विश्व मे आज तक दो विश्व युद्ध हो चुके है. मगर आज यहां पर ” प्रथम विश्व ” की बाते आप लोगोसे शेर करनी है. जिसमे करीब एक करोड़ लोग मारे गये थे. और करीबन दो करोड़ लोग घायल हुये थे तथा 7750000 लोग लापता हो गये थे. जिनका बादमे कोई पता नहीं चल पाया था.
First World War Period
प्रथम विश्वयुद्ध तारीख़ : 28 जुलाई 1914 से लेकर ता : 11 नवंबर 1918 तक चला था, जिसमे गठबन्धन सेना की विजय हुई थी. पहला विश्वयुद्ध मुख्य तौर पर यूरोप में व्याप्त महायुद्ध को कहते हैं. यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और समुद्र, धरती और आकाश में लड़ा गया था. यह युद्ध लगभग 52 माह तक चला था.
इससे करीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई थी, इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से लाखों लोगोकि मृत्यु हो गई थी. युद्ध समाप्त होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, ऑस्ट्रिया-हंगरी और उस्मानिया, जर्मनी ढह गए थे, यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुईं थी और अमेरिका एक महाशक्ति बन कर उभराकर सामने आया था.
युद्ध में जर्मनी की हार के बाद ता : 18 जून 1919 में पेरिस मे हुये शांति सम्मेलन मे 27 देशो ने भाग लिया था. जिसमे अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस ने भाग लिया था.
How Many Indian soldiers fought in the world wars?
युद्ध के दौरान भारतीय सेना ( ब्रिटिश भारतीय सेना ) ने प्रथम विश्व युद्ध में यूरोपीय, भूमध्य सागरीय और मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपने अनेक डिविजनों और स्वतन्त्र ब्रिगेडों के साथ सहरानीय योगदान दिया था. दस लाख भारतीय सैनिकों ने विदेशों में अपनी सेवाएं दी थीं जिनमें से करीब 62,000 सैनिक मारे गए थे और अन्य 67,000 घायल हो गए थे। युद्ध के दौरान कुल 74,187 भारतीय सैनिकों की करुण मौत हुई थी.
इस युद्ध में लड़े किसी भी भारतीय सैनिक को कोई ऊंचा अफसर नहीं बनाया गया. न ही कभी यह माना गया कि भारतीय सैनिकों के बलिदानों के बिना मानव इतिहास के उस पहले विश्व युद्ध में ब्रिटेन की हालत बड़ी खस्ता हो जाती. ये वे भारतीय थे जो पहली बार किसी युद्ध में इस्तेमाल हो रही भारी तोपों, टैंकों और ज़हरीली गैसों वाली ‘औद्योगिक युद्ध पद्धति’ से भी पुरी तरह अपरिचित थे और यूरोप की हड्डियां जमा देने वाली बर्फीली ठंड से भी बाकिफ नहीं थी अतः ज्यादा यही लोग लड़ते-मरते थे, मगर नाम अंग्रेजो का होता था.
भारतीय सैनिक इतने साक्षर थे कि पत्र लिख सकते थे, पर मौजूदा ब्रिटिश सरकार उनके पत्र सेंसर करती थी. अतः वे अपने मन की व्यथा-कथा न खुद लिख सकते थे और न ही किसी और से लिखवा सकते थे.
First World War History.
प्रथम विश्वयुद्ध का कारण देखे तो इसके लिये कोई एक घटना उत्तरदायी नहीं थी. मगर सन 1914 तक के वर्षों में घटने वाली विभिन्न घटनाओं के कारणों का ही परिणाम माना जाता है. जिसमे सैनिकवाद , साम्राजयवाद , गुप्त व कूटनीतिक संधिया , मीडिया का अभाव तथा शस्त्रीकरण , अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओका अभाव ,लंबे समय से संपूर्ण यूरोप में अशांति व अव्यवस्था आदि मुख्य कारणों का समावेश था.
