बॉयोस्कोप से लेकर बड़े परदे की फ़िल्म| Biosope

bioscope

बॉयोस्कोप  ( bioscope ) का एक  सामान्य अर्थ होता  है, चल चित्र दर्शी. आज मुजे आप लोगोसे बात करनी है , हमारी पुरानी सभ्यता चलता फिरता सिनेमा घर जो साठ और सत्तर के दशक मे तत्कालीन लोगोंमे मनोरंजन का एक बहुत बड़ा मुख्य  श्रोत था,  साधन था. वक्त के बदलाव के साथ ही मनोरंजन का दौर और रवैया भी बदलते  गया. 

         पुराना बॉयोस्कोप जिसे आप आजके अत्याधुनिक सिनेमा घरों का आरंभिक रुप भी कह  सकते हो. गांवकी गलियोंमे, शहर के रहिवासी एरिया मे इसको खासकर बच्चों के मनोरंजन के तौर पर दर्शाया जाता था. 

            एक टीवी के आकार का करीब डेढ़ – दो फुट लंबा , चौड़ा और ऊंचा लकड़े का डिब्बा जिसमे अलग अलग चित्रों को जोड़कर रोलमे लपेटकर, उपर रखें हैंडल से घुमाया जाता था. सामने वर्तुलाकार बनाये गये चार पांच अलग अलग छेद  से बच्चे अंदर दर्शाये गये चित्रको देखकर  आनंदित,  होते थे. रोमांचित होते थे. 

     सिनेमा बॉक्स को उपरसे रंग बे रंगी रंगों से रंगकर सजाया जाता था. जैसे ही ऑपरेटर चालू करता था तो वो स्वयं गाना बोलकर बच्चों को प्रोत्साहित करता था. जैसे…. 

आगरा का ताजमहल दिखता तो वो बोलता था , आप आगरा चा ताजमहल देखो…फिर मुंबई की चौपाटी दिखाकर बोलता था , आप  मुंबई की चौपाटी देखो. आप दिल्ली का क़ुतुब मीनार देखो… और इसी तरह अलग अलग  फोटो का विवरण सुनाता था. इसके लिये वो बच्चों से 5 या 10 पैसे शुल्क लेता था. ये लोग साप्ताहिक बाजार या मेले जैसी भीड़ भाड़ वाली जग़ह मे दिखाई देते थे. 

       कभी कभी देश के बड़े नेताओको दिखाकर, बच्चों को उनसे अवगत कराता था. धीरे धीरे उसमे सुधार आया और ग्रामोफोन को बक्शे से जोड़कर हिज मास्टर वॉइस कंपनी की रिकॉर्ड बजाकर बच्चों को आकर्षित करते थे. समय के गर्त मे हमारी परंपरा आज नष्ट हो चुकी  है. आज की नयी पीढ़ी को ये भी पता नहीं की एक मोबाइल फोन की तरह चलता फिरता बॉयोस्कोप नामकी मनोरंजन की कोई चीज पुराने जमानेमे होती थी. 

    बच्चों को भी बड़ा आनंद आता था. उस जमाने मे रेडियो, ट्रांसिस्टर तो थे,  मगर कम थे. साठ के दशक तक भाईंदर मे सिनेमा टॉकीज नहीं थे. भाईंदर पश्चिम आवर लेडी ऑफ़ नाज़ारेथ चर्च स्कूल प्रांगण , धर्म शाला प्रांगण और राम मंदिर टेरेस और पुलिस स्टेशन प्रांगण मे 16 mm की पुरानी फ़िल्म दिखाई जाती थी. 

      भाईंदर पश्चिम दत्तमंदिर के नजदीक स्थित ओपन टूरिंग टॉकीज अर्थात प्रवासी टॉकीज आती थी, जो बारिस मे बंद हो जाती थी. ज्यादातर , वीर हनुमान , रामायण , महाभारत , जैसी 35 mm की पौराणिक फ़िल्म दिखाई जाती थी. 

Sholey First Hindi Film of india in 70mm

     तब बड़े बड़े परदे पर टॉकीजो मे भी 35 mm की फ़िल्म दिखाई जाती थी. शोले पहली हिंदी फ़िल्म थी जो 70 mm की फ़िल्म बनी थी जो विशाल काय परदे पर दिखाई गई थी. जो मिनरवा टॉकीज मे सालो चली थी. 

    स्थाई रुप से भाईंदर सेकेंडरी स्कूल के सामने गोपिका टॉकीज शुरू की मगर विवादों के चलते तथा स्कूल नजदीक होने की वजह कुछ साल  के  बाद  बंद कर दी गई. दरम्यान भाईंदर पश्चिम कांग्रेस ऑफिस नजदीक संतोक टॉकीज शुरू  की गई. वो भी बंद हो गई. वर्त्तमान  रस्साज मल्टीप्लेक्स ,  PVR  सिनेमा , MAXUS  सिनेमा जैसे अत्याधुनिक  सिनेमा घर , मिरा भाईंदर मे विध्यमान है. मगर कोरोना आपदा की वजह सब बंद है. 

        वैसे देखा जाय तो आज सभी की जगह मोबाइल ने ले ली है. मोबाइल सब इन वन बन गया है. अब तो वो दिन दूर नहीं जब  मोबाइल घर घर का डॉक्टर  बन जायेगा. आप मोबाइल ऍप से  बीपी., शुगर , दिल की धड़कन जान सकते हो. आगे मोबाइल प्रिस्क्रिप्शन भी बतायेगा की कौनसे रोग मे कौनसी दवाइयां आप ले सकते हो. धन्यवाद. 

       ——=== शिव सर्जन ===——

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