” जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी “अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है,उसे वैसी ही मूरत नज़र आती है.
गो स्वामी तुलसीदास जी महाराज रचित इस चौपाई को चरितार्थ करती एक कहानी जो मैंने कही पढ़ी थी प्रस्तुत है.
एक दिन की बात है. एक कवि हलवाई की दुकान मे पंहुचा. उसने जलेबी और दही का आर्डर दीया. और वही ही खाने बैठ गया. उस समय एक कौआ कहींसे उड़कर आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ गया, और नजदीक थोड़ी दुरी पर बैठ गया. हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने एक पत्थर उठाया और कौए को मारा. कौआ की किस्मत शायद ख़राब थी. पत्थर लगते ही जगह पर उसका प्राण पंखेरू उड़ गया.
कवि सब ये देख रहा था. उसका कवि हृदय जाग गया. उसने वहां पड़े एक कोयले के टुकड़े से वहां एक कविता की पंक्ति लिख दी.
” काग दही पर जान गँवायो.”
इत्तेफाक से तब वहां एक लेखपाल साहब जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने के लिये आए. कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा , वाह भाई वाह यहां पर कितनी सही बात लिखी है. क्योंकि उन्होने उसे कुछ इस तरह पढ़ा-
” कागद ही पर जान गंवायो.”
उसके जानेके बाद एक मनचला मजनू टाइप एक लड़का पिटा पिटाया सा वहां पर पानी पीने के लिये आ पंहुचा. उसने भी वो पक्ति पढ़ी. उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है, यहां पर. काश उसे ये पहले पता होती,तो ऐसी घटना घटित नहीं होती. और मेरा बुरा हाल नहीं होता. क्योंकि उसने उस लाइन को कुछ ऐसे पढ़ा था.
” का गदही पर जान गंवायो “
शायद इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था की
” जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ” अर्थात जिसकी जैसी दृस्टि होती है उसे वैसी ही मूरत नजर आती है.
मित्रों, प्रभु भी इस चौपाई की जैसा ही है. आप उसे सखा के रुप मे देखोंगे तो प्रभु आपको मित्र के रूपमें नजर आएंगे. मित्र बनकर आयेंगा और आपका बिगड़ा हुआ काम करके चला जायेंगा.
प्रभु को आप अगर भक्त बनकर पूजा करोंगे तो वो आपके पास ईश्वर बनकर आपकी बिगड़ी को बना लेगा. प्रभु को आप बाल स्वरूप मे पूजन करोगे तो प्रभु आपको उसी स्वरूप मे आकर आपकी सहायता करेंगे.
इसीलिए तो प्रभु गीता मे कहते है की चाहे कोई पत्थर को भगवान मानकर पूजा करता हो. चाहे कोई मंदिर की मूर्ति को प्रभु मानकर पूजा करता हो. चाहे कोई मेरी साकार मे पूजा करते हो. या चाहे कोई निरंकार को मानकर मेरी पूजा करता हो, वो सब मेरी ही आराधना करता, मेरी ही स्तुति करता है अतः ये सब मेरी कृपा के पात्र है.
आज राधा मीराके गाने की कुछ सुंदर पंक्तिया के साथ आजकी मेरी पोस्ट का समापन करना चाहूंगा.
Lyricist – Ravinder Jain
” राधा ने मधुवन मे ढूंढा मिरा ने मनमे पाया,
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, राधा के मनमोहन.
राधा नित श्रृंगार करे, और मीरा बन गयी जोगन.
एक रानी एक दासी, दोनों हरि प्रेम की प्यासी.
एक मुरली, एक पायल, एक पगली, एक घायल
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी “
——–====शिवसर्जन ====——–