प्रथम विश्व युद्ध का इतिहास कहता है की तारीख : 28 जून, 1914 के दिन ऑस्ट्रिया के राज सिंहासन के उत्तर अधिकारी आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड की बोस्निया (राजधानी सेराजेवो) में हत्या कर दी गई और इस हत्या का आरोप सर्बिया पर लगाया गया. दोनों के मध्य पहले से ही चल रहे कटु संबंधों के कारण इससे ऑस्ट्रिया को सर्बिया से बदला लेने का अवसर मिल गया था.
परिस्थिति को देखते हुए ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को कुछ मांगों को मानने हेतु बाध्य किया, किंतु सर्बिया ने इस मांग पत्र का अस्वीकार कर दिया , परिणाम स्वरूप ऑस्ट्रिया ने 28 जुलाई 1914 को सर्बिया पर आक्रमण कर दिया. उसके बाद इस युद्ध में विभिन्न देश शामिल होते गए और अंततः युद्ध ने विश्वव्यापी रूप ले लिया जो प्रथम विश्व युद्ध के नामसे जाना जाता है.
इस युद्ध में ब्रिटेन भी शामिल था और उन दिनों भारत पर ब्रिटेन का शासन था अतः हमारे सैनिकों को इस युद्ध में शामिल होना पड़ा. तब कुछ लोगोंका मानना था की युद्ध में ब्रिटेन को साथ देने से अंग्रेजों द्वारा भारतीय निवासियों के प्रति उदारता बरती जाएगी.
मगर हुआ कुछ अलग ही, भारत ने लोकतंत्र की प्राप्ति के वादे के तहत इस विश्वयुद्ध में ब्रिटेन का समर्थन किया था लेकिन युद्ध के तुरंत बाद अंग्रेज़ो ने रौलेट एक्ट पारित किया, अतः भारतीयों में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति असंतोष का भाव जागा इससे राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ तथा जल्द ही असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई.
इस युद्ध के बाद भारत में भी साम्यवाद का प्रसार (सीपीआई के गठन) हुआ और स्वतंत्रता संग्राम पर समाज वादी प्रभाव देखने को मिला.
भारत तब आज से भी कहीं बड़ा हुआ करता था. पाकिस्तान और बांग्लादेश ही नहीं, श्रीलंका और म्यांमार (बर्मा) भी ब्रिटिश भारत का हिस्सा था. तब सेना में भर्ती के लिए अंग्रेजों की पसंद उत्तर-पश्चिमी भारत के सिख, मुसलमान और हिंदू क्षत्रिय ही होते थे.एशिया, अफ्रीका और यूरोप के विभिन्न मोर्चों पर कुल मिलाकर करीब आठ लाख भारतीय सैनिक जी-जान से लड़े. इनमें 74,187 मृत या लापता घोषित किए गए और करीब 70 हजार घायल हुए थे.
इस लड़ाई में भारत का योगदान सैनिकों और असैनिक कर्मियों तक ही सीमित नहीं था. भारतीय जनता के पैसे से 1,70,000 पशु और 3,70,000 टन के बराबर रसद भी विभिन्न मोर्चों पर भेजी गई थी. गुलाम भारत की अंग्रेज सरकार ने लंदन की सरकार को 10 करोड़ पाउंड अलग से दिए थे. भारत की गरीब जनता का यह पैसा ब्रिटेन ने कभी लौटाया नहीं था. मिलने के नाम पर पैदल दस्तों के भारतीय सैनिकों को केवल 11 रुपये मासिक वेतन मिलता था.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद कुल 13,000 भारतीय सैनिकों को बहादुरी के लिये पदक प्रदान किये थे तथा 12 सैनिक को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था.
ऑस्ट्रियाई-हंगेरियाई साम्राज्य के सम्राट फ्रांत्स योज़ेफ़ ने 28 जुलाई 1914 को, सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की विधिवत घोषणा पर हस्ताक्षर किये थे. इसके बाद तो सैनिक जमावड़ों और युद्ध-घोषणाओं का तांता लग गया था.
