur Prabhu Ram

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” श्रमणा ” की शादी की तैयारियां जोरोसे शुरू हो चुकी थी. एक दिन के बाद श्रमणा की शादी थी. घर, मंडप और दुल्हन को नैसर्गिक पेड़ पौधे के रंगों से सजाया जा रहा था. घर और आंगन को गोबर से लीपा जा रहा था. पूरी तैयारी हर्षोल्लास के साथ हो रही थी. 

     दुल्हन की नजर लाये गये पशु और प्राणियों पर पड़ी. उसने अपनी खास सहली से पूछा ये सब क्या हो रहा है ? इतने जानवर क्यों लाये गये है ? उनके गले मे फ़ुलोकि माला क्यों पहनाई गई है ? उनके माथे पर अबीर, ग़ुलाल डालकर क्यों तिलक किया गया है ? 

      सहेली ने मुस्कुराकर ” श्रमणा ” दुल्हन को उत्तर देते कहा , पगली इतना भी पता नहीं ? कल तेरी शादी होने वाली है. ये सब तेरी खुशियों के लिये किया जा रहा है. कल सुबह मे ये सब जानवरो की बलि दी जायेगी और बारातियों को इसका खाना खिलाया जायेगा !.

श्रमणा से सबरी बनने की कहानी

       श्रमणा के पिता भीलोके मुखिया थे. श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से होने जा रहा था. विवाह के पूर्व सेकड़ो पशु बलि के लिये लाये गये थे. जिन्हे देखकर श्रमणा व्याकुल हो चुकी, और अपनी सहेली से बोली, यह समाज की कैसी परंपरा है ? की मेरी शादी के लिये इतने बेज़ुबान , निर्दोष जानवरो की हत्या की जायेगी ? 

      श्रमणा घुट घुट कर रोने लगी, रात भर सोई नहीं ,उसने मन ही मन निश्चय कर लिया. वो ऐसी शादी नहीं करेंगी. सुबह होनेसे पहले रातको घर से भाग निकली. जंगल मार्ग से होकर श्रमणा भागकर दंडकारण्य स्थित के एक आश्रम मे पहुंची , जहां श्री मातंग ऋषि तपस्या कर रहे थे. 

     शूद्र श्रमणा उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर वह भील जाति की होने के कारण वो जानती थी की उसे ऐसा अवसर नहीं मिलेगा. अतः वो वहां छुपकर रहने लगी. श्रमणा सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं. कांटे चुनकर रास्ते के बाजुमें कर देती थी. और वहां मिट्टी डालकर साफ बालू बिछा देती थी. ये सब छुपके से करती थी ताकि ऋषि ओको पता ना चले. 

        एक दिन मातंग ऋषि ने श्रमणा को देख लिया. उसको पूछने पर श्रमणा ने विस्तार से अपनी कहानी सुनाई. सुनकर मातंग ऋषि अति प्रशन्न हुये और उनको बेटी मानकर आश्रम मे शरण दे दी. 

      श्रमणा शबर जाती से संबंध रखती थी इसीलिए कुछ कालांतर के बाद उनका नाम शबरी पड़ा. शबरी प्रभु श्री राम जी की परम भक्त थी. जिसने जूठे बैर प्रभु को खिलाकर इतिहास मे अमर हो गई. प्रभु भाव के भूखे होते है. ये बात का श्री राम जी के कई भक्तों को अहसास कराया है. 

        जब ऋषि मातंग का अंत समय आया तो वे शबरी से कहकर गये की आप आश्रम मे ही प्रतीक्षा करें एक दिन प्रभु श्री राम जी स्वयं आपको मिलने आएंगे. श्री मतंग ऋषि की मौत के बाद शबरी का समय भगवान राम की भक्ति और प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ सुथरा रखती थीं. रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी. बेर खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर रखती थी. ऐसा करते-करते कई साल बीत गए. 

शबरी और प्रभु राम का मिलन

       एक दिन वो घड़ी आ गई. और प्रभु श्री रामजी भाता श्री लक्ष्मण जी के साथ शबरी की झोपड़ी मे पधारे. वो व्याकुल हो चुकी. पागल सी बन गई. झोपड़ी के अंदर से पानी लायी. प्रभु के पांव धोकर कुटीर मे बैठाया.शबरी की आंखों मे हर्ष के आंशु बह रहे थे. शबरी की अनन्य भक्ति से प्रभु श्री राम जी अति प्रसन्न हुये. शबरी ने कुटीर की अंदर से तोड़े हुए मीठे बेर लाकर प्रभु श्री राम जी को दिए, राम ने बड़े प्रेम से बेर खाए और लक्ष्मण जी को भी खाने को कहा, लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं, इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आयी थी.

