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भारत देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था. इसी कारणवश विदेशी ताकतों ने हमारे देश पर क्रूर आक्रमण किया हमारी पुरानी सभ्यता को नष्ट किया.” नालंदा ” विश्व विद्यालय को बख्तियार खिलजी ने आग लगा दी. हमारे अमूल्य आयुर्वेदिक संशोधन को जला दीया.
तक्षशिला विश्व विद्यालय को ध्वस्त करके तोड़ फोड़ कर दीया गया. देश का खजाना सोना लूटने मे कोई कसर नहीं छोड़ी. फ़िरभी हमारा देश हिंदुस्तान आज भी सोने की चिड़िया थी, है और आगे रहेंगी.
आज मुजे बात करनी है, भारत के केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु जी का प्रसिद्ध हिंदू पद्मनाभ स्वामी मंदिर की जो प्रमुख वैष्णव मंदिरों में से एक है. श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर विष्णु भक्तों का आराध्य, आस्था और श्रद्धा स्थल है.
इतिहास कारो के अनुसार सन 1733 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था. श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर के बारेमें एक पौराणिक कथा कही जाती है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है.
श्री मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री विष्णु जी की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए देश भर से हजारों भाविक भक्त दूर दूर से यहाँ आते हैं. और धन्यता महसूस करते है. इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं. मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के “अनंत ” नामक नाग के नाम पर रखा गया है. यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ” पद्मनाभ ” कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान यहाँ पर पद्मनाभ स्वामी के नाम से जाना जाता हैं.
श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पुनः र्निर्माण में अनेक महत्व पूर्ण बातों का ध्यान रखा गया है. उसकी कला वास्तु शिल्प मे भव्यता पर विशेष ध्यान रखा गया है. अतः उसका शिल्प सौंदर्य सभी को प्रभावित करता है. मंदिर के निर्माण में द्रविड़ एवं केरल शैली का मिश्रण देखा जा सकता है.
श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर केरल के संस्कृति एवं साहित्य का संगम है . एक तरफ तो खूबसूरत समुद्र तट है और दूसरी ओर पश्चिमी घाट में पहाडि़यों का अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य का नजारा है. इस मंदिर के निर्माण में महीन कारीगरी का भी कमाल देखने को मिलता है.
श्री मंदिर का गोपुरम द्रविड़ शैली में बना हुआ है.श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अदभुत निर्माण है . मंदिर का परिसर बहुत भव्य और विशाल है, जो सात मंजिला ऊंचा है गोपुरम को कलाकृतियों से सजाया गया है. मंदिर के पास ही सरोवर भी है जो ” पद्मतीर्थ कुलम ” के नाम से पहचाना जाता है.
मंदिर का वातावरण हमेशा मनमोहक और सुगंधित रहता है. मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी बना हुआ है जो मंदिर के सौदर्य को बढ़ाता है. मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक़्क़ाशी की गई है. मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती तथा स्त्रियों को साड़ी पहनना अनिवार्य है.
इस मन्दिर में सिर्फ हिन्दुओं को ही प्रवेश मिलता है. मंदिर में हर वर्ष दो महत्वपूर्ण उत्सवों का आयोजन किया जाता है जिनमें से एक मार्च एवं अप्रैल माह में और दूसरा अक्टूबर एवं नवंबर के महीने में मनाया जाता है. मंदिर के वार्षिकोत्सवों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेने के लिए दूर दूर से यहां आते हैं तथा प्रभु पद्मनाभस्वामी से सुख शांति के लिये प्रार्थना करते है. और भावी सुखी जीवन की आकांक्षा करते है.
श्री मन्दिर तथा इसकी सम्पत्ति के स्वामी भगवान पद्मनाभ स्वामी ही हैं. बहुत दिनों तक यह मंदिर तथा इसकी सम्पत्तियों की देखरेख और सुरक्षा एक न्यास (ट्रस्ट) द्वारा की जाती रही थी , जिसके अध्यक्ष त्रावणकोर के राजपरिवार का कोई सदस्य होता था. परंतु वर्तमान समय में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने राजपरिवार को इस मंदिर के प्रबन्धन के रुप मे अध्यक्षता करने से रोक दिया है.
