हारे का सहारा – खाटू श्याम बाबा| Khatu shaym baba

KhatuBaba

भाईंदर सहित भारत भर में खाटू श्याम बाबा जी को माननेवाले का बहुत बड़ा वर्ग है, खाटू श्याम बाबा बंसीवाले भगवान श्री कृष्ण जी का कलयुगी दूसरा अवतार माना जाता है. जिसको बेसहारा, हारे का सहारा भी कहा जाता है. श्री खाटू श्याम जी का भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले के एक प्रसिद्ध कस्बे मे विश्व विख्यात मशहूर मंदिर विध्यमान है. 

           जहाँ पर पर लोग मन्नत मागने और श्याम बाबाके दर्शन के लिये हर साल लाखों लोग जाते है. श्री श्याम बाबा का नाम बर्बरीक था. उनके के पिताजी का नाम श्री घटोत्कच और माता का नाम कामकटंककटा था, जिन्हें लोग मोरवी के नाम से जानते थे , अत: बर्बरीक को मोरवी नंदन भी कहा जाता है.

द्वापर युग मे श्याम बाबा को मिला वरदान

          ये कहानी शरू होती है द्वापर युग के महाभारत काल से. पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत कालमे श्री श्याम बाबा पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे. जिनकी अपार शक्ति से प्रभावित होकर श्री कृष्ण भगवान ने उसे वरदान दिया था की कलियुग में उन्हें लोग श्याम बाबाके नामसे पूजा करेंगे. 

          गुप्त वनवास के समय वन वन भटकते पांडवो की मुलाक़ात हिडिंबा नामकी राक्षसिन से हुई जो भीम को अपना पति बनाना चाहती थी. कुंती माताकी आज्ञा के बाद भीम और हिडंबा का विवाह हुआ और घटोत्कच का जन्म हुआ. घटोत्कच का पुत्र हुआ जो बर्बरीक के नाम से पहचाने गया, जो अपने पिता से भी शक्तिशाली और बलवान था. 

            बर्बरीक भगवान शिवजी का बड़ा भक्त था. बर्बरीक ने तपस्चर्या करके देवी माता जगदम्बा से तीन दिव्य बाण प्राप्त किये थे जो अपने लक्ष को भेदकर वापस लोट आते थे. इससे बर्बरीक अजय हो गया था. 

       महाभारत के युद्ध के समय बर्बरीक युद्ध देखने के लिये कुरुक्षेत्र आ रहा था. श्रीकृष्ण को पता था कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो परिणाम पाण्डवों के विरुद्ध हो जायेगा. अतः बर्बरीक को रोकने के लिए श्री कृष्ण ने एक गरीब ब्राह्मण का रुप धारण किया और बर्बरीक के सामने आकर खड़ा रहा. श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछ कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो ? बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है जो अपने एक बाण से ही महाभारत युद्ध का निर्णय कर सकता है. 

बर्बरीक के तीनों बाणों की विशिष्टा

        यह सुनकर भगवान कृष्ण ने उनकी हँसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है ? सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा. यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश कर सकता है. 

              यह जानकर भगवान् कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ. वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे. बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तूणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया. बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता श्री कृष्ण भगवान ने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था. 

          बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा. तत्पश्चात, श्री कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा ? बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा. 

      श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जायेगा.       

भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से माँगा दान

        अत: ब्राह्मणरूपी भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की. बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान माँगने को कहा, ब्राह्मण ने उनसे शीश का दान माँगा. वीर बर्बरीक वचन का पालन करते हुये हा कहा. 

         वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं माँग सकता है, अत: ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की. ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये. श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान माँगने का कारण समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है; इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे . बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अन्त तक युद्ध देखना चाहते हैं.

        भगवान श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली. श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया. फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस लिये श्री श्याम जी को शीश के दानी भी कहते है. 

         रात भर भजन-पूजन कर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा करके, बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया. शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर्वत पर स्थापित कर दिया.

                           खाटू श्याम बाबा का शीश खाटू नगर राजस्थान के सीकर जिलेमें दफनाया गया. इसीलिए लोग उन्हें श्री खाटू श्याम बाबा के नाम से भी पुकारने लगे.