        महर्षि श्री मतंग की वाणी आज सत्य और पूर्ण हो गयी थी. शबरी ने भगवान को सीता की खोज के लिये सुग्रीव से मित्रता करने की बात की. और श्री रामजी ने उस दिशा मे आगे कदम बढ़ाये थे.शबरी का उल्लेख रामायण में भगवान श्री राम के वन-गमन के समय मिलता है. 

शबरी धाम कहा आया है

        नवसारी गुजरात स्थित डांग जिला रामायण काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था.मान्यता है कि डांग जिले के अंजनी पर्वत की गुफा में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था.भगवान राम वनवास के दरमियान पंचवटी की ओर जाते समय डांग प्रदेश से गुजरे थे.डांग जिले के सुबिर के पास भगवान राम को शबरी माता ने बेर खिलाए थे. आज यह स्थल शबरी धाम नाम से जाना जाता है. 

      शबरी धाम से लगभग 7 किमी की दूरी पर पूर्णा नदी पर स्थित पंपा सरोवर है. यहीं मातंग ऋषि का आश्रम था. राम भक्त पवन पुत्र श्री हनुमानजी ने यहीं शनिदेव को अपने वश में किया था.  

       मान्यता है कि अंजनी माता जी ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी दौरान उन्हें हनुमानजी की प्राप्ति हुई थी. माता अंजनी ने अंजनी गुफा में ही हनुमानजी को जन्म दिया था. अंजनी गुफा से लगे हुए अंजनी कुंड में बाल हनुमान स्नान किया करते थे. 

      इसी पर्वत पर खड़े होकर उन्होंने सूर्य को फल समझकर मुंह में रख लिया था. इसी भूमि पर ही उन्होंने शनिदेव को अपने वश में किया था. यह भी कहा जाता है कि वनवास के दरमियान राम भगवान पंचवटी की ओर जाने के लिए यहां से दानवों का संहार कर ऋषि-मुनियों का उद्धार करने के लिए ही गुजरे थे. 

हनुमानजी की पूजा करने की एक अनोखी विधि

      यहां हनुमानजी की पूजा करने की एक अनोखी विधि है कि जमीन पर खड़े होकर सिंदूर अंजनी पर्वत की ओर उड़ाया जाता है. यह सिंदूर उड़ता हुआ अंजनी चोटी तक पहुंच जाता है. अगर किसी की राशि पर शनि हावी है तो -इस प्रक्रिया से उसे शनि के कोप से मुक्ति मिल जाती है. मान्यता है की इस पूजन प्रक्रिया के बाद आपको शनि मंदिर जाने की कोई जरूरत नहीं होती है. डांग जिले का हरेक व्यक्ति श्री हनुमान जी का परम भक्त है. 

        यहापर उल्लेखनीय है की वनवास के दौरान जब माता सीता का हरण दानव रावण ने कर लिया, तब व्याकुल श्रीराम और लक्ष्मण माता सीता की खोज में मातंग मुनि के आश्रम तक आ पहुंचे थे. शबरी माता ने ही राम और लक्ष्मण को सुग्रीव और हनुमानजी के बारे में अवगत कराया और उन्हें उनसे मिलने का मार्ग बताया था. 

शबरी माता का वंशज

       अंजनी पर्वत की तलहटी में ही अंजनकुंड गांव बसा हुआ है. गांव के लोग अपने आपको शबरी माता का वंशज मानते हैं. यहां रहने वाले लभगग सभी लोगों के नाम रामायण के पात्रों पर हैं जैसे कि राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन, सीता, जानकी, लक्षु, रघु, रघुनाथ आदि.

        श्री नारायण से ही लगा हुआ महानदी के पार गिधौरी नामक स्थान है जहाँ जटायु गिद्ध ने श्रीराम के गोद मे अपने प्राण त्यागे थे, और राक्षस रावण के बारे में बताया था.

       मित्रों आपने देखा की शबरी, ” शबरी के बेर ” के बारेमें ही नहीं, शबरी श्री राम जी की परम भक्त होनेके अलावा बलि प्रथा की कट्टर विरोधी थी. ये थी सबरी की कहानी.

       शबरी जयंती का उत्सव फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की दूज के दिन मनाया जाता है. 

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                              शिव सर्जन

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