इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम ने, ” द गवर्नर एंड कंपनी ऑफ़ मर्चेंट ऑफ़ लंदन ट्रेडिंग इन ईस्ट इंडिज ” यानी ” ईस्ट इंडिया ” कंपनी के स्थापना की स्वीकृति सन 1600 मे प्रदान की थी. इस स्वीकृति के तहत कंपनी को आगे चलकर पूर्वी द्वीप समूह के देशों से व्यापार करने का एकाधिकार प्राप्त हुआ था.
वास्तव मे कंपनी गठन का मुख्य उदेश्य मसाले के व्यापार का था. मगर आगे कंपनी ने मसाले के अलावा कपास, रेशम, चाय, नील और अफीम का व्यापार भी चालू कर दिया था.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के तत्कालीन मुगल बादशाह जहांगीर से व्यापार व सूरत में कारखाना लगाने की इजाजत लेकर व्यापार शुरू किया था. और 200 साल मे भारत के अधिकांश हिस्सों मे अपना कब्ज़ा जमा दिया था. सन 1857 में भारत के विद्रोह के बाद ” ईस्ट इंडिया ” कंपनी को एक 1 जनवरी 1874 के दिन से भंग कर दिया था.
” ईस्ट इंडिया कंपनी ” का भारत सहित विश्व के कई भागोंमें वर्चस्व रहा. उनके पास टेक्स वसूलने का अधिकार था जिसके लिए लाखों लोग उनके पास काम करते थे. उनके पास अपनी खुद की खुफ़िया एजेंसी थी. ईस्ट इंडिया कंपनी पर क़िताब लिखने वाले निक रॉबिंस का कहना है , की यह कंपनी को आजकी मल्टीनेशनल कंपनियों से तुलना की जा सकती है.
एशिया मे कारोबार करने की छूट के बाद एक ऐसा वक्त आया की कंपनी कारोबार के साथ सरकार बन बैठी. इस कंपनी ने मुंबई , चेन्नई और कोलकाता जैसे शहरों मे अपनी बुनियाद रखी. ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्ज़े में एशिया के कई देश सामिल थे. इस कंपनी के पास सिंगापुर और पेनांग जैसे बड़े बंदरगाह थे.
उस वक्त आलम ये था की लोग चाय पीते थे तो ईस्ट इंडिया कंपनी की, कपडे भी पहनते थे तो ईस्ट इंडिया कंपनी के. उनके माल का इंग्लैंड ही नहीं, यूरोप के देशों मे भी बोलबाला था.
” ईस्ट इंडिया कंपनी ” मे काम पाने के लिये बड़ी मसक्कत करनी पड़ती थी. इसके लिये कोई निदेशक की सिफारिश होना जरुरी होता था. कंपनी के पास कुल 24 निदेशक थे. इसमे ज़्यादातर पुरुष ही काम करते थे. सिर्फ़ साफ़ सफ़ाई के लिए महिलाएं रखी जाती थीं.
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी पाने के लिए सिर्फ़ सिफ़ारिश से काम नहीं चलता था. कंपनी को इसके लिए भी पैसे देने पड़ते थे ! उस वक़्त क़रीब पांच सौ पाउंड, गारंटी मनी के रूपमें देना पड़ता था. इसके अलावा अच्छे बर्ताव की गारंटी भी देनी पड़ती थी.
ईस्ट इंडिया कंपनी में करियर की शुरुआत, बिना पैसे की नौकरी से करनी पड़ती थी. पहले तो पांच साल बिना पगार काम करना पड़ता था. मगर 1778 में ये मियाद तीन साल कर दी गई थी.
कंपनी ने सन 1806 में कर्मचारी तैयार करने के लिए ” ईस्ट इंडिया कॉलेज ” शुरू किया था. हेलबरी में स्थित इस कॉलेज में कंपनी के मुंशियों बाबुओं को ट्रेनिंग दी जाती थी. यहां पर कर्मचारियों को इतिहास, क़ानून और साहित्य के साथ, साथ हिंदुस्तानी, संस्कृत, फारसी और तेलुगु ज़बानों की ट्रेनिंग भी दी जाती थी.
ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्यालय लंदन के लीडेनहाल इलाक़े में स्थित था. इस कंपनी के मुख्यालय को सन 1790 में दोबारा बनाया गया था. इसके दरवाज़े पर इंग्लैंड के राजा किंग जॉर्ज थर्ड की जंग करते हुए मूर्ति लगाई थी.
ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों को शराब तो खुलकर मुहैया कराई जाती थी. इंडोनेशिया के सुमात्रा में कंपनी के 19 कर्मचारियों ने एक साल में 894 बोतल वाइन, 600 बोतल फ्रेंच शराब, 294 बोतल बर्टन एले, दो पाइप और 42 गैलन मदेरिया, 274 बोतल चाड़ी और 164 गैलन गोवा की अरक गटक डाली थी.
ब्रिटेन की महारानी ने भारत के साथ व्यापार करने के लिये 21 सालो तक की परवानगी दी थी. बाद में कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक व प्रशासनिक अधिकार जमा लिया था. ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने आई और फिर धीरे धीरे पूरे देश को अपना गुलाम बना लिया था.
करीब 150 सालों से कहीं ज्यादा समय तक कंपनी हम पर राज करते रही. सन 1858 में इसका विलय हो गया. उसके बाद भारत मे ब्रिटिश राज का राज हो गया.
उल्लेखनीय है कि ईस्ट इंडिया कंपनी , इंग्लैंड के कई धनी व्यवसायियों ने मिलकर ता : 10 अप्रैल 1591 के दिन अनौपचारिक तौर पर स्थापित की गई थी. इसमें रूकावट ना आये इसीलिए ब्रिटिश राजघराने से जुड़े कई आला अफसरों को हिस्सेदार बनाया गया था. इसके बाद इस कंपनी को रानी एलिजाबेथ की छत्रछाया में लाने का प्रयास हुआ.
आखिरकार ता : 31 दिसंबर 1600 में महारानी की मंजूरी मिलने के बाद ब्रिटिश राजघरा द्वारा इस पर मुहर लगा दी गई. जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी को इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन और बर्मा जैसे पूर्वी देशों में व्यापार फैलाने की अनुमति मिली..
सर थामस स्मिथ कंपनी के पहले गवर्नर बने. इसका मुख्यालय इंडिया हाउस लंदन में बनाया गया.
ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला पड़ाव इंडोनेशिया था. कंपनी के पांच जहाज इंडोनेशिया के लिए सन 1601 मे रवाना हुये. फिर सन 1607 में दक्षिण अफ्रीका गये, उसके बाद 24 अगस्त 1608 के दिन पहली बार जहाज ने गुजरात के सूरत तट पर डेरा डाला.
मगर तत्कालीन मुगल शासक जहांगीर को मनाने में उन्हें करीब बीस साल लग गये. ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास (चेन्नई) में अपनी पहली निजी सेना बनाई.
सन 1661 में ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वितीय को पुर्तग़ाली राजकुमारी से विवाह के दहेज में बम्बई का टापू दीया गया. चार्ल्स ने सन 1668 में इसको केवल 10 पाउण्ड सालाना किराये पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया. इसके बाद सन 1669 और सन 1677 के बीच कम्पनी के गवर्नर जेराल्ड आंगियर ने आधुनिक बम्बई नगर की नींव डाली.
सन 1708 में ” ईस्ट इण्डिया कम्पनी ” की प्रतिद्वन्दी कम्पनी ” न्यू कम्पनी ” का ” ईस्ट इंडिया कम्पनी ” में विलय हो गया
ता : 19 अगस्त 1757 के दिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलकात्ता मे पहली बार एक रुपए का सिक्का बनाया. ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाए गए पहले सिक्के को बंगाल के मुगल प्रांत में चलाया गया था. बंगाल के नवाब के साथ एक संधि के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी ने साल 1757 में टकसाल बनाई थी. ये टकसाल पुराने किले में ब्लैक होल के बराबर खड़ी इमारत में थी. जो वहां सन 1757 से 1791 तक रही.
साल 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ही भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का साम्राज्य स्थापित हुआ. तब कंपनी को बिहार और बंगाल में कमाई करने के अधिकार दिए गए थे.
भारत में सिक्के का आविष्कार देरी से हुआ. साल 1950 में पहला सिक्का ढाला गया था. भारत साल 1947 में आजाद हुआ लेकिन ब्रिटिश सिक्के साल 1950 तक देश के चलन में थे, उसी समय भारत में सिक्कों का प्रचलन हुआ.
” ईस्ट इंडिया ” कंपनी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी थी, इसके पास ताक़त थी, पैसा था, सेना थी, जासूसी विभाग भी था. कंपनी ने भारत सहित कई देशों में अंग्रेज़ों का राज स्थापित किया.मगर हर चीज़ का एक समय होता है. सन 1857 में भारत में बग़ावत के बाद कंपनी का बुरा दौर शुरू हो गया और 1874 में अंग्रेज़ सरकार ने ” ईस्ट इंडिया ” कंपनी को पूरी तरह से बंद कर दिया.
अंग्रेज सरकार ने सन 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया था. उसके बाद हमें आजादी मिली थी.
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