जर्मनी ने पहली अगस्त को रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी. बेल्जियम और फ्रांस की ओर बढ़ते हुए जर्मन सैनिकों ने दो अगस्त को लक्जमबर्ग पर अधिकार कर लिया. जर्मनी ने तीन अगस्त को फ्रांस और ब्रिटेन ने चार अगस्त को जर्मनी के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया.
चार अगस्त 1914 के दिन, भारत सहित ब्रिटेन ने भी घोषणा कर दी.
भारतीय सैनिकों को आधुनिक भारी हथियारों का सामना करने और बर्फीली ठंड में लड़ने की न तो पर्याप्त ट्रेनिंग मिली थी और न उस तरह के पहनावे के वस्त्र और साज-सामान उन्हें मिले थे. इसलिए कई बीमार हो कर मर गये थे. अंग्रेज खुद पीछे रहते थे और उन्हें मरने-कटने के लिए आगे कर देते थे. फ्रांस में लड़े गए एक-तिहाई मोर्चे भारतीयों ने ही संभाले थे. कुल 1,38,000 भारतीय सैनिक वहां लड़े. 7,700 ने वीरगति पाई और 16,400 घायल हुए थे. तारीख : 10 से 12 मार्च 1915 तक चली नौएव शपेल की घमासान लड़ाई में आधे सैनिक भारतीय ही थे. ये हुई लड़ाई के लिए भारतके खुदादाद खानको विक्टोरिया क्रॉस मिला था.
सन 1914 का महायुद्ध आरंभ होने से पूर्व यूरोप के महान् राष्ट्र दो विरोधी गुटों में विभक्त हो गये थे. एक ओर तो जर्मनी, आस्ट्रिया और इटली के राज्य थे और दूसरी ओर फ्रांस, रूस और इंगलैंड केराज्य थपहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक मुख्य तौर पर यूरोप में व्याप्त महायुद्ध को कहा जाता है यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और समुद्र, धरती और आकाश में लड़ा गया था. इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध कहते हैं .
करीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अनुमानतः एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गये थे, इसके अलावा फैली बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मर गये थे. युद्ध समाप्त होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए थे. यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुईं और अमेरिका निश्चित तौर पर एक महाशक्ति बन कर उभरकर सामने आया था.
प्रथम विश्वयुद्ध की विशेषताये :
सन 1914-18 के युद्ध को अनेक कारणों से प्रथम विश्वयुद्ध कहा जाता है इसकी प्रमुख विशेषताएं मे…
(1) यह प्रथम युद्ध था जिसमें विश्व के लगभग सभी शक्तिशाली राष्ट्रों ने भाग लिया था.
(2) यह युद्ध यूरोप तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि एशिया अफ्रीका और सुदूर पूर्व में भी लड़ा गया ऐसा व्यापक युद्ध पहली बार हुआ था, इसलिए 1914 -18 का युद्ध प्रथम विश्वयुद्ध कहलाया गया.
(3) प्रथम विश्व युद्ध जमीन के अतिरिक्त आकाश और समुद्र में भी लड़ा गया था.
(4) प्रथम विश्व युद्ध मे विध्वंसक अस्त्र-शस्त्रों एवं युद्ध के अन्य साधनों का उपयोग किया गया था.
(5) इसमें मशीन गन तथा तरल अग्नि का पहली बार उपयोग किया गया था.
(6) बम बरसाने के लिए हवाई जहाज का उपयोग किया गया था तथा इंग्लैंड में टैंक और जर्मनी ने यू बोट पनडुब्बियों का बड़े स्तर पर व्यवहार किया गया था.
(7) प्रथम विश्वयुद्ध में सैनिकों के अतिरिक्त सामान्य जनता ने भी सहायक सेना के रूप में युद्ध में भाग लिया था.
(8) प्रथम विश्व युद्ध में सैनिकों और नागरिकों का जितने बड़े स्तर पर संहार हुआ वैसा पहले के किसी युद्ध में नहीं हुआ था.
(9) इस युद्ध में स्पष्ट रूप से यह दिखा दिया कि वैज्ञानिक आविष्कारों का दुरुपयोग मानवता के लिए कितना घातक हो सकता है.
——–===शिवसर्जन ===———