श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन शहर मे पुण्य सलिला शिप्रा तट के नजदीक स्थित है. ये बारह ज्योतिर्लिंग मे से एक है. इसका पौराणिक ग्रंथो मे भी वर्णन मिलता है. यहां पर भोलेनाथ बाबा के दर्शन के लिये भक्तों का तांता लगा रहता है.
यहां भगवान शिव का श्रृंगार भस्म और भांग से किया जाता है. यहां पर कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा एवं दशहरे पर विशेष मेले का आयोजन किया जाता है.
वैसे काल के दो अर्थ होते है (1) एक समय और (2) दूसरा मृत्यु. महा काल को ” महाकाल ” इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था. जिससे इस श्री ज्योतिर्लिंग का नाम ” महाकालेश्वर ” रखा गया है. कवि कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में भी इस मंदिर का वर्णन मिलता है.
वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग तीन खंडों में विभाजित है. निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है. नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन साल में मात्र एक ही बार नागपंचमी के दिन ही होते हैं.
गर्भगृह में भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है. साथ ही माता पार्वती, भगवान श्री गणेश जी व कार्तिकेय की प्रतिमाएं भी हैं. गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्वलित होता रहता है.
सन 1235 मे इल्तुत्मिश ने इस प्राचीन मंदिर को बुरी तरह विध्वंस किया था. मगर बाद मे यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, फलस्वरुप ये वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है.
उज्जैन मे सन 1107 से सन 1728 तक यवनों का शासन था. इनके शासनकाल में अवंति की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी. लेकिन मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण करके 29 नवंबर 1728 को मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया और इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही. मराठों शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं, पहला, श्री महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना की. आगे राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार किया.
हिंदू ग्रंथो में देवता के वस्त्रों और आभूषणों का वर्णन मिलता है , वहीं भगवान शिव केवल हिरण की खाल और भस्म को ही धारण करते हैं. इस बात का साक्षी है मध्यप्रदेश उज्जैन का धार्मिक स्थान भगवान शिव का महाकालेश्वर मंदिर. यहां भगवान शिव के कई स्वरूपों की पूजा की जाती है मगर यहां शिव जी के अघोरी रूप को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है. जिस तरह साधू और संतों के शरीर में भस्म लिपटी रहती है उसी तरह यहां पर भगवान शिव के शिवलिंग पर मुर्दे के चिता की ताजी भस्म से आरती की जाती है और इसी से उनका श्रृंगार भी होता है.
आरती में शामिल होने के लिए पहले से ही बुकिंग करानी पड़ती है. श्री महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन करना जरूरी माना जाता है.
पुराणों के अनुसार, एक समय अवंतिका नगरी में एक ब्राह्मण रहता था. जिसके चार पुत्र थे. दूषण नाम के राक्षस ने अवंतिका में आतंक मचा रखा था. वह राक्षस उस नगर के सभी वासियों को कष्ट देना लगा.तब उस राक्षस के आतंक से बचने के लिए ब्राह्मण ने भगवान श्री शिव की आराधना की. ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में यहां प्रकट हुए और राक्षस का वध करके नगर की रक्षा की. नगर के सभी भक्तों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की. और प्रभु महा काल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए थे.
महाकाल मंदिर के नजदीक कई घूमने के स्थान है. यहां पास में ही हरिसिद्धि मंदिर है, जो देवी सती के 51 शक्ति पीठों में से एक है. यहां प्रसिद्ध कालभैरव मंदिर भी है , जहां भगवान की मूर्ति को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है. उज्जैन शहर के मध्य में गोपाल मंदिर है जो भगवान कृष्ण का दर्शनीय मंदिर है. यहां का मंगलनाथ मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है. मंगल संबंधी दोषों का नाश करने के लिए यह देश का एक मात्र मंदिर है.
शिवपुराण के अनुसार जब सती ने स्वंय को अग्नि में समर्पित कर दिया, तो उनकी मृत्यु का संदेश मिलते ही प्रभु श्री शिव क्रोधित हो गए और अपना मानसिक संतुलन खो बैठे. इसके बाद वह माता सती के मृत शरीर को लेकर इधर उधर घूमने लगे. जब भगवान शिव को श्रीहरी ने देखा तो उन्हें संसार की चिंता सताने लगी. इसका हल निकालने के लिए उन्होंने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से कई हिस्सों में बांट दिया था.यह हिस्से देश के कई स्थानों पर गिरे और पिंड बन गए. मगर शिव जी के हाथों में केवल माता के शव की भस्म रह गई. भगवान शिव को लगा कि कहीं वह सती का हमेशा के लिए न खो दें इसलिए उन्होंने उनकी शव की राख को अपने शरीर पर लगा लिया था.
आनेवाले दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को देखते बिड़ला उद्योग समूह द्वारा 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण किया गया था. महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है. हाल ही में इसके 118 शिखरों पर 16 किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है.
सावन और शिवरात्री पर यहां विशेष आयोजन होता है. अगर आप सावन के महीने में महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन करने जाओ तो यहां पर आपको देश के कोने कोने से आए भक्तों की भीड़ देखने को मिलेगी. आपको उज्जैन आने के लिए ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा.
वहां मंदिर तक पहुंचने के लिये उज्जैन से लगभग 45 कि.मी की दूरी पर इन्दौर का एयरपोर्ट है. वहां तक हवाई मार्ग से आकर रेल या सड़क मार्ग से महाकाल मंदिर पहुंचा जा सकता है. देश के लगभग सभी बड़े शहरों से उज्जैन के लिए रेल गाड़ियां चलती हैं. उज्जैन पहुंचने के लिए सड़क मार्ग का भी प्रयोग किया जा सकता है.
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