जून 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने पुरातत्व विभाग तथा अग्निशमन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया कि मन्दिर के गुप्त तहखानों को खोल दीया जाय और उनमें रखी वस्तुओं का निरीक्षण किया जाय. इन तहखानों में रखी करीब दो लाख करोड़ की संपत्ति का पता चला है, हालांकि अभी भी तहखाने को नहीं खोला गया है. सुप्रीमकोर्ट ने विध्यमान तहखाने को खोलने पर रोक लगा दी है. सुप्रीमकोर्ट ऑफ़ इंडिया ने आदेश किया है कि ये संपत्ति मंदिर की है और मंदिर की पवित्रता और सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए.
श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर पूरी दुनिया में मशहूर है. और दुनिया के कुछ रहस्यमय जगहों में इसकी गिनती होती है. दरअसल, यहां ऐसे कई रहस्य हैं, जिन्हें कई कोशिशों के बाद भी लोग इसको सुलझा नहीं पाएं हैं. इस मंदिर का सातवां दरवाजा हर किसी के लिए एक पहेली बना हुआ है, बताया जाता है यह दरवाजा केवल एक इंसान खोल सकता है और दूसरा नहीं. आज इतनाही कल अधिक माहिती लेकर आप के सामने उपस्थित रहूंगा.
मान्यता के अनुसार इस मंदिर को 6 वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने बनवाया था जिसका जिक्र 9 वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी किया गया है. सन 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को भगवान का सेवक बताया था, और मंदिर की सेवामे समर्पित हो गया.
इसके बाद त्रावणकोर राजघराने ने अपनी पूरी संपत्ति भगवान के मंदिर ट्रस्ट को दान कर दी थी. यहां पर उल्लेखनीय है कि सन 1947 तक त्रावणकोर के राजाओं ने इस राज्य में राज किया था. फिलहाल मंदिर की देख-रेख का कार्य शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट संभाल रहा है.
इस मंदिर में 7 तहखाने हैं, आपको याद होगा जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी खोले गए थे, जिसमें एक लाख करोड़ रुपये के हीरे और जेवरात निकले थे. इसके बाद जैसे ही टीम ने सातवां दरवाजे को खोलने की शुरुआत की, तो दरवाजे पर बने कोबरा सांप के चित्र को देखकर काम रोक दिया गया. कई लोगों की मान्यता थी कि इस दरवाजे को खोलना अशुभ होगा.
त्रावणकोर के महाराज ने कीमती खजाने को इस मंदिर के तहखाने और मोटी दीवारों के पीछे छुपाया था. जिसके बाद हजारों सालों तक किसी ने इन दरवाजो खोलने की कभी हिम्मत नहीं की है, और इस के बाद से इसे शापित माना जाने लगा था. कथाओं के अनुसार, एक बार खजाने की खोज करते हुए किसी ने 7 वें दरवाजे को खोलने की कोशिश की, लेकिन कहते हैं कि जहरीले सांपों के काटने से सबकी मौत हो गई थी.
इस मंदिर को दुनिया का सबसे धनी हिंदू मंदिर माना जाता है. जिसमें कीमती हीरे, जवाहरात जड़े हैं. इस दरवाजे को सिर्फ कुछ मंत्रों के उच्चारण से ही खोला जा सकता है. इस मंदिर को किसी भी तरह खोला गया तो मंदिर नष्ट हो सकता है, जिससे भारी प्रलय तक आ सकती है. दरअसल ये दरवाजा स्टील का बना है. इस पर दो सांप बने हुए हैं, जो इस द्वार की रक्षा करते हैं. इसमें कोई नट बोल्ट नहीं हैं.
