वेंटिलेटर पर स्थानीय लघु पत्र|

लोकतंत्र के निर्माण मे मिडिया की भूमिका अहम होती है. हमारे लोक शाही देश मे मिडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है. समाचार पत्र निकालना अति मुश्किल काम है, इसमें भी लघुपत्र की हालत दयनीय है. राष्ट्र निर्माण मे इनका योगदान महत्वपूर्ण है.   

        मगर प्रकाशक अपने अखबार के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए तथा संसाधन जुटाने में ही व्यस्त हो जाता है. समाचारपत्र की निष्पक्षता और स्वतत्रंता रखना मुश्किल काम होता है. 

          हमारे भारत देश मे समाचारपत्रों को रेगुलेट करने के लिए पी.आर.बी. एक्ट (प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स एंड पीरियॉडिकल्स) विधेयक लागू किया है. वास्तव मे देखो तो पी.आर.बी. एक्ट सन 1867 में लागू हुआ था , जिसका इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार अखबारों को दबाने – कुचलने के लिए किया करती थी.पीआरबी एक्‍ट सिर्फ प्रिंटेड न्‍यूजपेपर्स पर लागू होता है ऑनलाइन न्‍यूजपेपर्स पर नहीं इसी प्रकार पीसीआई एक्‍ट ( press council of india ) भी प्रिंटेड न्‍यूजपेपर्स/जर्नल्‍स पर ही लागू होता है. 

       आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा इस कानून में कई संशोधन किए गये. और एक बड़े बदलाव के रूप में 1956 में अखबारों को पंजीकृत करने के लिए एक अलग विभाग यानी रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज़ पेपर ऑफ इंडिया की स्थापना की गई. इसके माध्यम से अखबारों का पंजीकरण सुचारू रूप से किया जाने लगा. 

        कहने को तो अखबार लोकशाही का चतुर्थ स्तंभ है मगर आजादी के 70 साल बाद भी लघु पत्रों के विकास के लिये सरकार ने ध्यान देकर कोई नीति नहीं बनाई , फिरभी कलम के कलाकार अपनी भूमिका डटकर निभा रहे है.भारत जैसे बड़े देशमे किसी भी एक समाचार पत्र के लिए पूरे देश भर की सभी खबरों को कवर कर पाना असंभव है. अतः यहां पर लघु और स्थानीय समाचारपत्रों का होना अति आवश्यक माना जाता है.

          कई लघु पत्र के पत्रकारों की हत्या हो जाती है, मगर उसका सुराग तक नहीं मिलता है.सरकार की जिम्मेदारी नहीं है के इस और कोई ठोस कदम उठाये जाय ? लघु पत्र के प्रकाशक / पत्रकारो को भी सरकारी विमा का कवच प्रदान किया जाय. उनको भी रियायती दर से पेपर मुहैया कराया जाय. उन्हें भी जिला और राज्य स्तर पर विज्ञापन मिलना चाहिए. जो देश के लोगों के लिये मर मिटता है, जान की बाजी लगा देता हैं उसके लिये देश की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? 

         सरहद पर जवान देश की रक्षा करता है. तो देश के भीतर स्थानीय स्तर पर लघु पत्र के पत्रकार अपना अखबार प्रकाशित करके जनसमस्या तथा होने वाले भ्रस्ट्राचार को उजागर करता है. प्रशासन को स्वस्थ रखनेमे मदद करता है. उन लोगों के लिये सरकार का कोई दायित्व नहीं है ? 

          अख़बार सेवा का माध्यम है. मगर आजकल कई बड़े समाचार पत्र राजनीति के खेमे मे बटे हुये है. अधिकांश प्रिंट मिडिया और इलेक्ट्रॉनिक मिडिया का व्यापारीकरण हो चूका है. सब ” ज्याची खावावी पोळी, त्याची वाजवावी ताळी “. मे व्यस्त है. क्या सरकार इस पर लगाम लगा पा रही है ? 

        अब समय आ गया है की प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 में संशोधन कर के सुधार लाना जरुरी है. 

        भारतीय प्रेस परिषद ( Press Council of India. PCI ) एक संवैधानिक संगठन है जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने व उसे बनाए रखने, तथा जन अभिरूचि का उच्च मानक सुनिश्चित करने से और नागरिकों के अघिकारों व दायित्वों के प्रति उचित भावना उत्पन्न करने के लिये है. सर्व प्रथम इसकी स्थापना 4 जुलाई सन 1966 को हुई थी.

     ऐसा नहीं की उसके संशोधन हुआ ही नहीं मगर बदलते वक्त के साथ कई बदलाव आये. प्रिंट मिडिया के साथ साथ इलेक्ट्रॉनिक मिडिया का जमाना आया. इलेक्टॉनिक मीडिया को टक्कर देकर सोशल मिडिया हर घर तक , हर किसीके हाथ तक पहुंच गया है. 

       सोशल मिडिया ने तो ” पत्रकार ” की परिभाषा ही बदल दी. अब तो हर हाथमे मोबाइल. हर कोई पत्रकार. सोशल मिडिया मे सबसे पहले खबर आती है, उसके बादमे प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मिडिया मे कई न्यूज़ आती है. 

     अब तो आप व्हाट्सएप्प, फेसबुक या ट्वीट करके मनकी बात निजी मित्रों को , मित्रोंके ग्रुप मे या आम पब्लिक को उजागर कर सकते हो. 

       मिरा भाईंदर महानगर पालिका क्षेत्र की बात करु तो 12 जून 1985 के दिन मिरा भाईंदर नगर पालिका की स्थापना होनेके बाद यहां करीब पचास से ज्यादा लघु पत्र प्रकाशित हुये. उनमेसे अधिकांश पत्र वक्त की गर्त मे समा गये. 

         मगर आज भी भाईंदर की आम जनता ” भाईंदर भूमि हिंदी ” समाचार पत्र को याद करती है. 1 जनवरी 1986 के नये वर्ष से शुरू किया गया ये पत्र लगातार 17 साल तक प्रकाशित हुआ. पत्र के प्रधान संपादक श्री पुरुषोत्तम लाल बिहारीलाल चतुर्वेदी जिन्हे लोग ” लाल साहब ” या गुरूजी के नाम से पहचानते है. 

          भाईंदर भूमि एक मिशन था. जिसे पुरा करने के लिये गुरूजी ने 14 साल तक अपने दाढ़ी बाल नहीं काटे थे. पानी के लिये शुरू किया गया ये मिशन की वजह लोग गुरूजी को पानी वाली दाढ़ी के नाम से संबोधित करते थे. वो भाईंदर के लोगों के लिये तपस्चर्या थी, जिसकी वजह से लोग उन्हें पत्रकारिता का ” भीष्मपितामह ” कहते है. 

       आज जो आप भाईंदर का सर्वांगीण विकास देख रहे हो उसमे भाईंदर भूमि नींव का पत्थर समान है. 

—–===शिवसर्जन प्रस्तुति ===—–

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