आरजू फ़िल्म का सदा बहार गीत| Arzoo

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जब प्रीतम प्रियतमा एक दूसरे के प्रेम मे पागल हो जाते है तो रूठना – मनाने की तो आम बाते हो जाती है. 

प्रेमी पंखी एक दूसरे के प्यार मे डूबकर मस्त हो जाते है. इसी लिये तो गीतकार हसरत जयपुरी साहब ने फ़िल्म “आस का पंछी ” फ़िल्म के लिये ” तुम रूठी रहो, मै मनाता रहूँ, की इन अदा ओमे ओर प्यार आता है. ” गाना लिखा था. जो सुपर डुपर हिट हुआ था.  

         मगर मुजे आज बात करनी है, अदाकार राजेन्द्र कुमार और साधना की सन 1965 मे रिलीज हुई सुपर डुपर हिट, हिंदी फ़िल्म आरजू के ” अजी रुठ कर अब कहाँ जाइएगा , जहां जाइएगा हमें पाइयेगा ” गाने के बोल के बारेमें. 

      आरजू हिंदी फ़िल्म के संगीतकार थे, जानेमाने म्यूजिक डायरेक्टर शंकर – जयकिसान की लाजवाब जोडी तथा इस सदाबहार गाने के गीतकार थे, गीतोंके शहंशाह हसरत जयपुरी साहब. और गायिका थी कोकिल कंठी लता मंगेशकर. फ़िल्म के निर्माता निर्देशक थे श्री रामानंद सागर. 

       इस फ़िल्म को सन 1966 के फिल्मफेयर अवार्ड के लिये फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार, श्री राजेन्द्र कुमार को फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार , श्री रामानंद सागर को फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ कथा पुरस्कार, शंकर-जयकिशन फ़िल्म फ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार तथा हसरत जयपुरी (अजी रूठ कर अब कहाँ ) फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार के लिये नामांकित किये गये थे. 

 * आरजू * कहानी संक्षिप्त मे :

        सन 1965 में बनी हिन्दी भाषा की यह फिल्म कश्मीर की बर्फीली मनमोहक वादियोमे फिल्माई गई है. इस फ़िल्म मे राजेन्द्र कुमार, साधना एवं फ़िरोज़ ख़ान ने मुख्य भूमिका का किरदार निभाया है. 

      गोपाल (राजेन्द्र कुमार) स्की चैम्पियन की मुलाक़ात उषा (साधना) से जम्मू कश्मीर में छुट्टियाँ बिताने के दौरान होती है. गोपाल अपना जूठा नाम सरजु के नामसे रहता है. दोनों को एक दुसरे से प्यार हो जाता है. उषा का मानना था की अपंग जीवन जीने से तो मर जाना बेहतर है. 

         वो छुट्टियाँ समाप्त होने के बाद उषा से शादी करने का वादा करके दिल्ली चले जाता है. गोपाल सड़क हादसे में वो अपनी एक टांग खो बैठता है और उषा की कही बात याद कर परेशान हो जाता है. वो अब उषा की जिंदगी से दूर जाने का फैसला करता है, क्योंकि उसे लगता है कि अपंग होने के कारण उषा अब उसे स्वीकार नहीं करेगी.उषा उसे ढूंढने की कोशिश करती है पर कुछ पता नहीं लगता है. 

            गोपाल का करीबी दोस्त, रमेश (फ़िरोज़ ख़ान) को अपने दोस्त की प्रेम कहानी का पता नहीं होता है और वो उषा से शादी करने की सोचते रहता है. उषा उसे कई बार ना कह चुकी होती है, पर उसके पिता की सहमति के बाद वो भी अपने पिता की बात मान लेती है और शादी के लिए हाँ कर देती है. शादी के दिन रमेश और उसके बाद उषा को पता चलता है कि गोपाल और सरजू दो अलग अलग इंसान नहीं है. इसके बाद उन्हें सारी बात पता चलती है.

         उषा ( साधना ) गोपाल ( राजेन्द्र कुमार ) एक दूसरे के प्यार मे पागल है. उषा को लगता है की गोपाल उससे रुठ गया है. वो विरह मे गमगीन हो जाती है. उसे अपने प्यार पे विश्वास था की गोपाल उसे कभी भूला नहीं पायेगा. वो तड़प उठती है और कहती है, तु मुझसे रुठ कर कही नहीं जा सकता है. तु मेरी निगाहो से छुप नहीं सकता. मेरा ख्याल तुझे हरदम आते रहेगा. 

         तु चाहे लाख परदे मे छुप जाओ मगर मै ही तुमको नजर आउंगी. दिल की बात होठो पर भले तुम ना लाओ मगर तु दिलमे छुपा नहीं पायेगा. उषा की विरह गाथा की गमगीन कहानी को गीतकार हसरत जयपुरी साहब ने बखूबी अपने गीत मे उतारा है. 

     इस गाने के बोल आप को अवश्य पसंद आएगा. 

गाने के बोल :

अजी रुठ कर अब कहाँ जाइयेगा, 
 जहाँ जाइयेगा हमें पाइयेगा. 


निगाहों में छुपकर दिखाओ तो जानें
ख़यालों में भी तुम न आओ तो जानें
अजी लाख परदे में छुप जाइयेगा
नज़र आइयेगा नज़र आइयेगा

जो दिल में हैं होठों पे लाना भी मुश्किल
मगर उसको दिल में छुपाना भी मुश्किल
नज़र की ज़ुबाँ को समझ जाइयेगा
समझ कर ज़रा गौर फ़रमाइयेगा

ये कैसा नशा हैं ये कैसा असर हैं
न काबू में दिल हैं न बस में जिगर हैं
ज़रा होश आ ले फिर जाइयेगा
ठहर जाइयेगा ठहर जाइयेगा. 
अजी रुठ कर अब कहाँ जाइयेगा, 

——-==== शिवसर्जन ====——

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