बर्बरीक ने महाभारत युद्ध के जीत का श्रेय किसको दिया ?

           जब युद्ध में विजय के बाद पांडव विजय का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे. अर्जुन को अपनी धनुर्विद्या पर गर्व था, भीम को अपनी गदा पर गर्व था अतः बात श्री कृष्ण भगवान तक पहुंची तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है. क्योंकि वो युद्ध का चश्मदीद गवाह है. सब लोग बर्बरीक के पास पहुचे और पूछने पर बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे. माता द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं. ये युद्ध भगवान श्री कृष्ण की नीति के कारण, उनकी उपस्थिति के कारण जीता गया है. 

        भगवान कृष्ण ने श्याम बाबा की कदर करते वरदान दिया की कलियुग मे लोग श्याम बाबाको मेरे नाम से पुकारेगा और जो सच्चे मन और प्रेम-भाव से पूजा करेंगा तो उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और सभी कार्य सफ़ल होंगे. तबसे आज तक बर्बरीक खाटू श्याम बाबा के नाम से पूजे जाते है. 

खाटू श्याम बाबा का मंदिर निर्माण का इतिहास

         इसका मूल मंदिर सन 1027 में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था. मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर सन 1720 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था.  

         प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्यामजी का मेला लगता है. इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं. इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है. बाबा श्याम, कलयुग का अवतार , हारे का सहारा, लखदातार, तीन बाण धारी, खाटूश्याम जी, श्याम सरकार , मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी इन सभी नामों से बाबाको उनके भक्त जन पुकारते हैं.     

        श्री श्याम भक्तों का मानना है की जो भक्त सच्चे दिल से बाबा से मांगते है तो वो बाबा लाखों बार उसे देते है इसीलिए उन्हें लखदातार बाबा के नाम से भी जाना जाता है. 

        श्री श्याम बाबा मोर के पंखो की बनी हुई छड़ी हमेशा अपने पास रखते थे इसीलिए बाबा को मोरछड़ी वाला भी कहा जाता है. 

           खाटू श्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है, भारत देश के बड़े से बड़े घराने के अमीर लोग आम आदमी की तरह भेदभाव को भूलकर यहां पर उपस्थित होकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं. कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. 

बाबा श्याम का जन्म दिन

            कार्तिक माह की एकादशी को बाबा श्याम के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है. उस दिन विशेष रूपसे बाबा की पूजा अर्चना की जाती है. फाल्गुन मेला बाबा श्री खाटू श्याम जी का मुख्य मेला है. यह मेला राजस्थान में भरने वाले बड़े मेलों में से एक माना जाता है. फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस (एकादशी) को यह मेला का मुख्य दिन होता है. इसके अलावा यहां पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी, झूल-झुलैया एकादशी, होली, बसंत पंचमी जैसे अनेक उत्सव श्रद्धा से मनाये जाते है. 

      श्री खाटू श्याम बाबा जी का बचपन में नाम बर्बरीक था . उनकी माता, गुरुजन एवं रिश्तेदार उन्हें इसी नाम से जानते थे. श्याम नाम उन्हें भगवान श्री कृष्ण ने दिया था.इनका यह नाम इनके घुंघराले बाल होने के कारण पड़ा था. 

          श्री खाटू श्याम मंदिर पहुंचने के लिये जयपुर से वाया रींगस से 80 किलोमीटर की दूरी पर है . इस श्याम मंदिर की आधारशिला सन् 1720 में रखी गई थी. श्री खाटू श्याम मंदिर में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की पूजा श्याम के रूप में की जाती है. 

        महावीर, शूरवीर योद्धा गदाधारी भीम के पौत्र श्री बर्बरीक का जीवन चरित्र स्कंद पुराण के माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड कौमारिक खंड में विस्तार पूर्वक दिया गया है . कौमारिक खंड के ५९ वे अध्याय से ६६ वे अध्याय तक यह दिव्य कथा का वर्णन किया गया है. 

        मिरा भाईंदर महा नगर पालिका क्षेत्र मे श्री खाटू श्याम मंडल द्वारा हर साल हर्सोउल्लास के साथ धार्मिक कार्यक्रम का भव्य अनोखा आयोजन किया जाता है.

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                    शिव सर्जन

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