बताया जाता है कि इस दरवाजे को ” नाग बंधम ” या “नाग पाशम ” मंत्रों का प्रयोग करके बंद किया गया है. इसे केवल ” गरुड़ मंत्र ” का स्पष्ट और सटीक मंत्रोच्चार करके ही खोला जा सकता है. अगर इसमें कोई गलती हो गई तो मृत्यु निश्चित मानी जाती है. फिलहाल भारत या दुनिया के किसी भी कोने में ऐसा सिद्ध पुरुष नहीं मिल सका है तो इस मंदिर की गुत्थी सुलझा सके.
कहा जाता है कि इस मंदिर के खजाने में दो लाख करोड़ का सोना है. मगर इतिहासकारों के अनुसार, असल में इसकी अनुमानित राशि इससे कहीं दस गुना ज्यादा हो सकती है. इस खजाने में सोने-चांदी के महंगे चेन, हीरा, पन्ना, रूबी, कीमती पत्थर, सोने की मूर्तियां, जैसी कई कीमती चीजें हैं, जिनकी असली कीमत आंकना बेहद मुश्किल है
इस मंदिर से आस्था जुड़ी है और जिज्ञासा भी. इस मंदिर में कई ऐसे रहस्य छिपे हैं, जिन्हें कई कोशिशों के बावजूद भी लोग सुलझा नहीं पाएं हैं. इस मंदिर के सातवें दरवाजे का रहस्य हर किसी के मन में सवाल खड़े करता है.
मान्यता है कि इस मंदिर को 6 वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने बनवाया था, जिसका जिक्र 9 वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी पाया जाता है.
फिलहाल मंदिर की देख-रेख का कार्य शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट संभाल रहा है.
पिछले दिनों सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में इस मंदिर में खुदाई का काम चला था लेकिन इस मंदिर के 7 वें दरवाजे के पास आते ही खुदाई के इस काम को रोक दिया गया था. आधिकारिक तौर पर इस काम को रोकने की कोई बात सामने नहीं आई लेकिन इस मंदिर के सातवें दरवाजे के बारे में बहुत सी दंत कथाएं प्रचलित हैं.
अपनी वास्तुकला और आर्किटेक्चर के लिए विख्यात यह मंदिर हर रोज सुबह 3 बज कर 30 मिनट पर खुल जाता है. सुबह के समय यहां 3:30 से 4:45 तक दर्शन किए जा सकते हैं. इसके बाद 6:30 से 7 बजे तक. फिर 8:20 से 10 बजे तक, 10:30 से 11 बजे तक और 11:45 से 12 बजे तक दर्शन कर सकते हो. शाम के समय यह मंदिर 5 बजे से 6 बजकर 15 मिनट तक और 6 बजकर 45 मिनट से 7 बजकर 20 मिनट तक खुला रहता है.
हिंदू आस्था से जुड़े इस प्रसिद्ध मंदिर तक पहुंचने के लिए रेल, सड़क और हवाई यात्रा का सहारा लिया जा सकता है. देश के लगभग सभी बड़े एयरपोर्ट से तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के लिए हर रोज फ्लाइट है. मगर कोरोना महामारी को चलतें फिलहाल हवाई सेवा स्थगित कर दी गई है.
अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते हैं तो देश के बड़े शहरों से तिरुवनंतपुरम रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है. इसके जरिए आप तिरुवंदरम सेंट्रल, वर्कला शिवगिरी, तिरुवेंद्रम कोचुवेली, तिरुवनंतपुरम पेट्टा, कज्जाकुट्टम और त्रिवेंद्रम वेली रेलवे स्टेशन तक पहुंच सकते हो. यहां से आसानी से पद्मनाभ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.
वहीं अगर आप बस से सफर करना चाहते हैं तो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु से बस की समय सारिणी का पता करें और अपने लिए आसानी से टिकट बुक करें. इसके साथ ही कई बड़े शहरों से अलग-अलग रूट के जरिए बस से यात्रा की जा सकती है. बुकिंग के बाद आप तिरुवनंतपुरम बस स्टॉप तक की यात्रा कर सकते हो. यहां से लोकल ट्रांसपोर्ट के जरिए मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है. आपको अवसर मिले तो इस मंदिर का आप अवश्य दर्शन का लाभ लीजिये.
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