यज्ञ हमारी संस्कृति है. यज्ञ हमारी परंपरा है. यज्ञ हमारी वैदिक काल की देन है. यज्ञ हमारे ऋषि मुनिओका आविष्कार है. यज्ञ से वातावरण शुद्ध बनता है. यज्ञ से वृस्टि होती है. वृस्टि से धान्य की उत्पत्ति होती है. जो मनुष्य जाती की उदर पूर्ति करता है. जो मनुष्य को जीवित रखनेमे मदद करता है.
यज्ञ की परंपरा हमारे देशमे आदि काल से आज तक चली आ रही है. तब दैत्य राक्षस लोग यज्ञ को ध्वंस करने चले आते थे. आज भी कुछ विघ्न संतोषी लोग यज्ञ में बाधा डालकर दैत्य की भूमिका निभाते है.
त्रेता युग से लेकर राजा महाराजा लोग भी यज्ञ करते थे. राजा राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ किया था. अश्वमेध यज्ञ विजय पाने, समृद्धि पाने के लिये राजा अश्वमेध यज्ञ किया करते थे.
अश्वमेघ के लिये एक घोड़ा चुना जाता था. उसको जल से विधिवत स्नान कराकर शास्त्रोक्त विधी करके राजकुमारों के संरक्षण में एक वर्ष के लिये घूमने के लिए छोड़ दिया जाता था.घोड़ा जहां तक जाता था, वहां तक की भूमि यज्ञ करने वाले की मानी जाती थी.यदि कोई इसका विरोध करता था, तो उसे यज्ञ करने वाले के साथ युद्ध करना पड़ता था.
वेद पुराणों के अनुसार यज्ञ के पांच प्रकार के होते है.
(1) ब्रह्मयज्ञ.(2) देवयज्ञ. (3) पितृयज्ञ. (4) वैश्वदेव यज्ञ. (5)अतिथि यज्ञ.
हवन कुंड का अर्थ होता है हवन की अग्नि का निवास स्थान. हवन – यज्ञ सनातन परंपरा अथवा हमारे हिंदू धर्म के मुताबिक शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है. कुण्ड में अग्नि के माध्यम से ईश्वर की उपासना करने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं. यज्ञ की पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति दी जाती थी. इससे वातावरण शुद्ध होनेसे तथा वायु प्रदूषण कम होनेसे रोग नहीं होते थे.
हमारा पडोशी शहर वसई की बात करे तो राजा श्री दशरथ के बाद भारत देश में प्रथम सहस्त्र कुण्डीय लक्ष चंडी महा यज्ञ का आयोजन श्री राहुलेश्वर महाराज जी द्वारा वसई (पूर्व ) सातीवली, राजवलि स्थित श्री राहुलेश्वर महाराज के पद्मश्री योगपीठ आश्रम के प्रांगण में संपन्न हुआ था.
इस अवसर पर देश भर से करीब 6000 ब्राह्मण लोग एकत्रित हुए थे. अनेक साधु संत भी पधारे थे जिसमे हिमालय से आये कुछ साधु संतो का भी समावेश था.
एक पंडाल में 100 यज्ञ कुंड बनाये गये थे. ऐसे कुल 10 विशाल पंडाल बनाये गये थे. मुख्य कुंड सहित कुल 1008 कुंड बनाये गये थे.
भाईंदर से प्रकाशित हिंदी समाचार साप्ताहिक ” भाईंदर भूमि ” का ऐतिहासिक उपक्रम , ” एक मत ट्रस्ट ” के संस्थापक श्री पुरुषोत्तम ” लाल ” बिहारीलाल चतुर्वेदी ” गुरुजी ” का एक महत्व आकांक्षी मिशन है.
एकमत ट्रस्ट – मिरा भाईंदर के संस्थापक विश्वस्थ मंडल ( ट्रस्ट ) मे (1) सर्वश्री वैद्य बृजेश शुक्ल , (2) श्री महेंद्र सिंह चौहान ,(3) श्रीमती प्रतिभा रिषिकांत चतुर्वेदी ,(4) श्री राज कुमार सरावगी , (5) मोरेश्वर नारायण पाटील (6) श्री पुरुषोत्तम ” लाल ” चतुर्वेदी , (7) श्री सदाशिव माछी थे. जबकि अनेक सहयोगी व समाज सेवियो का कार्यक्रम को सफल बनाने मे विशेष योगदान रहा था.
विश्व के कल्याण , पर्यावरण की रक्षा हेतु , आपसी सदभावना , धार्मिक परंपरा की रक्षा , भाईंदर का सर्वांगी विकास , भाईंदर के सामाजिक , राजकीय , धार्मिक , सांस्कृतिक संस्थान को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराने, जनता मे आपसी भाईचारा के उद्देश्य से सन 2003 मे ” एक मत ट्रस्ट ” की स्थापना की गईं थी.
एक मत ट्रस्ट के तत्वविधान में विगत नव सालसे भक्ति भाव से नवरात्र उत्सव मनाते आ रहा था. भाईंदर पूर्व जेसल पार्क खाड़ी, चौपाटी स्थित श्री शतचंडी महायज्ञ एवं श्री राम लीला दशहरा मेला का भव्य आयोजन चला था , जिसके संस्थापक / संयोजक : श्री पुरुषोत्तम लाल बिहारी लाल चतुर्वेदी जी ( गुरूजी ) थे.
इस कार्यक्रम को सफल बनानेमें गुरूजी के परिवार सहित कई मित्र , पत्रकार बंधु , नगर सेवक, उद्योग पति, आमदार, यहांकी प्रबुद्ध जनता का विशेष योगदान रहा है.
मथुरा से कौशलेन्द्र रामलीला मंडल के प्रसिद्ध कलाकार एवं संचालक श्री जगदीश चतुर्वेदी जी ( आरतीवाले ) के मार्गदर्शन मे रामलीला का भव्य आयोजन किया जाता था. जिसका एक मात्र उदेश्य नयी पीढ़ी को रामायण से अवगत कराना था. सुबह शाम माधवबाग के आचार्य लव कुश शास्त्री के मार्गदर्शन मे शास्त्रोक्त पद्धति से यज्ञ का आयोजन होता था. सूखे घास से बना यज्ञ पंडाल दार्शनिक होता था.
इसके अलावा परहित सेवा संघ के उपक्रम में यज्ञ एवं रामलीला का प्रोग्राम हर्षोउल्लास से होते आ रहा है.
सन 1960 मे भाईंदर स्थित श्री चंदूलाल छबील दास शाह जी की वाडी ( वर्तमान देना बैंक ) के सामने स्थित उनके बंगले के पास भाईंदर का प्रथम यज्ञ संपन्न हुआ था जिसमे एक लक्ष आहुति दी गयी थी. जो भाईंदर का पहला विधिवत यज्ञ था. जिसमे हजारों भाविक भक्तों ने सामिल होकर यज्ञ का आनंद उठाया था.
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