” एक दैत्य के समान है दारु.”

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अहिंसा परमो धर्म की बुनियाद पर जैन धर्म टिका है. जीवो और जीने दो उनका मुख्य सिद्धांत है. जैन धर्म के उपासक मानवता , जीव दया प्रेम में मानते है. कई जगह मानव कल्याण केंद्र चलाते है और गरीबों की सहायता करते है. जैन मुनि देशाटन करके शांति , दया का संदेश फैलाते है. बचपन मे पढ़ी एक प्रेरक कहानी आज शेयर करनी है. 

        एक बार एक जैन मुनिके पास एक अस्सल बेवड़ा दारु पिने वाला शख्स आया. उसने मुनिको बोला मै दारु छोड़ना चाहता हूँ मुजे कोई उपाय बताओ. मुनि ने उसकी ओर देखा ओर मुस्कुराया. फिर उठकर मंदिर मे स्थित खम्भे को जाकर पकड़ कर चिल्लाने लगा, मुजे कोई बचाओ, ये खम्भे ने मुजे पकड़ कर रखा है. मुजे कोई इससे छुड़वाओ. ऐसा बोलकर फिर जोर शोर से चिल्लाने लगा. 

         दारु पिने वाला बेवड़ा ये तमाशा देख रहा था. वो मुनि के पास गया और बोला महाराज आप ये क्या बोल रहे हो ?खम्भे ने आपको पकड़ लिया है की आपने खम्भे को पकड़ रखा है ? आप खम्भे को छोड़ दो, खम्भा छूट जायेगा. 

     मुनि मुस्कुराया , खम्भे को छोड़ दिया और बोला , ठीक कहा आपने. मै यहीं बात आपसे पूछता हूँ , की दारु ने आपको पकड़कर रखा है की,आपने दारू को पकड़कर रखा है. आप दारु छोड़ दो , दारु खुद ब खुद छूट जायेगा. 

       ये छोटी सी कहानी हमें बहुत बड़ा सबक देकर जाती है. समाज मे कई लोगोंको ऐसे ही बीड़ी, सिगरेट, तमाकू, गुटखा, हीरोइन , गांजा खानेकी या शराब पीनेकी आदत है, उनके लिये ये छोटीसी कहानी प्रेरणादायक है. 

     व्यसन हमकों पकड़ता नहीं है. हम व्यसन को पकड़कर रखते है. ये जानते हुये भी कोई उसे छोड़ना नहीं चाहता है. 

      दारु का व्यसन की वजह हमारी नई पीढ़ी बर्बाद हो रही है. शराब धीमा जहर ( slow poison ) है. मनुष्य पहला शराब का सेवन करता है, बादमे शराब पिने वाले को खाने लगता है. दारु को सुरा, शराब या मदिरा कहते है. दारु पीने वाले के लिवर मे क्षय हो जाता है. 

       कुछ लोग वाइन को शराब नहीं मानते है मगर वाइन मे 5 से 10 % तक अल्कोहल रहता है. हालाकि वाइन मे अन्य शराब की तरह इसमे साइड इफेक्ट कम होता है. कई लोग घर मे अंगूर, फूल, चावल, गुड़, ककड़ी, नट्स, इत्यादि का वाइन बनाते थे, मगर अब पुलिस प्रशासन स्ट्रीक होने की वजह घर की हाथ भठ्ठी बंद हो गई है. 

      दारु का अधिक सेवन मानव को दैत्य बना देता है. देशी शराब मे 40 से 50 % अल्कोहोल होता है. दारू के अनेक नाम होते है जैसे रम, व्हिस्की, ब्रांडी, जिन, चूलईया हंडिया, और गोवा का फेनी दारू जो काजू से बनाया जाता है और पीनेवालों मे खूब मशहूर है. ये मादक पेय होते है. 

       हर सिक्के की दो बाजु होती है. दारू अगर एक लिमिट मे लिया जाय तो फायदेमंद होता है. ये भूख को बढ़ाता है छाती के कफ को साफ करता है तथा रक्त वाहिनी को साफ करता है. दारू जिसे मदिरा कहा जाता है जो प्राचीन काल से पिया जाता है. पिने वाले के सांस से शराब की बदबू आती है अतः शराब पिने वाले को कोई पसंद नहीं करता है. 

       केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के साथ किया गया सर्वेक्षण के अनुसार शराब का सबसे ज्यादा सेवन करने वाले मुख्य 5 राज्यों मे पंजाब त्रिपुरा , छत्तीसगढ़, अरुणांचल प्रदेश तथा गोवा का समावेश है. यह पांच मे कही दिल्ली और मुंबई का तो नामो निशान नहीं है. 

      मिरा भाईंदर की बात करें तो 60 के दशक मे मूर्धा , राई , मोरवा डोंगरी के घने मेंग्रोव्स के जंगल मे दारु की अनेकों भठ्ठी सक्रिय थी. भाईंदर का गावठी दारु मुंबई के लोगों को अति प्रिय था. ये गावठी दारु को सुबह विरार – चर्चगेट जाने वाली पहली लोकल मे मुंबई पहुंचाया जाता था. 

        शांति सेवा फाउंडेशन की अध्यक्षा श्रीमती नीलम तेली जैन जो सरदार वल्लभ भाई पटेल सेवा समिति की राष्ट्रीय महा सचिव है. तथा श्रेष्ठम स्ट्रीट एजुकेशन की प्रणेता है. उन्होंने पुलिस प्रशासन के सहयोग से नशा मुक्ति अभियान चलानेका भगीरथ कार्य शुरू किया है. इसमे मिरा भाईंदर पुलिस प्रशासन का उन्हें पुरा सहयोग मिला है. 

  ———- शिवसर्जन प्रस्तुति ——–

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