महाभारत की मुख्य पात्र. “द्रौपदी”| Draupadi

shri krishna

           आज मुजे बात करनी है, महाकाव्य ” महाभारत ” के मुख्य नारी पात्र ” द्रौपदी ” के बारेमें. महाभारत ” गीता ज्ञान ” मे न्याय की अन्याय के खिलाफ हुई लड़ाई का वर्णन है. आप सभी जानते है की द्रौपदी का विवाह पांच पांडवो से हुआ था. जिनके नाम थे युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, सहदेव, और नकुल. वैसे देखा जाय तो धनुर्धारी अर्जुन ने ही द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था. यहीं कारण है की द्रौपदी पांचों भाईओ में से अर्जुन को सबसे ज्यादा प्रेम करती थी. 

      द्रोपदी खूबसूरती थी. दुर्योधन की कुदृष्टि हमेशा उस पर पड़ी रहती थी. एक बार दृष्ट दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया था , तद पश्चात कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का धमासान युद्ध शुरू हो गया था. 

      महाभारत में द्रौपदी की भूमिका का खूब वर्णन मिलता है. द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री थी, द्रोणाचार्य के अपमान का बदला लेने द्रुपद ने एक यज्ञ करवाया था. उसमे से द्रौपदी का अग्निकुंड से जन्म हुआ था. इसीलिए द्रौपदी को ” यज्ञसेनी ” भी कहा जाता था. 

     ” द्रौपदी ” को महाभारती , कृष्नेयी , चिर कुमारी, सैरंध्री,पांचाली, अग्निसुता आदि अन्य कई नामोंसे पहचाना जाता है. द्रौपदी पिछले जन्म में ऋषि मुद्गल की भार्या थीं.उसका नाम मुद्गलनी तथा इंद्रसेना था. 

        कथा के अनुसार जब पांडव कौरवो की शिक्षा पूरी हुई तो उन्होंने गुरु दक्षिणा देनेकी बात कही, इसपर द्रोणाचार्य ने सबको कहा कि तुम लोग यदि गुरुदक्षिणा देना चाहते हो तो पांचाल नरेश द्रुपद को बन्दी बना कर मेरे समक्ष हाजिर करो. मेरे लिये यहीं तुम्हारी गुरु दक्षिणा होंगी. 

     सुनकर पहले कौरवो ने आक्रमण किया मगर वो हार गये. उसके बाद पांडवो ने युद्ध करके पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बना कर गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष खड़ा किया गया. द्रोणाचार्य ने बदला पुरा होनेकी वजह पुरानी मित्रता निभाते हुये आधा राज्य स्वयं रखकर आधा राज्य द्रुपद को वापस दे दीया. 

       गुरु द्रोण से पराजित होकर द्रुपद लज्जा से बदला लेने के उपाय ढूंढने लगे. एक दिन वह कल्याणी नगरी के ब्राह्मणों की बस्ती में जा पहुँचे. वहाँ उनकी भेंट याज तथा उपयाज नामक महान कर्मकाण्डी ब्राह्मण भाइयों से हुई. राजा द्रुपद ने उनकी सेवा करके उन्हें प्रसन्न करके उनसे द्रोणाचार्य के मारने का उपाय पूछा. तो उन्होंने एक विशाल यज्ञ का आयोजन करके अग्निदेव को प्रसन्न करने को कहा. 

       राजा द्रुपद ने यज्ञ करवाया उनके यज्ञ से प्रसन्न हो कर अग्निदेव ने उन्हें एक ऐसा पुत्र दिया जो सम्पूर्ण आयुध एवं कवच कुण्डल से युक्त था. उसके पश्चात् उस यज्ञ कुण्ड से एक पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई. कन्याके नेत्र खिले हुये कमल के समान देदीप्यमान थे, 

       भौहें चन्द्रमा के समान वक्र थीं तथा उसका वर्ण श्यामल था. उसके उत्पन्न होते ही एक गगन से आकाशवाणी हुई कि इस बालिकाका जन्म क्षत्रियों के सँहार और कौरवों के विनाश के हेतु हुआ है. बालक का नाम धृष्टद्युम्न रखा तथा बालिका का नाम द्रौपदी रखा गया. यह थी द्रौपदी के जन्म की कथा. 

      बड़ी होते ही द्रौपदी का स्वयंवर रचाया गया.द्रौपदी का स्वयंवर अर्जुन ने जीत लिया और द्रौपदी से उनका विवाह किया गया. द्रौपदी के पिता द्रुपद ने द्रोणाचार्य की मृत्यु की प्रतिज्ञा ली थी और उनका वध अर्जुन के अलावा और कोई नहीं कर सकता था इसलिए वे भी चाहते थे कि उनकी पुत्री का विवाह अर्जुन से ही हो. 

         जब अर्जुन अपने कुटिया पहुचें तो कुन्ती पूजा कर रही थी. घर जाकर मा कुंती से कहा की माता हम लोग कुछ नया लेकर आये है. इसपर कुंती ने बिन देखे कहा की आप लोग उसे आपस में बाट लो. माता की आज्ञा का पालन करते हुये द्रौपदी ने पांच पांडवो की पत्नी की तरह सेवा की मगर अंत तक द्रौपदी पत्नी सिर्फ अर्जुन की रही. 

   द्रौपदी ने ही युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय दुर्योधन को कहा था कि ” अंधे का पुत्र भी अंधा ” यही बात दुर्योधन के दिल में खंजर कि तरह चुभ गई थी, यही कारण वश द्यूत कीड़ा ( जुआ ) में शकुनी के साथ मिलकर पांडवों को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए मजबूर किया था. जुए के इस खेल ने ही महाभारत के युद्ध की भूमिका लिख दी थी जब द्रौपदी का चिरहरण ( वस्त्र हरण ) हुआ था. 

      महाभारत काव्य के अनुसार युद्धिष्ठिर जुआ में जब सब कुछ हार गये तो द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया, दुर्योधन ने दृष्टता से द्रोपदी को जीत लिया.तो दुशासन द्रौपदी को बालों को पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया. जहां पर द्रौपदी का सबके सामने चिर हरण करके नग्न करने की पूरी कोशिश की गयी. 

        उस समय मौजूद भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता भी मुंह झुकाये चुप बैठे रहे. द्रौपदी ने आंखें बंद कर स्मरण कर सखा श्री कृष्ण को मदद के लिये आव्हान किया. जो सभामे उपस्थित नहीं थे. फिरभी चमत्कार हुआ और द्रौपदी की साड़ी तब तक लंबी होती गई जब तक की दुशासन बेहोश होकर निचे नहीं गीर गया. वाह रे प्रभु तेरी लीला. भगवान श्री कृष्ण की जब उंगली कट गयी थी तो इसी द्रौपदी ने अपनी पहनी हुई साड़ी फाड़कर उंगली पर बांधी थी. उसका बदला प्रभु ने यहां पर पुरा किया. 

——–====शिवसर्जन ====——

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →